Site icon Dainik Savera Times | Hindi News Portal

America में पीड़ितों की सूची में और कितने लोग होंगे?

आज से 55 साल पहले, अमेरिका के टेनेसी के मेम्फिस शहर में अफ्रीकी-अमेरिकी मानवाधिकार कार्यकर्ता मार्टिन लूथर किंग जूनियर की हत्या कर दी गई थी। और अब 55 साल बाद उसी शहर में, एक 29 वर्षीय अफ्रीकी-अमेरिकी टायर निकोल्स को 5 पुलिस अधिकारियों ने पीट-पीट कर मार डाला, जिससे राष्ट्रीय आक्रोश फैल गया। वहीं, अमेरिकी मीडिया चिंतित है कि साल 2020 में जॉर्ज फ्लॉयड की मौत, से भड़के देश भर में फिर से दंगे शुरू हो जाएंगे। क्योंकि 2 साल पहले अफ्रीकी-अमेरिकी जॉर्ज फ्लॉयड की मौत के बाद पूरे देश में विरोध प्रर्दशन शुरू हो गये थे। इसके बाद अमेरिका ने कहा कि वह अमेरिकी पुलिस व्यवस्था में सुधार करेगा, लेकिन इस तरह के हादसे बार-बार होते रहे।

दरअसल, अमेरिकी पुलिस द्वारा अफ्रीकी-अमेरिकियों का बार-बार विशेष उपचार अमेरिकी लोकतंत्र के तहत नस्लवाद से उपजा है। मूल दास गश्ती दल से लेकर श्वेत वर्चस्ववादी आतंकवादी संगठनों तक, फिर नागरिक अधिकार आंदोलन के दौरान उभरे श्वेत आतंक तक, इन शक्तिशाली प्रभावों ने अमेरिका में पुलिस हिंसा की संस्कृति का निर्माण किया जो आज भी पुलिस व्यवहार को प्रभावित करती है। यही कारण है कि कई विश्लेषकों का मानना है कि नस्लवाद में निहित संस्था में सुधार असंभव है। नस्लवाद लंबे समय से अमेरिकी पुलिस व्यवस्था के डीएनए में गहराई तक समाया हुआ है।

साथ ही, अमेरिका में पक्षपात के ध्रुवीकरण ने अमेरिकी पुलिस व्यवस्था में सुधार करना और भी कठिन बना दिया है। इतना ही नहीं, अमेरिका में बंदूक संस्कृति और पुलिस हिंसा ने कुछ हद तक एक दुष्चक्र बना लिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कुछ दिनों पहले एक भाषण में स्वीकार किया कि मार्टिन लूथर किंग का समानता और न्याय का सपना अभी तक साकार नहीं हुआ है, और उन्होंने एक बार फिर अमेरिका की "आत्मा" के लिए लड़ने का आह्वान किया। लेकिन अमेरिका की आत्मा कहाँ है? क्या यह निकोल्स की दर्द भरी चीखों में था?

(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

Exit mobile version