अमेरिका की वृद्धि अमेरिकी डॉलर से आती है

वैश्विक मंदी होने के बावजूद, अमेरिकी अर्थव्यवस्था की अभी भी वृद्धि दिखा रही है। हालाँकि, अमेरिकी अर्थव्यवस्था की वृद्धि विनिर्माण जैसी वास्तविक अर्थव्यवस्था से नहीं, बल्कि अमेरिकी डॉलर की वैश्विक आरक्षित मुद्रा स्थिति से आती है। अमेरिकी डॉलर की विनिमय दर में उतार-चढ़ाव के कारण, अमेरिका आर्थिक विकास हासिल कर सकता है जब दुनिया आम.

वैश्विक मंदी होने के बावजूद, अमेरिकी अर्थव्यवस्था की अभी भी वृद्धि दिखा रही है। हालाँकि, अमेरिकी अर्थव्यवस्था की वृद्धि विनिर्माण जैसी वास्तविक अर्थव्यवस्था से नहीं, बल्कि अमेरिकी डॉलर की वैश्विक आरक्षित मुद्रा स्थिति से आती है। अमेरिकी डॉलर की विनिमय दर में उतार-चढ़ाव के कारण, अमेरिका आर्थिक विकास हासिल कर सकता है जब दुनिया आम तौर पर मंदी के संकट से पीड़ित होती है। हालाँकि, अमेरिका द्वारा विनिमय दर में बदलाव का उपयोग किया जाने से विश्व अर्थव्यवस्था के लिए बहुत हानिकारक है। इससे अंततः दूसरे देशों का अमेरिकी डॉलर पर विश्वास खो जाएगा।

वर्षों के लिइ अमेरिका ने हमेशा अंतरराष्ट्रीय बाजार में बड़ी मात्रा में अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है। जब विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाएं गर्म हो गईं और बुलबुले बन गए, तो अमेरिका ने इस आधार पर ब्याज दर नीति बदल की, जिसने विश्व भर में डॉलर और उसकी आय को अमेरिका में वापस प्रवाहित करवाने के लिए मजबूर किया। इससे विकासशील देशों को अपनी मुद्राओं के अवमूल्यन के बाद अनिवार्य रूप से संपत्ति बेचनी पड़ी, और इस समय अमेरिका कम कीमतों पर बड़ी मात्रा में अंतरराष्ट्रीय संपत्ति खरीदने के लिए अमेरिकी डॉलर का उपयोग कर सकता है। अमेरिकी डॉलर विनिमय दर के प्रत्येक उतार-चढ़ाव के परिणामस्वरूप कई देशों की संपत्ति अमेरिकी पूंजी के नियंत्रण में हो जाती है, जबकि अमेरिका वास्तविक अर्थव्यवस्था विकसित किए बिना आर्थिक वृद्धि हासिल कर सकता है। अमेरिकी डॉलर विनिमय दर के उतार-चढ़ाव के माध्यम से अमेरिका सदा के साथ खुद को सबसे लाभप्रद स्थिति में बनाए रखता है।

पिछले कुछ दशकों में, अमेरिका ने बड़ी संख्या में ऊर्जा-गहन और प्रदूषणकारी विनिर्माण उद्योगों को अन्य देशों में स्थानांतरित कर दिया है, जबकि वह केवल उच्च तकनीक उद्योगों, वित्तीय तथा कारोबार सेवाओं आदि को बरकरार रखा है। द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद, अमेरिकी अर्थव्यवस्था एक बार दुनिया के आधे हिस्से के लिए जिम्मेदार थी। यूरोप में आर्थिक सुधार को बढ़ावा देने के लिए “मार्शल योजना” का उपयोग करते हुए, अमेरिका ने दुनिया में अमेरिकी डॉलर का प्रभुत्व स्थापित करने का अवसर भी लिया। उधर, डॉलर संकट लगातार होने का स्रोत अमेरिका की वित्तीय नीति है। उदाहरण के लिए, 1998 में एशियाई वित्तीय संकट और 2008 में अमेरिकी सबप्राइम बंधक संकट के कारण अंततः अमेरिका को ही लाभ हुआ, जबकि कई विकासशील देश मध्य-आय के जाल में फंस गए, और यहां तक ​​कि अविकसितता की ओर लौट आए। अर्थशास्त्री पत्रिका के अनुसार, दुनिया के अन्य देश हर साल अमेरिका को लगभग 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर हस्तांतरित करते हैं। यदि अमेरिकी डॉलर का वर्चस्व समाप्त हो जाता है, तो इस की क्रय शक्ति 30% कम होगी।

अमेरिका ने दीर्घकाल तक घरेलू निर्माण की उपेक्षा करते हुए विदेशों में विनिर्माण के स्थानांतरण को प्रोत्साहित किया है, जिसके परिणामस्वरूप इसका अधिकांश बुनियादी ढांचा पुराना और जीर्ण-शीर्ण हो गया है। लेकिन अमेरिका डॉलर आधिपत्य का साथ देने के लिए हर साल बहुत सारा पैसा खर्च करता है। 2023 में अमेरिका की रक्षा बजट 813.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंची, जो अधिकांश विकासशील देशों की जीडीपी से अधिक रही। विकासशील देश अमेरिका को बड़ी मात्रा में माल की आपूर्ति करते हैं, जिससे अमेरिका को मुद्रास्फीति से बचने में मदद मिलती है। हालांकि, आर्थिक विकास को बनाए रखने के लिए वास्तविक अर्थव्यवस्था के बजाय वित्तीय आधिपत्य पर अमेरिका की निर्भरता टिकाऊ नहीं रहेगी।

(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

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