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भारतः बढ़ती जनसंख्या को सही दिशा में लेकर जाना है

पिछले दिनों आए संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक भारत अब दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है। भारत की आबादी 142.86 करोड़ पहुंच गई है जबकि चीन की जनसंख्या 142.57 करोड़ है। भारत की आबादी अब 29 लाख ज्यादा हो गई है। इसी के साथ भारत ने चीन को आबादी के मामले में पीछे छोड़ दिया है। यह पहली बार है कि भारत की जनसंख्या 1950 के बाद चीन से आगे निकल गई है।

जनसंख्या की ताकत- हकीकत यह है कि चीन ने अपनी इसी विशाल जनसंख्या को मानव संसाधन में तब्दील करके अपनी तक़दीर और तस्वीर बदली थी। आज उसी के परिणामस्वरूप चीन विश्व शक्ति है, जबकि भारत अभी कई मोर्चो पर चीन से बहुत पीछे है। आज का भारत आर्थिक, राजनीतिक और वैश्विक शक्ति में लगभग उसी जगह खड़ा है जहाँ से 30 वर्ष पहले चीन ने दुनिया को अपना लोहा मनवाना शुरू किया था। भारत को भी अपने आप को साबित करने का यह सुनहरा मौक़ा मिला है जिसे भारत हरगिज़ गवाना नहीं चाहेगा। हालाँकि बढ़ती आबादी को लेकर इन दिनों भारत में सोशल मीडिया पर बहस जारी है। कोई इसके फ़ायदे तो कोई नुक़सान गिनवा रहा है।

युवा शक्ति – भारत की आबादी में युवा वर्ग सबसे ज्यादा 68% (15 से 64 साल), 26% (10 से 24 साल) और 7% (64 साल से ज़्यादा) किसी भी देश के इतिहास में ऐसा स्वर्णिम अवसर सदियो में कभी आता है जब उसके पास पर्याप्त जवान लेबर फ़ोर्स हो यानी कामगार लोग ज़्यादा हो और आश्रित लोग कम। इस मामले में हमे अपने पड़ोसी चीन से सीखना चाहिए कि किस तरह चीन ने अपनी जनसंख्या को अपनी ताक़त बनाया, ना कि कमज़ोरी। चीन ने अपनी जनसंख्या को कुशल कारीगरी सिखायी और दुनिया के अन्य देशों के व्यापार के लिए एक अनुकूल माहौल पैदा किया जिससे अधिकतर देशों ने चीन में निवेश किया और लाभ उठाया। इसी कारणवश चीन दुनिया की फैक्ट्री कहलाया। चीन ने ऐसे कई ऐतिहासिक कदम उठाये जो उस वक्त देश के विकास और समृद्धि के लिए बेहद ज़रूरी थे चाहे वो 50 के दशक में माओ द्वारा केवल एक बच्चाकी नीति हो या, विश्व अर्थव्यवस्था में प्रमुखता।

रोज़गार की चुनौतियाँ – बढ़ती आबादी को रोज़गार देना वाक़ई एक बड़ी चुनौती है, जिस तरह से जनसंख्या बढ़ रही है उस तेज़ी से रोज़गार मुहैया करना सरकार के लिए चुनौती है। दुनिया के अन्य देश भारत का रुख़ कर रहें है भारत मैन्यूफ़ैक्चरिंग का हब बन सकता है, जिसका वर्तमान में ऑटो मोबाइल सेक्टर एक उदाहरण है। बड़ी- बड़ी कंपनियाँ अपनी असेंबलिंग के लिये अब भारत का रुख़ करने लगी है। इसी तरह अन्य सेक्टरों में भी भारत बहुत अच्छा कर सकता है लेकिन, उसके लिए सरकार को बड़े स्तर पर तैयारियाँ करने की ज़रूरत है। सरकार को चाहिए की 10-24 साल की उम्र के बच्चों की शिक्षा और स्किल को बढ़ाया जाये। जब तक वह बड़े होंगे, वे पूर्ण रूप से स्किल्ड होंगे और उनके लिए रोज़गार उपलब्ध करना आसान होगा।

पलायन रोकना – अक्सर देखने को मिलता है जब बच्चा देश के IIT, IIM जैसे देश के उच्च श्रेणी के संस्थानों से पढ़ने के बाद विदेशों में जाकर वहाँ की कंपनियों में काम करता है तो इसका फ़ायदा अन्य देशों को मिलता है ना कि भारत को। देश में स्टार्ट उप को लेकर नीतियों को सरल किए जाने की ज़रूरत है जिससे देश का युवा अपने ही देश में ऐसी कंपनी शुरू कर सके, इससे देश के टैलेंट का फ़ायदा देश को ही मिले और देश आगे बढ़ेगा।

भविष्य की तैयारीं- बढ़ती जनसंख्या को सही दिशा में लेकर जाना और उसका देश के विकास में अधिक योगदान लेना किसी भी देश के लिए चुनौतीपूर्ण हैं। आने वाले 10 वर्ष भारत के लिए बेहद अहम है अगर भारत अपनी भविष्य की नीतियों को लागू करने में सफल रहा तो आने वाला समय भारत का होगा। इसके लिए अगर उसे चीन से कुछ सबक़ लेना पड़े तो चूकना नहीं चाहिए, जैसा कि चीन ने अपनी विशाल जनसंख्या का लाभ अपने देश के भविष्य को सँवारने में लगाया कुछ वैसा ही मौक़ा इस समय भारत के पास है।

भारत और चीन के कुछ विषयों में मतभेद हो सकते है लेकिन, इसी के साथ- साथ हमे ये क़तई नहीं भूलना चाहिए कीं दोनों देशों का पौराणिक और ऐतिहासिक संबंध भी है जो कई ज़्यादा महत्वपूर्ण है। भारत और चीन एशिया के बड़े पड़ोसी मुल्क है जो दुनिया में एशिया का डंका बजा सकते है। भारत-चीन द्विपक्षीय व्यापार कई अरब डॉलर का है, भारत और चीन एक दूसरे पर निर्भर है। दोनों देश अपने संबंधों को और सुधारने में लगातार प्रयासरत हैं, ये कहना ग़लत ना होगा कि आने वाला युग एशिया का होगा और इसमें इन दोनों देशो का महत्व ना होये हो ही नहीं सकता।

(देवेंद्र सिंह)

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