India and China: दिल्ली विश्वविद्यालय के देशबंधु कॉलेज में सोमवार को “भारत और चीन: सीमाओं से परे” विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन हुआ। इस कार्यक्रम में कॉलेज के प्रिंसिपल प्रोफेसर राजेंद्र कुमार पाण्डेय, वाइस प्रिंसिपल सुनील कायस्थ, पोलिटिकल साइंस विभाग के प्रमुख डॉ. जगपाल, कार्यक्रम समन्वयक डॉ. अभिषेक प्रताप सिंह सहित कई प्रोफेसर और छात्र-छात्राएँ उपस्थित रहे।
इस संगोष्ठी के विशेष अतिथि CGTN हिंदी के वरिष्ठ पत्रकार अखिल पाराशर थे, जिन्होंने चीन में अपने 13 वर्षों के अनुभव को साझा करते हुए भारत-चीन संबंधों, चीन के विकास, वहाँ की समाज व्यवस्था, शिक्षा प्रणाली और आर्थिक शक्ति पर विस्तार से चर्चा की।
अखिल पाराशर ने अपने संबोधन में कहा कि भारत और चीन सिर्फ़ दो पड़ोसी देश ही नहीं, बल्कि दो महान सभ्यताएँ भी हैं, जिनका आपसी संबंध सदियों पुराना है। चीन में बिताए गए वर्षों के अनुभवों को साझा करते हुए उन्होंने बताया कि चीन ने हाल के दशकों में जो प्रगति की है, वह किसी चमत्कार से कम नहीं है।
उन्होंने कहा, “जब मैंने पहली बार चीन की यात्रा की थी, तब और अब के चीन में ज़मीन-आसमान का फर्क है। हाई-स्पीड ट्रेन, स्मार्ट शहर, आधुनिक बुनियादी ढाँचा और डिजिटल क्रांति— ये सब चीन की तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और नवाचार को दर्शाते हैं।”
उन्होंने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, 5G तकनीक, इलेक्ट्रिक वाहनों और डिजिटल पेमेंट सिस्टम को चीन के जीवन का अभिन्न हिस्सा बताते हुए कहा कि वहाँ तकनीकी विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है। अलीबाबा, हुआवेई, टेनसेंट जैसी कंपनियों ने वैश्विक स्तर पर चीन की पहचान को और मज़बूत किया है।
चीनी समाज की विशेषताओं पर बात करते हुए उन्होंने बताया कि वहाँ के लोग बेहद अनुशासित, मेहनती और ईमानदार होते हैं। उन्होंने कहा, “चीनी लोग समय का बहुत सम्मान करते हैं और अपने कार्य को पूरी ईमानदारी से करते हैं। लेकिन इसके साथ ही वे अपनी परंपराओं से भी जुड़े रहते हैं। चीनी नववर्ष हो या पारिवारिक समारोह— वे इन मौकों को पूरे उत्साह से मनाते है।”
चीन में भारतीय संस्कृति के प्रति जिज्ञासा को लेकर उन्होंने कहा, “चीनी लोग भारत और भारतीय संस्कृति को लेकर काफी उत्सुक रहते हैं। वे योग, बॉलीवुड और भारतीय खानपान के बारे में जानने में रुचि रखते हैं।”
चीन की अर्थव्यवस्था पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, “आज चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और आने वाले दशकों में वह पहले स्थान पर भी पहुँच सकता है। चीन के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर ने वैश्विक बाज़ार में अपनी मजबूत पकड़ बना ली है, और ‘मेड इन चाइना’ अब सिर्फ़ एक टैग नहीं, बल्कि गुणवत्ता और बड़े स्तर पर उत्पादन का प्रतीक बन चुका है।”
शिक्षा प्रणाली पर बात करते हुए उन्होंने बताया कि चीन में बचपन से ही बच्चों को अनुशासन और परिश्रम की सीख दी जाती है। उन्होंने कहा, “चीन के विश्वविद्यालय आज विश्व के शीर्ष शिक्षण संस्थानों में गिने जाते हैं। वहाँ विज्ञान, तकनीक और अनुसंधान पर बहुत ज़ोर दिया जाता है, जिससे चीन वैश्विक स्तर पर नवाचार का केंद्र बनता जा रहा है।”
अंत में, उन्होंने भारत-चीन संबंधों को मज़बूत करने की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए कहा, “भारत और चीन को केवल सीमाओं तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि हमें एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की ज़रूरत है। आपसी संवाद और सांस्कृतिक आदान-प्रदान से ही दोनों देश एक-दूसरे के करीब आ सकते हैं।”
उन्होंने आगे कहा कि यदि भारत और चीन सहयोग की भावना से आगे बढ़ें, तो यह न केवल एशिया, बल्कि पूरे विश्व की दिशा बदल सकता है। “हमें प्रतिस्पर्धा के बजाय सीखने की प्रवृत्ति अपनानी होगी। अगर दोनों देश मिलकर काम करें, तो यह पूरे वैश्विक समाज के लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी।”
CGTN हिंदी के वरिष्ठ पत्रकार अखिल पाराशर का यह व्याख्यान न केवल छात्रों के लिए एक सूचनात्मक सत्र था, बल्कि यह भारत और चीन के संबंधों को एक नए दृष्टिकोण से समझने का अवसर भी बना। इस कार्यक्रम ने इस बात पर ज़ोर दिया कि दोनों देशों को अपने मतभेदों से ऊपर उठकर आपसी सहयोग और सांस्कृतिक संवाद को बढ़ावा देना चाहिए।
(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)