जब हम “वैश्विक दक्षिण” के बारे में सोचते हैं या वैश्विक अर्थव्यवस्था के बारे में सोचते हैं, तो अक्सर दो देश दिमाग में आते हैं: भारत और चीन। ये दोनों देश न केवल एशिया में पड़ोसी हैं; बल्कि वे ग्लोबल मार्केट में भी प्रमुख खिलाड़ी हैं। भारत-चीन संबंधों को आकार देने वाले गहन ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध है। व्यापार, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और आपसी शिक्षा के सहस्राब्दियों से बने ये प्राचीन संबंध दोनों सभ्यताओं की प्रगति के लिए महत्वपूर्ण हैं।
भारत और चीन के बीच चित्रित ऐतिहासिक तस्वीर केवल अतीत का अवशेष नहीं है, बल्कि एक जीवंत, सांस लेने वाली इकाई है जो वर्तमान को प्रभावित करती रहती है। दोनों देशों के आर्थिक इतिहास के महत्वपूर्ण क्षणों का उल्लेख करते हुए, हम याद कर सकते हैं कि 1978 में चीनी नेता डेंग जियाओपिंग द्वारा शुरू की गईं सुधार और आर्थिक उद्घाटन नीतियां एक महत्वपूर्ण मोड़ थीं, जबकि भारत का आर्थिक उदारीकरण 1991 में हुआ था।
इन मील के पत्थरों ने दोनों देशों को वैश्विक मंच पर आगे बढ़ाया और ग्लोबल साउथ (वैश्विक दक्षिण) के नेताओं के रूप में उनकी जिम्मेदारियों को रेखांकित किया। साथ ही, भारत और चीन को सक्रिय रूप से छोटे देशों और विकासशील देशों के साथ खड़ा होना चाहिए, ताकि वास्तव में उनके सामान्य विकास को बढ़ावा दिया जा सके।
स्वच्छ ऊर्जा, जलवायु परिवर्तन, इलेक्ट्रिक वाहन और एआई जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर दोनों पक्षों के बीच सहयोग करने से वैश्विक राजनीति को नया रूप देने की क्षमता है। हम भारत और चीन के बीच एक साझेदारी की कल्पना करते हैं जो एशिया और दुनिया में परिवर्तनकारी लाभ लाने के लिए मिलकर काम करेगी और सहयोग और पारस्परिक प्रगति का एक शक्तिशाली उदाहरण स्थापित करेगी।
कई विशेषज्ञ और विद्वान ऐसी साझेदारी की परिकल्पना करते हैं, जिसमें भारत और चीन एशिया और दुनिया को परिवर्तनकारी लाभ पहुंचाने के लिए मिलकर काम करें, जिससे सहयोग और साझा प्रगति का एक शक्तिशाली उदाहरण स्थापित हो। आर्थिक दृष्टिकोण से देखा जाए, तो चीन और भारत के बीच बढ़ता सहयोग केवल एक रिज़नल कहानी नहीं है – यह एक ग्लोबल कहानी है।
2024 में, दोनों देशों के बीच आपसी बिजनेस 118 बिलियन डॉलर से अधिक हो गया, जो उनके आर्थिक रिश्तों की अपार संभावनाओं को दर्शाता है। साथ मिलकर, वे जलवायु परिवर्तन, सतत विकास और आर्थिक स्थिरता जैसी ग्लोबल चुनौतियों का समाधान कर सकते हैं।
अपनी ताकतों का फायदा उठाकर – मैन्यूफैक्चरिंग और इनोवेशन में चीन की लीडरशीप और भारत का मजबूट टैलेंट और बिजनेस की भावना – ये दोनों देश एक ऐसा भविष्य बना सकते हैं जो उनके लोगों और पूरी दुनिया को फायदा पहुंचा सकते हैं। उनके बीच साझेदार संबंध एक अधिक बैलेंस्ड, बहुत ज्यादा इंटरकनेक्टिड और फलती-फूलती ग्लोबल इकोनॉमी का वादा करता है। चीन और भारत के बीच सहयोग साझा विकास और समृद्धि का प्रतीक है। साथ ही, इन दोनों देशों का एक ही विज़न है और वो है: एक समृद्ध दुनिया का निर्माण करना।
(साभार—चाइना मीडिया ग्रुप ,पेइचिंग)