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एशिया-प्रशांत क्षेत्र प्रमुख शक्तियों के लिए लड़ने का एक क्षेत्र नहीं

31 जनवरी की रात को जापान की यात्रा कर रहे नाटो महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने जापान के प्रधानमंत्री फुमिओ किशिदा के साथ संयुक्त वक्तव्य जारी किया। उन्होंने कहा कि वे समुद्री सुरक्षा, साइबर सुरक्षा, हथियार नियंत्रण आदि क्षेत्रों में सहयोग करेंगे। जापानी मीडिया ने कहा कि यह निकट 6 वर्षों में नाटो महासचिव की पहली जापान यात्रा है। जापान और नाटो जल्द ही करीब आएंगे। इससे पहले दक्षिण कोरिया की यात्रा के दौरान नाटो महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने कहा कि चीन ने पश्चिमी मूल्य विचारधारा, लाभ और सुरक्षा को चुनौती दी है। शीत युद्ध में पैदा हुआ नाटो आज अमेरिका की इंडो-पसिफिक रणनीति के नेतृत्व में एशिया-प्रशांत क्षेत्र में शीत युद्ध की छाया ला रहा है।

गत मई में अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने एक बयान में कहा कि अमेरिका चीन के आसपास के सामरिक वातावरण की पुनः रचना करेगा। गत जून माह में नाटो के शिखर सम्मेलन ने पहली बार जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के नेताओं को सम्मेलन में भाग लेने को आमंत्रित किया और अपने सामरिक दस्तावेज में चीन को बदनाम किया कि चीन यूरोप-अटलांटिक के लिए एक खतरा है। इस साल के जनवरी के अंत में नाटो महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने जापान और दक्षिण कोरिया की यात्रा की और फिर एक बार चीनी चुनौती का प्रसार किया।

जेन्स स्टोलटेनबर्ग के बाद अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन 30 जनवरी को दक्षिण कोरिया पहुंचे। उन्होंने अमेरिका की धमकी की क्षमता को बढ़ाने की बात दोहरायी। इससे स्पष्ट है कि अमेरिका नाटो और एशिया-प्रशांत के मित्र देशों के बीच तथाकथित इंडो-पैसिफिक रणनीति को आगे बढ़ाने की पूरी कोशिश कर रहा है। लेकिन नाटो पहले का नाटो नहीं रहा। शीत युद्ध की समाप्ति के बाद नाटो सैन्य गठबंधन से राजनीतिक कूटनीति गठबंधन में बदलने लगा। नाटो के कई सदस्य देश पूंजी के अभाव की मुश्किल स्थिति का सामना कर रहे हैं।

नाटो दक्षिण कोरिया और जापान को अपने प्रभुत्व को पाने के अहम पक्ष मानता है। लेकिन एशियाई देश होने के नाते जापान और दक्षिण कोरिया को यह जानना चाहिए कि यदि वे नाटो को एशिया-प्रशांत क्षेत्र में लाते हैं, और एशिया-प्रशांत सहयोग के सही रास्ते पर नहीं चलते, तो उन्हें हार मिलेगी। एशिया-प्रशांत क्षेत्र प्रमुख शक्तियों के लिए लड़ने का एक क्षेत्र नहीं है। एशिया-प्रशांत के लोग “नया शीत युद्ध” शुरू करने के किसी भी प्रयास के लिए सहमत नहीं होंगे।

(साभार—चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

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