भारतीय लोगों को कम पता है कि जिस दिन उसका स्वाधीनता दिवस मनाया जाता है, उसी दिन यानी पंद्रह अगस्त को चीन में राष्ट्रीय पारिस्थितिकीय दिवस मनाया जाता है। बीते पंद्रह अगस्त को दूसरा मौका रहा, जब चीन ने यह दिवस पूरे जोरशोर से मनाया। चीन के राष्ट्रपित शी चिनफिंग ने पिछले साल यानी 2023 में राष्ट्रीय पारिस्थितीकीय दिवस मनाने का ऐलान किया था। सवाल यह है कि आखिर चीन ने यह पहल क्यों की? दरअसल पूरी दुनिया औद्योगिक क्रांति के साइड इफेक्ट से जूझ रही है। औद्योगिक प्रदूषण के चलते सूरज की अल्ट्रावायलेट किरणों से समूची पृथ्वी की रक्षा करने वाले ओजोन परत को गंभीर क्षति पहुंच रही है। बढ़ते कार्बन उत्सर्जन के चलते पूरी दुनिया का तापमान एक से डेढ़ डिग्री तक बढ़ चुका है। प्रदूषण का हाल यह है कि हमारे ग्लेशियर तक लगातार पिघल रहे हैं, असमान वर्षा हो रही है, जहां सूखा रहता था, वहां बाढ़ आ रही है और पानी वाले इलाके में सूखा पड़ रहा है। लगातार ठंडा रहने वाला यूरोपीय समाज गरमियों से परेशान है। भूमिगत जल का स्तर लगातार नीचे जा रहा है, धरती का वानाच्छादित इलाका लगातार कम हो रहा है, इसकी वजह से दुनियाभर में पर्यावरण की रक्षा को लेकर पहल हो रही है। लेकिन वह पहल काफी नहीं है। ऐसे माहौल में चीन की ओर से राष्ट्रीय स्तर पर पारिस्थितिकी दिवस मनाना बड़ी पहल है। चीन के राष्ट्रपति ने इस दिवस की घोषणा करते हुए पूरे समाज से जल-जंगल को बेहतर रखने, पहाड़ों को साफ रखने के चलन को सख्ती से बढ़ावा देने और चीन के लोगों को दुनिया के लिए रोल मॉडल के रूप में कार्य करने की अपील की थी। तब उन्होंने साफ कहा था कि साफ पानी और हरे-भरे पहाड़ अमूल्य संपत्ति हैं।
वैसे तो पूरी दुनिया के लिए पारिस्थितिकीय तंत्र को बचाए रखना समावेशी और सतत विकास के लिए जरूरी है। लेकिन चीन इस दिशा में सोचने वाला पहला देश बन गया है। विकास के हर मोर्चे पर आधुनिक समाज और देश के निर्माण की नई यात्रा की दिशा में पारिस्थितिकी तंत्र और उसकी प्रगति ही बेहतर साबित हो सकेगी। चीन ने जबकि यह दूसरा दिवस मना लिया है, अब दुनिया से उम्मीद की जानी चाहिए कि वह भी इस दिशा में आगे बढ़े। वैसे तो पूरी दुनिया को कार्बन उत्सर्जन और कार्बन तटस्थता पर ध्यान देने की जरूरत है। लेकिन चीन अपने औद्योगिक विकास के साथ इस दिशा में आगे बढ़ने की जो कोशिश कर रहा है, उसे वह इस दिवस के जरिए दुनिया को दिखाना चाहता है। दिलचस्प यह है कि इसके जरिए चीन अपनी ऊर्जा खपत की मात्रा और उसकी बढ़ोत्तरी पर दोहरा नियंत्रण बनाए रखते हुए आगे बढ़ रहा है।
दुनिया आज हरित और निम्न-कार्बन उत्पादन विधियों और जीवन शैली की ओर अपनी ऊर्जा और दूसरी जरूरतों के लिए आगे बढ़ने की सोच रही है। चीन इस दिशा में खुद को आगे रखते हुए भावी चीन की बेहतरी के लिए मानवता और प्रकृति के बीच सामंजस्य स्थापित करने और आधुनिकीकरण की प्रगति में तेजी लाने के प्रयास पर भी जोर दे रहा है।
(लेखक— उमेश चतुर्वेदी)