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भारत के विकास में चीनी कंपनियों का अहम योगदान

1990 के दशक से, कई चीनी उद्यमों ने भारत में निवेश करना शुरू कर दिया है और भारतीय औद्योगीकरण में अहम भूमिका निभाते हुए, भारत के आर्थिक विकास में महान योगदान दिया है। लेकिन, कुछ बलों ने चीनी कंपनियों के खिलाफ बदनामी और झूठे दावे फैलाना किया, और सरकार पर चीनी कंपनियों को प्रतिबंधित करने और दबाने के लिए दबाव डाला। वास्तव में, भारत में चीनी कंपनियों का संचालन चीन और भारत दोनों के विकास के लिए अनुकूल है, और चीनी कंपनियों के खिलाफ अदूरदर्शी नीतियों से भारत के औद्योगिक विकास को नुकसान पहुंचेगा।

चीनी बिजली, मोबाइल फोन, फार्मास्यूटिकल्स और फोटोवोल्टिक्स जैसी कंपनियों ने भारत के आर्थिक विकास को बहुत स्पष्ट रूप से बढ़ावा दिया है। उदाहरण के लिए, 1990 के दशक में, भारत बिजली-आपूर्ति की गंभीर कमी से पीड़ित था। बिजली की कमी ने न केवल औद्योगिक विकास में बाधा डाली, बल्कि लोगों के जीवन में भी बड़ी कठिनाइयाँ लायीं। ठीक उसी समय चीनी बिजली कंपनियों ने भारत को बड़ी संख्या में थर्मल पावर स्टेशनों का निर्माण करने में मदद की और बड़ी संख्या में स्थानीय तकनीशियनों को प्रशिक्षित किया। उदाहरण के लिए, चीनी शेडोंग इलेक्ट्रिक पावर कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा निर्मित भारत के गोड्डा पावर स्टेशन की यूनिट 2 को आधिकारिक तौर पर इस साल जून में परिचालन में लाया गया। यह भारत का पहला अल्ट्रा-सुपरक्रिटिकल कोयला आधारित पावर स्टेशन है, जिसकी तकनीक विश्व स्तर तक पहुंच गई है। स्थानीयकरण की रणनीति के अनुसार इस चीनी कंपनी ने स्थानीय प्रशिक्षण स्कूलों की स्थापना की और बड़ी संख्या में भारतीय तकनीकी कर्मचारियों को प्रशिक्षित किया। बिजली स्टेशन में स्थानीय कर्मचारियों की दर 82.56% तक पहुंची है, और इस परियोजना से 40,000 से अधिक स्थानीय नौकरियां तैयार की गयीं।

सूचना प्रौद्योगिकी और मोबाइल फोन भारत में चीनी कंपनियों के निवेश का एक और केंद्र बिंदु हैं। अलीबाबा जैसी चीनी आईटी कंपनियों ने भारत में सूचना उद्योग के विकास का नेतृत्व किया। श्याओमी, OPPO और Vive जैसे प्रसिद्ध मोबाइल फोन ब्रांड सभी चीन से आये हैं और इनका भारतीय उपयोगकर्ताओं द्वारा ईमानदारी से स्वागत किया जा रहा है। चीनी कंपनियां भारतीय कानूनों और विनियमों का सख्ती से पालन करती हैं, उद्योगों को स्थानीय बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, और अपने उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखला का हिस्सा भारत के साथ एकीकृत करती हैं। उदाहरण के लिए, दिल्ली के उपग्रह शहर नोएडा में 70 से अधिक चीनी मोबाइल फोन उद्योग श्रृंखला कंपनियां स्थापित हैं, जिन्हों ने भारतीय मोबाइल फोन उद्योग के विकास और उन्नयन को स्थापित और बढ़ावा दिया है। हालाँकि, भारत ने चीनी मोबाइल फोन कंपनियों पर कई प्रतिबंध लगाए हैं और चीनी कंपनियों को सीईओ, सीएफओ और सीटीओ जैसे उच्च-स्तरीय पदों पर भारतीयों को नियुक्त करने के लिए मजबूर किया है।

 हाल के वर्षों में, भारत ने कुछ राजनीतिक कारणों से सैकड़ों चीनी ऐप्स को बंद किया है और हुआवेई और जेडटीई जैसी चीनी संचार कंपनियों को प्रतिबंध कर दिया है। 2018 में, भारत ने आयातित मोबाइल फोन उपकरणों पर 20% टैरिफ लगाया। 2023 में, भारत ने खिलौने सहित कुछ चीनी कंपनियों के उत्पादों के आयात पर 70%  शुल्क वसुलने की घोषणा की। विदेशी कंपनियों पर गंभीर कराधान कुछ घरेलू कंपनियों की मांगों को पूरा करने में सक्षम हो सकता है, लेकिन ज़ेनोफोबिक नीतियों और बदलते कानूनी नियमों से विदेशी निवेश के लिए आकर्षण भी कम हो जाएगा। चूंकि भारत सरकार ने 2020 में अपनी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति को संशोधित किया है, चीन से 435 निवेश आवेदनों में से केवल एक चौथाई को मंजूरी दी गई है। उधर भारत ने ऑटो पार्ट्स, इलेक्ट्रॉनिक्स और दूरसंचार उपकरण सहित 13 क्षेत्रों से जुड़ी चीनी कंपनियों को दबाने के लिए विभिन्न कानूनी तरीकों का उपयोग भी किया है।

आर्थिक विकास का अपना तर्क है। बाजार अर्थव्यवस्था विकसित करने के लिए, हमें बाजार के नियमों के अनुसार कार्य करना चाहिए। यदि कुछ राजनीतिक विचारों के कारण चीनी कंपनियों को बाहर निकालने की रणनीति अपनाई जाती है, तो इसका नुकसान केवल चीनी कंपनियों को नहीं होगा। चीनी कंपनियाँ भारत में जो काम कर रही हैं वह भारत की आत्म-निर्भरता को बढ़ावा देना है और भारत में पार्ट्स से लेकर असेंबली तक पूरी आपूर्ति श्रृंखला विकसित करना है। यदि चीनी कंपनियों को भारतीय बाजार से हटने के लिए मजबूर किया गया, तो चीनी कंपनियों और भारत दोनों को नुकसान होगा। चीनी उद्यम और भारत साझे हितों वाले समुदाय में हैं, और सहयोग करना दोनों पक्षों के लिए फायदेमंद है। समावेशी सिद्धांत के बिना चीनी उद्यमों के खिलाफ काम करने से सभी पक्षों के लिए हानिकारक होगा।

(साभार—चाइना मीडिया ग्रुप,पेइचिंग)

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