हाल ही में अमेरिका ने दूसरे यूएस-अफ्रीका शिखर सम्मेलन का आयोजन किया। आठ साल बाद एक बार फिर से इस शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति, अमेरिकी विदेश मंत्री और रक्षा सचिव ने सम्मेलन में भाग लिया। इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए 49 अफ्रीकी देशों और अफ्रीकी लीग के नेता वाशिंगटन पहुंचे। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस सम्मेलन का पैमाना काफी बड़ा है। व्हाइट हाउस ने कहा कि इस बार के शिखर सम्मेलन में अमेरिका-अफ्रीका संबंधों के महत्व पर जोर दिया गया है। बाइडेन सरकार ने यह भी कहा कि अमेरिका अगले तीन वर्षों में अफ्रीका में कम से कम 55 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश करेगा। लेकिन यह तीन दिवसीय सम्मेलन झगड़ों में समाप्त हो गया।
सोशल मीडिया पर नेटिज़नों ने पूछा कि क्या अमेरिका भूल गया है कि अमेरिका का अपना कर्ज सीमा से अधिक है। क्या अमेरिका को पहले कर्ज चुकाना होगा? पूरे इतिहास में, अमेरिका ने अफ्रीका को अपना पिछला बरामदा माना है और अफ्रीकियों के खिलाफ नस्लीय भेदभाव का अभ्यास किया है। अमेरिका स्थित भूतपूर्व अफ्रीकी लीग के प्रतिनिधि अरीकना चिहोमबोरी क्वाओ का मानना है कि जब तक अमेरिकी अफ्रीकियों के साथ समान रूप से व्यवहार नहीं करते, तब तक अमेरिका-अफ्रीका शिखर सम्मेलन विफल रहेगा।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, अमेरिका ने अफ्रीका को अपनी वैश्विक रणनीति के किनारे पर रख दिया। हाल के वर्षों में अमेरिका-अफ्रीका संबंध और भी खराब हुए हैं। कोविड-19 महामारी के प्रकोप के बाद से अमेरिका ने बड़ी संख्या में टीकों का भंडार किया जबकि अफ्रीका को समयावधि समाप्त हो चुके वाले टीके भेजे। अब अमेरिका ने अचानक अपना रुख बदला है और अफ्रीका को अहमियत देने की बात कही है। अफ्रीकियों को इनकी ईमानदारी पर विश्वास करना थोड़ा मुश्किल है। विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका ने भू-राजनीति से अफ्रीका पर अपनी नजरें जमानी शुरू कर दी हैं।
शिखर सम्मेलन के पहले दिन अमेरिकी रक्षा सचिव ने कहा कि अफ्रीका में चीन का प्रभाव दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। रूस-यूक्रेन टकराव में, अधिकांश अफ्रीकी देशों ने रूस की निंदा करने और पश्चिमी देशों के पक्ष में प्रतिबंध लगाने से इनकार कर दिया। इससे अमेरिका ने अफ्रीका की ताकत देखी है। लेकिन अमेरिका एक ऐसा देश है जो हमेशा कथनी और करनी में अंतर करता है।
साल 2014 के पहले यूएस-अफ्रीका शिखर सम्मेलन के दौरान, तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने एड्स उपचार के वित्तपोषण सहित अफ्रीका में निवेश बढ़ाने का वादा किया था, लेकिन बाद में अमेरिकी सरकार ने अफ्रीका की एड्स रोकथाम परियोजना के लिए पूंजी सहायता कम कर दी। आज आठ साल बाद बाइडेन सरकार ने एक बार फिर संकल्प लिया कि अमेरिका अफ्रीका के करीब 50 देशों में 55 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश करेगा। लेकिन अगले साल इसे बजट में शामिल किया जाएगा और 2024 में लागू किया जाएगा। साथ ही, इसे प्रतिनिधि सदन में पास कराना जरूरी है। अफ्रीकी लोग एक बड़े देश की सदिच्छापूर्ण मदद चाहते हैं। यदि अमेरिका वास्तव में अफ्रीका की मदद करना चाहता है, तो अमेरिका को अफ्रीकी लोगों के लिए अधिक वास्तविक कार्य करना चाहिए और वास्तविक कार्यों से अफ्रीका का विश्वास जीतना चाहिए।
(साभार—चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)