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चीन-भारत सहयोग: कृत्रिम बुद्धिमत्ता में नया अध्याय

4 मार्च को चीन की राजधानी पेइचिंग में आयोजित 14वीं चीनी राष्ट्रीय जन प्रतिनिधि सभा (एनपीसी) के तीसरे पूर्णाधिवेशन की प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रवक्ता लोउ छिनच्येन ने चीन की उभरती हुई एआई कंपनियों की प्रशंसा की, विशेष रूप से डीपसीक का उल्लेख किया। यह प्रतिक्रिया बताती है कि वैश्वीकरण के इस दौर में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) तकनीकी विकास की सबसे प्रभावशाली शक्ति बन गई है। स्मार्टफोन में वॉयस असिस्टेंट से लेकर सेल्फ-ड्राइविंग कारों और वित्तीय डेटा विश्लेषण तक, एआई हमारी जीवनशैली को तेज़ी से बदल रहा है और वैश्विक व्यवस्था को नया रूप दे रहा है। चीन, तकनीकी नवाचार में अग्रणी देश के रूप में, कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में तेज़ी से आगे बढ़ रहा है।

हाल के वर्षों में, चीन ने राष्ट्रीय रणनीति के तहत एआई के विकास को प्राथमिकता दी है। 2018 में, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) की केंद्रीय समिति ने एआई विकास की वर्तमान स्थिति और रुझान" पर चर्चा की, जिससे भविष्य के विकास के लिए ठोस नीतिगत आधार तैयार हुआ। वहीं, जुलाई 2024 में, 20वीं सीपीसी केंद्रीय समिति के तीसरे पूर्णाधिवेशन में एआई को एक रणनीतिक उद्योग के रूप में स्थापित किया गया। शीर्ष स्तर से लेकर जमीनी स्तर तक, हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं ताकि डिजिटल परिवर्तन को बढ़ावा देकर एआई उद्योग को मजबूती दी जा सके। सरकारी सहयोग और अनुकूल परिस्थितियों के चलते, चीन का एआई उद्योग तेज़ी से आगे बढ़ा है। उदाहरण के लिए, डीपसीक ने अपने ओपन-सोर्स मॉडल और कम लागत की वजह से दुनिया भर में लोकप्रियता हासिल की है।

यह उद्योग का एक नया बेंचमार्क बन चुका है और रिकॉर्ड समय में 3 करोड़ से अधिक सक्रिय उपयोगकर्ताओं तक पहुंच गया। 2024 के अंत तक, चीन के साइबरस्पेस प्रशासन के तहत कुल 302 जनरेटिव एआई सेवाएं पंजीकृत हो चुकी हैं और चीन के कोर एआई उद्योग का आकार 600 अरब युआन तक पहुंच गया है। यह आंकड़े चीन की एआई क्षमता और इसकी अपार संभावनाओं को दर्शाते हैं। भारत भी एआई के क्षेत्र में मजबूत संभावनाओं वाला देश है। वैश्विक आईटी सेवा आउटसोर्सिंग में भारत का अहम योगदान है, जिससे हर साल 150 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक का राजस्व उत्पन्न होता है। अमेरिका की सिलिकॉन वैली में कई भारतीय विशेषज्ञ शीर्ष तकनीकी कंपनियों के नेतृत्व में हैं, जिससे भारत की तकनीकी प्रतिभा का स्तर झलकता है।

भारत के लाखों पेशेवर सॉफ्टवेयर विकास, डेटा विश्लेषण और क्लाउड कंप्यूटिंग में कार्यरत हैं, जो इसके एआई उद्योग के लिए एक मजबूत आधार तैयार कर रहे हैं। भारत सरकार भी एआई के विकास को लेकर गंभीर है। जनवरी 2024 में ;इंडिया एआई मिशन; लॉन्च किया गया, जो इस क्षेत्र में नीतिगत मार्गदर्शन और संसाधन सहायता प्रदान करता है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने नई दिल्ली में कहा कि भारत एआई के विकास में तेज़ी लाएगा और 18 एआई-संबंधित परियोजनाओं को कृषि और जलवायु परिवर्तन जैसे क्षेत्रों में लागू करेगा। भारत सरकार एआई डेटा केंद्रों के निर्माण के लिए अगले कुछ वर्षों में 30 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश करने की योजना बना रही है। भारत ओपन-सोर्स एआई, जैसे डीपसीक, को अपनाने के लिए भी सकारात्मक दृष्टिकोण रखता है और वैश्विक एआई विकास में सक्रिय रूप से भाग ले रहा है। चीन और भारत, दोनों ही बड़े विकासशील देश होने के नाते, समान चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, जिनमें पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन प्रमुख हैं। दोनों देश वैज्ञानिक नवाचार में रुचि रखते हैं और तकनीकी क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा दे रहे हैं।

चीन के पास अनुसंधान, विकास और एआई अनुप्रयोगों को व्यापक स्तर पर लागू करने की क्षमता है, जबकि भारत के पास तकनीकी प्रतिभाओं का विशाल भंडार और आईटी सेवाओं का व्यापक अनुभव है। अगर ये दोनों देश मिलकर सहयोग करें, तो कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में बड़ी सफलताएँ हासिल कर सकते हैं। चीन-भारत सहयोग से कृषि, चिकित्सा, शहरी नियोजन और विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में एआई का प्रभावी उपयोग बढ़ेगा। यह न केवल दोनों देशों की अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाएगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर एआई तकनीक को लोकप्रिय बनाने में भी योगदान देगा। इस साझेदारी के ज़रिए, दोनों प्राचीन सभ्यताएँ आधुनिक तकनीक के ज़रिए दुनिया को एक स्मार्ट और उज्ज्वल भविष्य की ओर ले जाने में सहायक बन सकती हैं।

(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

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