पृथ्वी को परमाणु कचराघर न बनने दें

    सप्ताहांत फिर से आ रहा है। यह सप्ताहांत एक विशेष दिन भी है, जिसका नाम है पृथ्वी को साफ़ करना दिवस यानी विश्व सफाई दिवस (World Cleanup Day)। हर साल सितंबर के तीसरे सप्ताहांत में, दुनिया भर के 125 से अधिक देशों में 4 करोड लोग विश्व सफाई दिवस के विषय पर ​​गतिविधियों.

 

 

सप्ताहांत फिर से आ रहा है। यह सप्ताहांत एक विशेष दिन भी है, जिसका नाम है पृथ्वी को साफ़ करना दिवस यानी विश्व सफाई दिवस (World Cleanup Day)। हर साल सितंबर के तीसरे सप्ताहांत में, दुनिया भर के 125 से अधिक देशों में 4 करोड लोग विश्व सफाई दिवस के विषय पर ​​गतिविधियों में शामिल होते हैं। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय भूमि और समुद्री प्रदूषण की समस्याओं को हल करके पृथ्वी के पारिस्थितिक पर्यावरण में सुधार के लिए प्रतिबद्ध है।

गौरतलब है कि सिगरेट का कचरा विघटित होने से पहले 1 साल से 5 साल तक प्रकृति में रहता है, नायलॉन कचरे को 30 साल से 40 साल तक लग सकते हैं, डिब्बे के कचरे को 80 साल से 100 साल तक लग सकते हैं, जबकि प्लास्टिक कचरे को 100 साल से 200 साल तक लग सकते हैं। वहीं, समुद्र में छोडे गए परमाणु-दूषित जल से पृथ्वी को होने वाली क्षति अत्यंत विशाल एवं अमिट है।

11 सितंबर की दोपहर, जापान ने घोषणा की कि उसने फुकुशिमा दाइची परमाणु ऊर्जा संयंत्र से परमाणु-दूषित जल को समुद्र में छोडने का पहला दौर पूरा कर लिया है, जिसमें कुल 7,800 क्यूबिक मीटर परमाणु-दूषित जल छोड़ा गया है। जापान के मुताबिक, परमाणु-दूषित जल को समुद्र में छोडने का अगला दौर इस महीने के अंत में शुरू हो सकता है। जापानी सरकार ने 30 से अधिक वर्षों में कुल 13 लाख टन परमाणु-दूषित जल का निर्वहन पूरा करने की योजना बनायी है।

मार्च 2011 में, जापान में आए भूकंप के कारण फुकुशिमा परमाणु ऊर्जा संयंत्र से बड़ी मात्रा में रेडियोधर्मी सामग्री का रिसाव हुआ। वर्तमान तक यह दुनिया में सबसे गंभीर परमाणु दुर्घटनाओं में से एक है। फुकुशिमा परमाणु ऊर्जा संयंत्र दुर्घटना के कारण बड़ी मात्रा में परमाणु-दूषित जल जमा हो गया। इस परमाणु-दूषित जल में 60 से अधिक प्रकार के रेडियोधर्मी पदार्थ होते हैं, जिनमें से सबसे चिंताजनक रेडियोधर्मी ट्रिटियम और स्ट्रोंटियम हैं।

पहले पूरी दुनिया में परमाणु दुर्घटना उपचार के बाद परमाणु अपशिष्ट जल और परमाणु-दूषित जल को समुद्र में छोड़े जाने की कोई मिसाल नहीं थी। जापान सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की शंकाओं और आपत्तियों को नज़रअंदाज़ कर दिया और परमाणु-दूषित जल को समुद्र में बहाने पर ज़ोर दिया। 12 साल पहले हुई फुकुशिमा परमाणु दुर्घटना ने एक गंभीर आपदा पैदा की थी और बड़ी मात्रा में रेडियोधर्मी सामग्री समुद्र में छोड़ दी थी। फुकुशिमा परमाणु-दूषित जल को समुद्र में छोड़कर जापान ने स्थानीय लोगों और दुनिया भर के लोगों को नुकसान पहुंचाया है।

जर्मन समुद्री अनुसंधान संस्थान के शोध के अनुसार, फुकुशिमा परमाणु-दूषित जल को समुद्र में छोड़े जाने के दिन से प्रासंगिक रेडियोधर्मी सामग्री 57 दिनों के भीतर प्रशांत महासागर के अधिकांश क्षेत्रों में फैल जाएगी और 10 साल बाद दुनिया भर के महासागरों में फैल जाएगी। परमाणु-दूषित जल समुद्री धाराओं से होकर पहले अलास्का, कनाडा और हवाई तक पहुंचेगा और फिर समुद्री धाराओं के साथ एशिया में लौट आएगा।

वैश्विक समुद्री संसाधनों और मत्स्य पालन को विनाशकारी झटका लगेगा। यदि लोग लंबे समय तक परमाणु-दूषित समुद्री भोजन खाते रहे , तो इससे क्रोनिक बीमारी, हेमटोपोइएटिक अंगों व तंत्रिका तंत्र आदि को नुकसान हो सकता है और यहां तक ​​कि डीएनए को भी नुकसान हो सकता है। जो हमारी अगली पीढ़ी के सामने गंभीर खतरा पैदा करेगा।
इसके अलावा, परमाणु-दूषित जल से प्रकृति को होने वाली हानि भी बहुआयामी है।

सबसे पहले, परमाणु-दूषित पानी जल पर्यावरण में गंभीर प्रदूषण का कारण बनेगा। प्रदूषित जल निकायों में जीव आनुवंशिक उत्परिवर्तन व प्रजनन संबंधी विकृति आदि बीमारियों से गुजरेंगे, जो खाद्य श्रृंखला के माध्यम से सभी के स्वास्थ्य को खतरे में डाल देंगे। दूसरा, परमाणु-दूषित जल मिट्टी के पर्यावरण में प्रदूषण का कारण बनेगा। रेडियोधर्मी सामग्री वर्षा जल घुसपैठ एवं सतही अपवाह आदि के माध्यम से मिट्टी में प्रवेश करेगी, जिससे मिट्टी को रेडियोधर्मी द्वारा दूषित हो जाएगी। तीसरा, परमाणु-दूषित जल भी वायुमंडलीय पर्यावरण को प्रदूषित करेगा।

परमाणु-दूषित जल एरोसोल व वाष्पित जलवाष्प आदि के माध्यम से रेडियोधर्मी सामग्री फैलाएगा, जिससे वायुमंडलीय गुणवत्ता और जलवायु परिवर्तन भी प्रभावित होंगे। पूरी दुनिया परमाणु-दूषित जल के खतरे से अवगत होगी और संबंधित संभावित नुकसान की कल्पना नहीं की जा सकती। परमाणु-दूषित जल का निर्वहन समस्त मानव जाति के अस्तित्व से जुड़ी एक समस्या है और कोई भी जिससे अछूता नहीं रह सकता है। हमारे पास केवल एक ही पृथ्वी है। समुद्र को परमाणु-दूषित जल में न बदलने दें। पृथ्वी को परमाणु कचराघर न बनने दें।

(साभार – चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

 

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