ओटावा: कनाडा की सियासत में एक दौर में “किंगमेकर” की भूमिका निभा चुके और खालिस्तान समर्थक माने जाने वाले जगमीत सिंह को हाल ही में हुए संघीय चुनावों में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है। सिंह न केवल अपना व्यक्तिगत चुनाव हार गए, बल्कि उनकी पार्टी – न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) – भी बुरी तरह सिमट गई है, जिससे वह अब राजनीतिक रूप से लगभग अप्रासंगिक मानी जा रही है।
-कंज़र्वेटिव पार्टी के उम्मीदवार रहे आगे
ब्रिटिश कोलंबिया के बर्नबी सेंट्रल से उम्मीदवार रहे सिंह को तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा। लिबरल पार्टी और कंज़र्वेटिव पार्टी के उम्मीदवार उनसे आगे रहे। यह वही सीट है जहाँ से वे 2019 से संसद सदस्य रहे हैं। सिंह की हार के साथ-साथ एनडीपी की स्थिति भी डांवाडोल हो गई है। पिछले चुनाव में पार्टी ने 24 सीटें जीती थीं, जो अब घटकर केवल सात तक पहुंचती दिख रही हैं।
-जगमीत सिंह ने चुनाव परिणाम के बाद कहा
“हमें जितनी उम्मीद थी, उतनी सीटें नहीं मिलीं, लेकिन मैं अपने आंदोलन के मूल्यों से पीछे नहीं हटूंगा।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जैसे ही पार्टी का नया नेता चुना जाएगा, वे नेतृत्व छोड़ देंगे।
एनडीपी का पतन केवल एक चुनावी पराजय नहीं, बल्कि हाल के वर्षों में की गई विवादास्पद राजनीतिक पहलों का नतीजा माना जा रहा है। सिंह ने ट्रूडो सरकार को समर्थन देकर उसे अल्पमत में भी सत्ता में बनाए रखा, जबकि भारत विरोधी रुख अपनाकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवाद भी खड़ा किया। सिंह ने न केवल भारत पर प्रतिबंध लगाने की मांग की, बल्कि कनाडा में हुए खालिस्तानी गतिविधियों के लिए भी भारत को जिम्मेदार ठहराया।
-खिसकी NDP की सियासी जमीन
विशेषज्ञों का मानना है कि सिंह की अतिवादी बयानबाज़ी और भारत विरोधी रुख ने एनडीपी के पारंपरिक मतदाताओं को दूर कर दिया। इसके अलावा, कनाडा में आर्थिक चुनौतियों और अमेरिका के साथ व्यापारिक तनावों ने भी एनडीपी की साख को नुकसान पहुंचाया।
एक समय था जब ट्रूडो सरकार एनडीपी के समर्थन पर टिकी हुई थी, लेकिन अब राजनीतिक समीकरण पूरी तरह बदल चुके हैं। एनडीपी की गिरती लोकप्रियता और सिंह की हार से यह साफ है कि कनाडा की राजनीति में खालिस्तानी एजेंडा चलाने की कोशिश अब जनता द्वारा नकार दी गई है। कनाडा के मतदाताओं ने इस चुनाव में स्थिरता और परिपक्व नेतृत्व को प्राथमिकता दी है, जिससे यह संकेत मिलता है कि उग्र राष्ट्रवाद और विभाजनकारी राजनीति की जगह अब एकजुटता और विकास की मांग प्रमुख हो चुकी है।