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जलवायु परिवर्तन हो हल करने के लिए उठाना होगा वैश्विक कदम

दुबई में आयोजित 28वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन यानी COP28 में मुख्य रूप से वैश्विक जलवायु वार्मिंग के मुद्दे पर चर्चा की जा रही है। हालांकि, जलवायु मुद्दे विभिन्न देशों के विकास से जुड़े हुए हैं। यदि जलवायु वार्मिंग के मुद्दे को मानव के साझा भविष्य वाले समुदाय की सोच के साथ हल नहीं किया जा सके, तो अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए पेरिस समझौते में निर्धारित जलवायु नियंत्रण लक्ष्यों को प्राप्त करना कठिन होगा।

हाल ही में यूरोपीय संघ जलवायु निगरानी एजेंसी द्वारा जारी “उत्सर्जन अंतर रिपोर्ट” के अनुसार, 17 नवंबर को दर्जित वैश्विक औसत तापमान 1850 और 1900 के बीच पूर्व-औद्योगिक औसत से 2.07 डिग्री सेल्सियस अधिक था। यह पहली बार है कि वैश्विक औसत दैनिक तापमान वार्मिंग के स्तर 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो गया है। रिपोर्ट से पता चलता है कि 2023 अक्टूबर की शुरुआत तक के 12 महीनों में 86 दिन ऐसे रहे जब वैश्विक औसत दैनिक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक हुआ। इसका मतलब यह है कि मानव पेरिस समझौते द्वारा निर्धारित सीमा को तोड़ने की ओर करीब आ रहा है।

2015 में हुए पेरिस समझौते के अनुसार, सभी देश जलवायु परिवर्तन के खतरे का जवाब देने के लिए प्रयास बढ़ाएंगे, पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में वैश्विक औसत तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि को नियंत्रित करेंगे और इसे 1.5 डिग्री के भीतर नियंत्रित करने का प्रयास करेंगे। वैज्ञानिकों का मानना है कि 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान में वृद्धि एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जिसके आगे अत्यधिक बाढ़, सूखा, जंगल की आग और भोजन की कमी की संभावना तेज़ी से बढ़ सकती है। अत्यधिक मौसम परिवर्तन के कारण बार-बार उच्च तापमान हो सकता है, गीले वातावरण के कारण अधिक भारी वर्षा हो सकती है, बाढ़ का खतरा बढ़ सकता है, और वाष्पीकरण बढ़ने से अधिक गंभीर सूखा पड़ सकता है। तापमान में बदलाव के कारण ग्लेशियर और ध्रुवीय बर्फ पिघलेंगे, जिसके परिणामस्वरूप समुद्र का स्तर बढ़ेगा, और कुछ द्वीप देशों और तटीय शहरों को खतरे में डाला जाएगा।

यदि तापमान 2 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है, तो 99% से अधिक प्रवाल भित्तियाँ मर जाएंगी, जो मछली के लिए एक विनाशकारी झटका है। इसके अलावा, मलेरिया और डेंगू वायरस वाले मच्छर बड़े पैमाने पर प्रजनन करेंगे। जंगल की आग और अन्य प्राकृतिक आपदाओं का खतरा भी बढ़ जाएगा, जिससे वन्यजीवों का जीवन खतरे में पड़ जाएगा और पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन और स्थिरता नष्ट हो जाएगी। यदि एक ही समय में दुनिया के कई प्रमुख खाद्य उत्पादक क्षेत्रों में फसल की विफलता का अनुभव होता है, तो बड़े पैमाने पर खाद्य कीमतों में बढ़ोतरी होगी और दुनिया भर में अकाल पड़ेगा। गर्मी की लहरें, सूखा और बाढ़ से भारी आर्थिक नुकसान हो सकता है। ग्लोबल वार्मिंग को रोकना एक ऐसा मामला है जिसके लिए सभी देशों के संयुक्त सहयोग की आवश्यकता है। लेकिन अभी तक कई देश इस मुद्दे पर एकमत नहीं हैं, और वे हरित ऊर्जा संक्रमण मुद्दे पर धीमी प्रगति कर रहे हैं। उच्च आय और उच्च उत्सर्जन वाले देशों में उत्सर्जन को कम करने और निम्न और मध्यम आय वाले देशों में उत्सर्जन वृद्धि को सीमित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की अभूतपूर्व कार्रवाई की आवश्यकता है।

हालाँकि विश्व के प्रमुख देशों ने कार्बन तटस्थता का लक्ष्य प्रस्तावित किया है, पर अब तक के प्रयास अपर्याप्त हैं। उत्सर्जन में हर साल लगभग 4% से 5% की कमी की जानी चाहिए। इसके अलावा, विकसित देशों से विकासशील देशों को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और आर्थिक सहायता के लक्ष्य हासिल नहीं किए गए हैं। 2030 के दशक की शुरुआत तक, वैश्विक दीर्घकालिक औसत तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं होने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, मनुष्यों को भविष्य में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को 220 बिलियन टन से कम तक सीमित करने की आवश्यकता है, और इस लक्ष्य को प्राप्त करना बहुत मुश्किल है। मानव को केवल एक ही पृथ्वी है। पृथ्वी के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए, हमें साझा भविष्य वाले समुदाय की सोच से जलवायु परिवर्तन की समस्या को हल करने की आवश्यकता है।

(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

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