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खाद्य पदार्थों में केवल गेहूं और चावल नहीं है

खाद्य पदार्थों में गेहूं और चावल जैसी चीज़ों के अलावा और भी बहुत कुछ शामिल है। वस्तुतः मनुष्य प्राचीन काल से ही सभी खाद्य वस्तुओं का उपयोग भोजन के रूप में करता था। आधुनिक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की परिस्थितियों में भोजन उत्पादन के तरीके अधिक व्यापक हो गये हैं। सो वैज्ञानिक अवधारणा पर भरोसा करके हम भोजन की समस्याओं को पूरी तरह से हल कर सकते हैं।

जब लोग अपेक्षाकृत गरीबी में थे, तो उन्हें अपने जीवन को बनाए रखने के लिए गेहूं, चावल, मक्का और अन्य खाद्य पदार्थों पर अधिक निर्भर करना पड़ता है। पर जीवन स्तर में काफी सुधार होने के बाद लोगों का इन खाद्य फसलों का दैनिक सेवन कम हो गया है। उदाहरण के लिए अब शहर में रहने वाले अनेक लोग प्रतिदिन बहुत अनाज खाने के बजाय मांस, समुद्री भोजन, दूध, अंडे, फल और सब्जियां जैसे विभिन्न खाद्य पदार्थों का ज्यादा सेवन करते हैं। ये चीजें अनाज की तुलना में अधिक प्रोटीन और विटामिन प्रदान कर सकती हैं।

अनेक देशों में लोग अकाल से पीड़ित रहे हुए थे। 1940 के दशक में चीन और भारत में हुए भीषण अकाल ने हमें दर्दनाक यादें छोड़ दीं, इसलिए स्वतंत्रता पाने के बाद चीन और भारत दोनों ने खाद्य मुद्दों को बहुत महत्व दिया। चीन ने कृषि विकास कार्यक्रम और “हाइब्रिड चावल” जैसी कृषि प्रौद्योगिकियों के माध्यम से खाद्य उत्पादन में काफी वृद्धि की है, उधर भारत ने “हरित क्रांति” और “श्वेत क्रांति” के जरिये देश भर के लोगों को भोजन और दूध की प्रचुर आपूर्ति प्रदान की है। अब हमने भूख को अलविदा कह दिया है, हमें बेहतर तथा सुरक्षित खाद्य आपूर्ति की जरूरत है। इसके लिए हमें अपनी खाद्य सूची में अधिक प्राकृतिक संसाधानों को शामिल करने के लिए उच्च तकनीक का उपयोग करने की आवश्यकता है।

वर्तमान में, चीन में लोग प्रतिदिन जो खाते हैं वह अब चावल और आटे जैसे मुख्य खाद्य पदार्थों तक सीमित नहीं है। आंकड़े बताते हैं कि चीन की खाद्य मात्रा 1978 में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष 515 किलोग्राम से बढ़कर 2022 में 1,400 किलोग्राम हो गई है, लेकिन प्रति व्यक्ति अनाज की खपत 247.8 किलोग्राम प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष से गिरकर 130 किलोग्राम तक हो गई है। इससे पता चलता है कि लोग कम अनाज खाते हैं, लेकिन मछली, मांस, अंडे, दूध, फल, सब्जियां सहित खाद्य पदार्थों का सेवन काफी बढ़ गया है। वैज्ञानिक खाद्य अवधारणा के नेतृत्व में, हमें अधिक जंगलों और बंजर भूमि पर खेती करने की आवश्यकता नहीं है। खेती योग्य भूमि के अलावा, जंगलों, घास के मैदानों और विशाल महासागरों के संसाधनों के विकास से हमारे खाद्य स्रोतों का विस्तार हो सकता है।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, 2050 तक वैश्विक प्रोटीन की मांग 30% से 50% तक बढ़ जाएगी। उधर, वैज्ञानिक शोध से पता चलता है कि मोल्ड किण्वन द्वारा उत्पादित माइकोप्रोटीन 2050 तक वैश्विक गोमांस की खपत का 20% की जगह ले सकता है, और 56% कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन और 56% वनों की कटाई को भी कम कर सकता है। यह दर्शाता है कि भोजन न केवल पारंपरिक संसाधनों से आता है, बल्कि उच्च तकनीक से भी आता है। डिजिटल प्रौद्योगिकी, सूचना प्रौद्योगिकी, एआई तकनीक और जैव प्रौद्योगिकी के विकास के साथ, भविष्य में खाद्य संसाधनों के सर्वांगीण और बहु-चैनल विकास का परिदृश्य नजर आएगी।

(साभार—-चाइना मीडिया ग्रुप ,पेइचिंग)

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