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फुकुशिमा परमाणु सीवेज मामला:प्रशांत महासागर के तटीय देशों को मुआवजा दे जापान सरकार

 

पिछले कुछ दिनों से प्रशांत महासागर में फुकुशिमा के परमाणु प्रदूषित पानी छोड़े जाने के साथ साथ तटीय देशों की निंदा की आवाज भी बुलंद हो रही है । संबंधित विशेषज्ञों के विचार में तटीय देशों को जापान सरकार की अति स्वार्थी कार्रवाई के लिए कीमत नहीं चुकानी चाहिए । उन को जापान सरकार से मुआवाजा मांगने का अधिकार है। सर्वविदित है कि फुकुशिमा परमाणु बिजली घर में सब से ऊंची श्रेणी वाली घटना हुई थी ,जिस से 13 लाख से अधिक टन प्रदूषित जल पैदा हुआ।

अध्ययन के मुताबिक नाभिकीय प्रदूषित पानी में 60 से अधिक रेडियोधर्मी न्यूक्लाइड मौजूद हैं जिनकी अर्धआयु कई लाख साल है । जापानी पक्ष का मानना भी है कि बहु न्यूक्लाइड निपटान व्यवस्था यानी एएलपीएस से निबटे गये नाभिकीय प्रदूशित जल का 70 प्रतिशत भाग निकासी मापंदड से मेल नहीं खाता ।ये हानिकारक पदार्थ समुद्री करेंट से पूरे विश्व में फैल सकते हैं ।जापान पैसे बचाने के लिए नाभिकीय प्रदूषण का खतरा पूरे विश्व में फैला रहा है।

उसे सीमा पार नुकसान के प्रति मुआवजे की जिम्मेदारी उठानी चाहिए। कानूनी नजर से देखा जाए ,कई अंतरराष्ट्रीय समझौतों में एक देश द्वारा समुद्र में रेडियोधर्मी वेस्ट छोड़ने पर नियम निर्धारित हैं ।जैसे वर्ष 1958 हाई सीस समझौते में यह नियम है कि किसी भी देश को रेडियोधर्मी वेस्ट से बचना है।

वर्ष 1982 यूएन समुद्र समझौते में यह नियम है कि विभिन्न देशों को समुद्रीय पर्यावरण की सुरक्षा करने का कर्तव्य है और नुकसान व खतरे को हस्तांतरिक नहीं करना चाहिए। जापान हाई सीस समझौते और यूएन समुद्र समझौते आदि अंतरराष्ट्रीय समझौतों का हस्ताक्षरित देश है। उन समझौते का उल्लंघन कर उसे अवश्य ही अन्य तटीय देशों को मुआवजा देना चाहिए।

इतिहास में परमाणु प्रदूषण के कारण मुआवजा मांगने के मामले कम नहीं हैं ।उदाहरण के लिए इस शताब्दी की शुरूआत में ब्रिटेन के समुद्री तल पर नाभिकीय वेस्ट को लेकर आयरलैंड ने अंतरराष्ट्रीय अदालत में मामला उठाया था।
इस से देखा जाए ,तो प्रशांत महासागर के तटीय देश अपने हितों की सुरक्षा के लिए जापान के खिलाफ कानूनी हथियार उठा सकते हैं ।

(साभार—चाइना मीडिया ग्रुप , पेइचिंग)

 

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