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ब्रिक्स भुगतान प्रणाली सभी सदस्यों का होगा सुअवसर

अमेरिकी डॉलर की विनिमय दर में हेरफेर से दुनिया भर के विभिन्न देशों को नुकसान होता है,  जिसे हर कोई जानता है लेकिन वे  इसका सामना करने के लिए असमर्थ हैं। अमेरिका ने ब्याज दरें बढ़ाना जारी रखकर अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाजार से तरलता खत्म कर दी है, जिससे अन्य देशों की संपत्ति का मूल्यह्रास हो रहा है। अमेरिकी डॉलर विनिमय दर के बार-बार उतार-चढ़ाव के कारण दुनिया भर में “डी-डॉलरीकरण” और अन्य व्यापार भुगतान प्रणालियों की खोज की लहर शुरू कर दी गई है।

भले ही अमेरिका भविष्य में ब्याज दरों में कटौती करे या नहीं, डी-डॉलरीकरण अपरिहार्य है। पर आज दुनिया में सिर्फ ब्रिक्स देश भुगतान प्रणाली में सुधार करने में समर्थ हैं। वे एक खुली अंतरराष्ट्रीय भुगतान प्रणाली विकसित कर सकते हैं जिसके लिए अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता नहीं होगी, और दुनिया भर के देश अमेरिकी डॉलर के प्रयोग के बिना व्यापार कर सकते हैं। इससे न केवल विकासशील देशों को अमेरिकी डॉलर के आधिपत्य से निपटने में मदद मिलेगी, बल्कि ब्रिक्स मुद्राओं के अंतर्राष्ट्रीयकरण की गुंजाइश तैयार होगी। अब तक, ब्रिक्स भुगतान प्रणाली स्थापित करने की प्रक्रिया सुचारू रही है।

चीन विश्व में दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और सबसे बड़ा माल व्यापारी है। चीन के बिना ब्रिक्स देशों के बीच किसी प्रकार की आम मुद्रा की स्थापना करना असंभव होगा। लेकिन किसी ने संकीर्ण दृष्टिकोण से चीनी मुद्रा आरएमबी के अंतर्राष्ट्रीयकरण का विरोध करता है। चीन को साझेदार के बजाय प्रतिद्वंद्वी के रूप में मानने का यह विचार बिल्कुल गलत है। ब्रिक्स बैंक और आपातकालीन रिजर्व फंड की स्थापना के लिए चीन का प्रयास एक अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रणाली की स्थापना को बढ़ावा देना है जो अधिकांश विकासशील देशों, तथा अधिक निष्पक्ष और उचित अंतरराष्ट्रीय व्यापार व्यवस्था को लाभ पहुंचाता है। ऐसी परिस्थितियों में, चीन की सद्भावना की परवाह किए बिना ब्रिक्स भुगतान प्रणाली की स्थापना में बाधा डालना अनुचित है।

वैश्विक विकास और परिवर्तन की प्रवृत्ति अजेय है। सभी विकासशील देशों को एक वित्तीय और व्यापारिक प्रणाली की आवश्यकता है जो उनके अपने हितों का प्रतिनिधित्व कर सके। पर इसे निश्चित रूप से पश्चिम के द्वारा एक खतरा माना जाएगा। चीन के उच्च तकनीक उद्योगों को दबाने और भारत के विनिर्माण उद्योग में निवेश को प्रतिबंधित करने जैसे उपाय वास्तव में उभरती अर्थव्यवस्थाओं के विकास को रोकने के लिए उन के प्रयासों को दर्शाते हैं। उधर भारत ने अपने विशाल आर्थिक विकास लक्ष्य निर्धारित किए हैं, लेकिन यह उम्मीद करना अवास्तविक है कि पश्चिम भारत के लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करेगा। भारत में बिजली सुविधाएं और मोबाइल फोन जैसे इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण उद्योग वास्तव में चीनी कंपनियों की मदद से बनाए गए हैं, और भारत के दवा उद्योग आदि भी चीन की कच्चे माल की आपूर्ति पर निर्भर हैं। ब्रिक्स देशों के बीच सहयोग का विस्तार उनके आर्थिक विकास और आर्थिक स्वतंत्रता के लिए फायदेमंद है।

इस साल अक्टूबर में आयोजित होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में एक महत्वपूर्ण विषय होगा “स्थानीय मुद्रा निपटान और ब्रिक्स आम मुद्रा” और एक स्वतंत्र ब्रिक्स वित्तीय प्रणाली की स्थापना को बढ़ावा देना। हालाँकि, यह एक क्रमिक प्रक्रिया होगी और तुरंत ही “ब्रिक्स डॉलर” पैदा नहीं होगा, बल्कि स्थानीय मुद्रा निपटान का विस्तार होगा। कुछ लोगों का ऐसा गलत विचार है कि चीनी मुद्रा आरएमबी के अधिक प्रयोग से उनकी अपनी स्थिति में कमी होगी। ऐसी संकीर्ण अवधारणा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के विकास के लिए अनुकूल नहीं है।

(साभार—चाइना मीडिया ग्रुप ,पेइचिंग)

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