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अमेरिका “लोकतंत्र” के माध्यम से अन्य देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करता है

पिछले कुछ दिनों में, कई देशों के लोगों ने अमेरिका द्वारा आयोजित तथाकथित दूसरे “लोकतंत्र शिखर सम्मेलन” की आलोचना की है। उन्होंने कहा कि अमेरिका, जिसने बार-बार अन्य देशों की संप्रभुता का उल्लंघन किया है, एक उपकरण के रूप में “लोकतंत्र” का उपयोग करते हुए दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करता है। अमेरिका को अन्य देशों में लोकतंत्र की स्थिति पर गैर-जिम्मेदार टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है। यह “शिखर सम्मेलन” सभी देशों के विकास और प्रगति के लिए बेमतलब है।

क्रोएशियाई राजनीतिक विश्लेषक मरिंको ओगोरेट्स ने कहा कि “अमेरिकी लोकतंत्र” लोकतंत्र का एकमात्र मानक नहीं है और लोकतंत्र का मॉडल भी नहीं है। शीत युद्ध बहुत पहले खत्म हो चुका है, लेकिन शीत युद्ध की मानसिकता समाप्त नहीं हुई है। वास्तव में तथाकथित “लोकतंत्र शिखर सम्मेलन” शीत युद्ध की मानसिकता से प्रेरित है, जिसकी असलियत गिरोह बनाकर उन देशों का दमन व सामना करना है, जिन्हें दुश्मन और प्रतिस्पर्धी माना जाता है।

मिस्र के अरब राजनीतिक और रणनीतिक अध्ययन केंद्र के उपाध्यक्ष मुख्तार गोबाश का मानना ​​है कि अमेरिका तथाकथित “लोकतंत्र शिखर सम्मेलन” का उपयोग करते हुए खुद को “लोकतंत्र के नखलिस्तान” के रूप में पेश करने का इरादा रखता है। हालांकि, अमेरिका समेत कुछ पश्चिमी देश तथाकथित “लोकतंत्र” और “मानवाधिकारों” के बहाने अरब देशों सहित कई देशों पर दबाव डालते हैं। जाम्बिया के कूटनीति और अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन केंद्र के पूर्व डीन म्वांजा ​​ने कहा कि प्रत्येक देश का लोकतंत्र और राजनीतिक व्यवस्था अलग है, और प्रत्येक देश के नागरिकों को अपना चुनाव करने का अधिकार है।

नीदरलैंड के विदेश मंत्री वोपके होकेस्ट्रा ने हाल ही में एक विशेष साक्षात्कार में कहा कि वर्तमान में कई देशों ने पश्चिमी लोकतांत्रिक मॉडल में पूरी तरह से रुचि खो दी है। कई देशों ने कहा कि हमें पश्चिमी लोकतांत्रिक मॉडल नहीं चाहिए, हमारे पास उन से अलग लोकतंत्र का मॉडल है। हम उनकी मानवाधिकारों की व्याख्या पर भी भरोसा नहीं करते हैं। उन्होंने जोर-शोर से पश्चिमी लोकतांत्रिक मॉडल को नाकहा और अंतरराष्ट्रीय समुदाय में कई देशों की प्रतिध्वनि हासिल की।

 

 

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