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चीन का विकास दुनिया के लिए अवसर है

कुछ पश्चिमी राजनेता जानबूझकर चीन के आर्थिक और तकनीकी प्रगतियों को दुनिया के लिए एक प्रकार का खतरा बताते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे हमेशा अपने मूल्यों और विकास मॉडल के आधार पर आंकने के आदी रहे हैं, लेकिन उन्होंने चीन की अद्वितीय ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि और विकास पथ को नजरअंदाज कर दिया.

कुछ पश्चिमी राजनेता जानबूझकर चीन के आर्थिक और तकनीकी प्रगतियों को दुनिया के लिए एक प्रकार का खतरा बताते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे हमेशा अपने मूल्यों और विकास मॉडल के आधार पर आंकने के आदी रहे हैं, लेकिन उन्होंने चीन की अद्वितीय ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि और विकास पथ को नजरअंदाज कर दिया है। कुछ पश्चिमी राजनेताओं ने पूर्वी सभ्यता के बारे में अपनी ग़लतफ़हमी बनाये रखकर सोचते हैं कि चीन विकसित होने के बाद पश्चिम की तरह आधिपत्य के पुराने रास्ते पर चलेगा। हालाँकि, ऐसा नहीं भी हो सकता है।

सुधार और खुलेपन के कार्यान्वयन के बाद, चीन ने औद्योगिकीकरण की प्रक्रिया को कुछ ही दशकों में पूरा कर लिया, जिसमें पश्चिमी देशों को सैकड़ों वर्ष लगे। इस तीव्र विकास ने वैश्विक आर्थिक पैटर्न पर गहरा प्रभाव डाला है। 5जी तकनीक से लेकर कृत्रिम बुद्धिमत्ता तक, हाई-स्पीड रेल से लेकर एयरोस्पेस तक, कई क्षेत्रों में चीन के नवाचार दुनिया को बदल रहे हैं। साथ ही, “चीनी विशेषताओं वाली समाजवादी बाजार अर्थव्यवस्था” का विकास मॉडल पश्चिम से पूरी तरह से अलग है। यह भी सच साबित होता है कि विश्व में केवल एक ही विकास पथ नहीं है, और विभिन्न सभ्यताओं के बीच एक दूसरे से समावेशी रहना चाहिये।

पर कुछ पश्चिमी राजनेता चीन और पश्चिम के बीच मतभेदों को तथाकथित “सभ्यताओं के टकराव” के रूप में वर्णित करते हैं। साथ ही, पश्चिमी मीडिया की अनुचित रिपोर्टों ने भी चीन के बारे में पश्चिमी लोगों की गलतफहमी को गहरा कर दिया है। उधर, प्राचीन काल के हजारों वर्षों में, चीन और भारत हमेशा विज्ञान और प्रौद्योगिकी, संस्कृति, अर्थव्यवस्था और अन्य पहलुओं में अग्रणी स्थान पर रहते थे। बात सिर्फ इतनी है कि आधुनिक समय में पिछले एक-दो सौ वर्षों में बाहरी दुनिया के लिए बंद करने की गलत नीति के कारण चीन और भारत दुनिया से पिछड़ गये। ओपियम युद्ध सहित विदेशी युद्धों में विनाशकारी पराजयों ने धीरे-धीरे चीन को एक अर्ध-औपनिवेशिक देश बना दिया था। इस अपमानजनक इतिहास ने चीनी लोगों के राष्ट्रीय मनोविज्ञान पर गहरा प्रभाव डाला, और शक्तिशाली देश स्वपन की निरंतर खोज भी ऐतिहासिक गौरव भावना का अपरिहार्य परीणाम है।

लेकिन, चीन का उत्थान किसी भी तरह से आधिपत्य के बराबर नहीं है। पश्चिम को चिंता है कि शक्तिशाली चीन पश्चिमी विस्तारवाद को दोहराएगा। लेकिन असल में चीन ने अलग रास्ता चुना है। 1950 के दशक में, चीन और भारत के अद्भुत नेताओं ने संयुक्त रूप से शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों का प्रस्ताव रखा था। चीन ने हमेशा शांतिपूर्ण विकास, पारस्परिक लाभ और जीत-जीत के परिणामों और संयुक्त रूप से मानव जाति के लिए साझा भविष्य वाले समुदाय के निर्माण पर जोर दिया है। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की इस नई अवधारणा को अधिक से अधिक देशों द्वारा स्वीकार किया जा रहा है। चीनी आधुनिकीकरण का मार्ग आर्थिक विकास और सामाजिक समानता के बीच संतुलन के साथ-साथ आर्थिक विकास में मनुष्य और प्रकृति के सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व को बनाए रखने पर जोर देता है। यह निस्संदेह “वसुधैव कुटुम्बकम्” के प्राचीन पूर्वी सभ्य दृष्टिकोण की निरंतरता है।

(साभार—चाइना मीडिया ग्रुप ,पेइचिंग)

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