China and India: चीन और भारत के रिश्ते सदियों से चले आ रहे हैं। हाल के वर्षों में संबंधों में उतार-चढ़ाव के बावजूद बेहतर रिश्तों की उम्मीद बनी हुई है, जो पिछले कुछ महीनों से साफ नजर आ रही है। विशेष रूप से दोनों देशों के प्रमुख नेताओं की रूस के कज़ान में मुलाकात के बाद। इस बीच भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक पॉडकास्ट में इंटरव्यू के दौरान चीन को लेकर सकारात्मक टिप्पणी की है। ऐसे में मोदी के इस बयान से चीन-भारत संबंध बेहतर होने का संकेत मिल रहा है। इसके साथ ही इस वर्ष दोनों देशों के राजनयिक संबंधों की 75वीं वर्षगांठ मनायी जा रही है। इस मौके पर सीजीटीएन संवाददाता अनिल पांडेय ने भारत में चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के प्रोफेसर नवीन लोहनी के साथ विस्तार से चर्चा की।
बातचीत के दौरान प्रो. लोहनी ने कहा कि भले ही हाल के वर्षों में चीन और भारत के राजनीतिक रिश्ते उतने अच्छे नहीं रहे, लेकिन आर्थिक लिहाज से संबंध ठीक कहे जा सकते हैं। सीमा मामले और अन्य मसलों पर जो तनाव था, वह अब दूर हो रहा है। उम्मीद है कि जल्दी ये देश एकजुट होकर अच्छे काम करते हुए आगे बढ़ेंगे। वहीं हाल के दिनों में भारतीय पीएम मोदी ने चीन के साथ संबंधों को लेकर बात की। जिसमें उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच प्रतिस्पर्धा तो स्वाभाविक है, लेकिन विवाद नहीं होना चाहिए। इस पर लोहनी कहते हैं कि जैसा कि हम सुनते आए हैं कि 21वीं सदी एशिया की सदी होगी, ऐसे में चीन और भारत जैसे शक्तिशाली देशों पर नजर होना स्वाभाविक है। एशिया की सदी को साकार करने के लिए दोनों देश मिलकर काम करेंगे, ऐसी आशा की जा सकती है। भारत भी विकास के पथ पर तेज़ी से अग्रसर होना चाहता है, इसके लिए सीमाओं पर शांति और सुकून होना जरूरी है। कहना होगा कि देश में प्रगति के साथ-साथ पड़ोसी राष्ट्रों के साथ अच्छे और सौहार्दपूर्ण संबंध होना आवश्यक है। विकास की राह में एक-दूसरे के भागीदार बनने की दिशा में काम होना चाहिए। जैसा कि आप लोग कह रहे हैं, हम भी भारत में सुन रहे हैं कि चीन और भारत के द्विपक्षीय संबंधों में सुधार हो रहा है। विदेश मंत्रियों के स्तर पर या अधिकारियों के स्तर पर रिश्तों को पटरी पर लाने की पहल हो रही है।
लोहनी कहते हैं, “जब मैं 2017 से 2019 के बीच चीन में था, उस दौर में चीन और भारत के संबंधों में काफी प्रगति हुई। यहां तक कि इस बीच चीन का एक बड़ा प्रतिनिधिमंडल भारत आया था और चीन पुस्तक मेले में मुख्य अतिथि देश था। चीन का एक बड़ा स्टॉल भी पुस्तक मेले में लगा था। इसके साथ ही जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में भी चीनी दल का कार्यक्रम हुआ था, जिसमें मुझे शामिल होने का अवसर मिला था”।
हम पहले भी सोचते थे और आज भी यही सोचते हैं कि भारत और चीन पड़ोसी हैं और पड़ोसी बदला नहीं जा सकता है। इसका मतलब यह भी है कि अगर आपस में कोई मतभेद हैं या व्यवधान पैदा हुए हैं तो उन्हें वार्ता से सुलझाया जाना चाहिए। अगर हम समस्याओं को उचित तरीकों से हल करते रहेंगे, तो मित्रता आगे बढ़ेगी।
(प्रस्तुति- अनिल पांडेय, चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)