जब अंतरिक्ष से नीली पृथ्वी की ओर देखते हैं, तो सबसे आकर्षक चीज़ दक्षिणी ध्रुव और उत्तरी ध्रुव होता है। पिछले सौ वर्षों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के तेजी से विकास के साथ-साथ पृथ्वी के उत्तरी और दक्षिणी छोर पर स्थित ध्रुवीय भूमि उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव यानी आर्कटिक और अंटार्कटिक क्षेत्रों को लोगों द्वारा अधिक से अधिक गहराई से पहचाना और समझा जा रहा है। वर्तमान में, पूरी दुनिया एक बड़े परिवर्तन के दौर से गुजर रही है। अंटार्कटिक की बर्फ की चादर तेजी से पिघल रही है, समुद्री बर्फ सिकुड़ रही है, बर्फ की अलमारियां ढह रही हैं, समुद्र की धाराएं बदल रही हैं, मत्स्य संसाधन घट रहे हैं और ओजोन परत नष्ट हो रही है। इन परिवर्तन का वैश्विक ऊर्जा संतुलन, वायुमंडलीय परिसंचरण, जल चक्र, महासागर परिसंचरण, समुद्र का स्तर बदलना, दक्षिणी महासागर पारिस्थितिकी तंत्र व जैव विविधता और मानव समाज विकास आदि बातों का बहुत प्रभाव पड़ रहा है।
अंटार्कटिक अनुसंधान पूरी दुनिया और सभी मानव जाति की भलाई से संबंधित है। अंटार्कटिक संधि के ढांचे के तहत संबंधित अनुसंधान कार्यों को समन्वित करने की आवश्यकता है। इसके लिए मनुष्य को अंटार्कटिक के प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करने की आवश्यकता है, ताकि यह मानवीय गतिविधियों से प्रदूषित न हो सके और वैज्ञानिकों को प्रकृति के अनसुलझे रहस्यों का पता लगाने के लिए अंटार्कटिक का स्वतंत्र रूप से उपयोग करने की अनुमति दी जा सके।
1 दिसंबर 1959 को हस्ताक्षरित अंटार्कटिक संधि अंटार्कटिक अभियानों के इतिहास और अंतर्राष्ट्रीय अंटार्कटिक मामलों में एक मील का पत्थर वाली घटना है। अंटार्कटिक संधि में अंटार्कटिक परिसर के दक्षिण में सभी क्षेत्रों को शामिल किया गया है, जिसमें महासागर, समुद्री बर्फ, द्वीप, भूमि और बर्फ की चादरें, वायुमंडल और ऊपरी वायुमंडल सहित 6.5 करोड़ से अधिक वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र शामिल है। अंटार्कटिक संधि के अनुसार अंटार्कटिक का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए किया जाता है। अंटार्कटिक संधि के लक्ष्य अंटार्कटिक क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहकारी वैज्ञानिक जांच को बढ़ाना हैं। वर्तमान तक 40 से अधिक देशों ने इस संधि पर हस्ताक्षर किए हैं। 7 अक्तूबर 1985 को चीन अंटार्कटिक संधि सलाहकार देशों का सदस्य बना। “मानव जाति द्वारा अंटार्कटिका (ध्रुवीय भूमि) के शांतिपूर्ण उपयोग में योगदान” चीन की ध्रुवीय वैज्ञानिक अभियान की मूल राष्ट्रीय नीति और दीर्घकालिक नीति है।
20 नवंबर वर्ष 1984 को चीन का पहला अंटार्कटिक अभियान दल शंघाई से रवाना हुआ । इस दल के सद्सयों ने समुद्रीय अभियान जहाज “श्यांगयांगहोंग नंबर 10” पर सवार होकर एक ऐतिहासिक यात्रा शुरू की। इसके बाद, पहली बार अंटार्कटिक महाद्वीप पर उतरने वाले चीनी वैज्ञानिक अभियान दल के सदस्यों ने हवा और बर्फ का सामना करते हुए दिन-रात काम किया। उन्होंने केवल 27 दिनों में चीन का पहला अंटार्कटिक अनुसंधान अभियान स्टेशन “अंटार्कटिक ग्रेट वॉल स्टेशन” की स्थापना की और अंटार्कटिक अभियानों के इतिहास में एक चमत्कार किया। 15 फरवरी 1985 को, “अंटार्कटिक ग्रेट वॉल स्टेशन” स्थापित करने के साथ-साथ चीन अंटार्कटिका में एक वैज्ञानिक अनुसंधान स्टेशन स्थापित करने वाला अठारहवां देश बन गया। इससे चीन के अंटार्कटिका के वैज्ञानिक अनुसंधान और शांतिपूर्ण उपयोग ने एक नया अध्याय खोल दिया।
