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ब्रिटेन ने ‘हरित जलवायु कोष’ के लिए दो अरब अमेरिकी डॉलर की प्रतिबद्धता जताई

नयी दिल्ली: ब्रिटेन ने रविवार को कहा कि वह जलवायु परिवर्तन से निपटने में दुनिया की मदद करने के मकसद से हरित जलवायु कोष (जीसीएफ) के लिए दो अरब अमेरिकी डॉलर प्रदान करेगा।भारत में ब्रिटेन के उच्चायोग ने बताया कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने और उसके अनुसार ढलने में दुनिया के कमजोर लोगों की मदद करने के लिए यह वित्तीय योगदान देने की घोषणा की है।

सुनक शनिवार से शुरू हुए दो दिवसीय जी20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए इस समय नयी दिल्ली में हैं। उन्होंने जी20 नेताओं को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘ब्रिटेन कार्बन उत्सर्जन की मात्रा कम करने वाले माध्यम अपनाकर और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से निपटने में दुनिया के सबसे कमजोर लोगों की मदद करके अपनी जलवायु प्रतिबद्धताओं की दिशा में आगे बढ़ रहा है तथा उन्हें पूरा कर रहा है।’’ सुनक ने कहा, ‘‘दुनिया जी20 देशों से इसी तरह के नेतृत्व की उम्मीद करती है। यह सरकार ब्रिटेन तथा दुनिया को और अधिक समृद्ध एवं सुरक्षित बनाने के लिए उदाहरण पेश करती रहेगी।’’

इस बीच, नयी दिल्ली में आयोजित शिखर सम्मेलन संबंधी ताजा जानकारी देते हुए ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास एवं कार्यालय ‘10 डाउंिनग स्ट्रीट’ ने बताया कि सुनक ने विश्वभर के नेताओं से अपने देशों में कार्बन उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन के परिणामों से निपटने के लिए इस साल दिसंबर में होने वाले सीओपी28 शिखर सम्मेलन से पहले मिलकर काम करने का आह्वान किया, ताकि कमजोर अर्थव्यवस्थाओं की मदद की जा सके। ‘10 डाउनिंग स्ट्रीट’ ने बताया कि सुनक ने दो अरब अमेरिकी डॉलर के योगदान की प्रतिबद्धता जताई है, जो 2020-2023 की अवधि के लिए जीसीएफ में ब्रिटेन के पूर्ववर्ती योगदान में 12.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी है।

ब्रिटेन की सरकार ने बताया कि कोष में देश का योगदान बढ़ाने के साथ वह जीसीएफ के तेजी से परिणाम दिखाने की महत्ता पर जोर देता रहेगा। जीसीएफ की स्थापना सीओपी15 में कोपेनहेगन समझौते के बाद 194 देशों ने की थी और यह वैश्विक उत्सर्जन को कम करने एवं जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूल ढलने में विकासशील देशों की मदद करने के लिए सर्मिपत सबसे बड़ा वैश्विक कोष है।भारत ने विकसित देशों से कई बार अपील की है कि वे जलवायु संकट के कारण पैदा हुई चुनौतियों से निपटने में विकासशील देशों की मदद करने के लिए अपनी प्रतिबद्धताओं में बढ़ोतरी करें।

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