इसके बाद अंटार्कटिक वैज्ञानिक जांच और शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ाने के लिए, चीन ने जोंगशान स्टेशन, कुनलुन स्टेशन और ताईशान स्टेशन सहित तीन अन्य अंटार्कटिक अनुसंधान अभियान स्टेशनों की क्रमशः स्थापना की। पिछले कुछ वर्षों में चीनी वैज्ञानिकों ने वायुमंडलीय विज्ञान, अंतरिक्ष विज्ञान, भूवैज्ञानिक विज्ञान, जैविक विज्ञान, ध्रुवीय ग्लेशियर व समुद्री बर्फ, समुद्री विज्ञान, सर्वेक्षण व मानचित्रण, उपग्रह रिमोट और नई प्रौद्योगिकी उपलब्धियों का अनुप्रयोग आदि क्षेत्रों में निरंतर और गहन शोध करने के लिए अंटार्कटिका की यात्रा की। उन्होंने बड़ी संख्या में नमूने व डेटा एकत्र किए और महान वैज्ञानिक मूल्य वाले अधिक सफल परिणाम प्राप्त किए। भूवैज्ञानिक अनुसंधान क्षेत्र में, पैन-अफ्रीकी टेक्टोनिक मूवमेंट के अध्ययन के माध्यम से उन्होंने पूर्वी अंटार्कटिक पपड़ी के परिवर्तन व विकास की समझ को और गहरा किया।
पारिस्थितिक अनुसंधान क्षेत्र में, उन्होंने पारिस्थितिकी और पर्यावरणीय जलवायु परिवर्तन का संयुक्त अध्ययन किया और बेंथिक जीवों के दुर्लभ नमूने प्राप्त किये। साथ ही उन्होंने समुद्री क्षेत्रों में कार्बनिक प्रदूषकों का सर्वेक्षण और इनके सूक्ष्मजीवों के विकास के अध्ययन को पूरा किया। उन्होंने बड़ी संख्या में पारिस्थितिक, जैविक, माइक्रोबियल नमूने, वैज्ञानिक डेटा और कीमती जानकारी प्राप्त की। सूर्य और पृथ्वी के अंतरिक्ष वातावरण पर शोध क्षेत्र में, उन्होंने मध्यम-दीर्घकालिक अवलोकन किया और दोपहर अरोरा समेत अधिक महत्वपूर्ण घटनाओं की खोज की और सिद्ध किया। ऊपरी वायुमंडल भौतिकी की टिप्पणियों से उन्होंने सनस्पॉट चक्र का संपूर्ण अवलोकन डेटा प्राप्त किया।
अंटार्कटिक आधुनिक पर्यावरणीय विकास पर शोध क्षेत्र में, उन्होंने रचनात्मक रूप से एक नई विधि प्रस्तावित की कि भू-रासायनिक विशिष्ट तत्व संयोजनों का उपयोग करके अंटार्कटिक मिलेनियम स्केल में महत्वपूर्ण जैविक आबादी के विकास का अध्ययन किया जाएगा।
चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने कहा कि प्रकृति के रहस्यों का पता लगाने और विकास की नयी जगह तलाशने के लिए ध्रुवीय वैज्ञानिक जांच एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। अंटार्कटिक वैज्ञानिक अभियान का बहुत बड़ा महत्व है। चीन के अंटार्कटिक अभियान मानव जाति द्वारा अंटार्कटिक के शांतिपूर्ण उपयोग में योगदान देता है।
यदि चीन समेत सभी देश ध्रुवीय भूमि का बेहतर शांतिपूर्ण उपयोग करना चाहता हैं, तो उन्हें अंटार्कटिक अनुसंधान में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करने और विभिन्न देशों के बीच संबंधित संपर्क व संचार को मजबूत करने की आवश्यकता है। स्थिर वित्तीय सहायता, वैज्ञानिकों व इंजीनियरों की स्थिर टीमों और नई तकनीकों के अनुप्रयोग की आवश्यकता है। अंटार्कटिक क्षेत्रों के संरक्षण और उपयोग को मजबूत करने की आवश्यकता है। इसके लिए निम्नलिखित तीन सुझाव दिए गए हैं। पहला, सभी पक्षों को अंटार्कटिक संधि प्रणाली को कायम रखना चाहिए। उन्हें अंटार्कटिक का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए करना चाहिये। उन्हें अंटार्कटिक क्षेत्र में वैज्ञानिक अभियानों की स्वतंत्रता को बढ़ाना और वैज्ञानिक अभियानों में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग व आदान-प्रदान को बढ़ाना चाहिये। दूसरा, सभी पक्षों को पर्यावरण संरक्षण और वैज्ञानिक अनुसंधान के लाभ के लिए अंटार्कटिक में गतिविधियों को न्यूनतम रखना चाहिये। तीसरा, सभी पक्षों को अंटार्कटिक विज्ञान और पर्यावरण संरक्षण पर प्रचार व शिक्षा को बढ़ाना चाहिये। उन्हें जलवायु परिवर्तन, अंटार्कटिक अनुसंधान और मानव समाज पर इसके प्रभाव को जोड़कर “अंटार्कटिका से प्यार करने व पृथ्वी की रक्षा करने” के लिए लोगों का उत्साह जगाना चाहिए।
(साभार – चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)