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‘Bank of Canada’ के पूर्व प्रमुख Mark Carney होंगे कनाडा के नए प्रधानमंत्री

टोरंटो: कनाडा की सत्तारूढ़ लिबरल पार्टी ने ‘बैंक ऑफ कनाडा’ के पूर्व प्रमुख मार्क कार्नी को अपना नेता चुना है और अब वह देश के नए प्रधानमंत्री होंगे। यह फैसला ऐसे समय में लिया गया है जब कनाडा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के व्यापार युद्ध और विलय की धमकियों का सामना कर रहा है। कार्नी (59) प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो का स्थान लेंगे जिन्होंने जनवरी में पद से इस्तीफा देने की घोषणा की थी लेकिन अगला प्रधानमंत्री चुने जाने तक वह पद पर बने हुए हैं। कार्नी को 85.9 प्रतिशत वोट मिले हैं।

कार्नी ‘बैंक ऑफ कनाडा’ के पूर्व प्रमुख हैं और ‘बैंक ऑफ इंग्लैंड’ में अहम पद पर सेवाएं दे चुके हैं, माना जाता है कि इन अहम पदों पर रहने के कारण वह देश को आíथक चुनौतियों से बाहर निकालने में सफल रहेंगे। कार्नी ने कहा, ‘‘कोई है जो हमारी अर्थव्यवस्था को कमजोर करने की कोशिश कर रहा है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘जैसा कि हम जानते हैं डोनाल्ड ट्रंप ने हमारे द्वारा बनाए गए उत्पादों, हमारे द्वारा बेची जाने वाली वस्तुओं और हमारे जीवनयापन के साधनों पर अनुचित शुल्क लगा दिए हैं।

वह कनाडाई परिवारों, श्रमिकों और व्यवसायों पर हमला कर रहे हैं लेकिन हम उन्हें सफल नहीं होने दे सकते।’ कार्नी ने कहा कि कनाडा तब तक जवाबी शुल्क लागू रखेगा जब तक अमेरिकी इसे जारी रखता है। उन्होंने कहा, ‘‘हमने यह लड़ाई शुरू नहीं की लेकिन जब कोई तंग करता है तो कनाडावासी उसे छोड़ते भी नहीं हैं।कार्नी ने यह भी कहा, ‘‘अमेरिकी हमारे संसाधन, हमारा पानी, हमारी ज़मीन, हमारा देश चाहते हैं। ज़रा सोचिए।

अगर वे सफल हो गए तो वे हमारी जीवन शैली को नष्ट कर देंगे।’ उन्होंने कहा, अमेरिका कनाडा नहीं है और कनाडा कभी भी किसी भी तरह से, आकार या रूप में अमेरिका का हिस्सा नहीं होगा। कनाडा फिलहाल खाद्य और आवास की कीमतों में वृद्धि व आव्रजन की समस्या सहित कई चुनौतियों का सामना कर रहा है और इन कारणों से ट्रूडो की लोकप्रियता घट गई है।

ट्रंप की ओर से कनाडा पर शुल्क लगाए जाने और कनाडा को 51वां अमेरिकी राज्य बनाने की बातों से भी देश में ट्रूडो के प्रति नाराजगी है। कुछ लोग अमेरिका की अपनी यात्रएं रद्द कर रहे हैं, जबकि कुछ लोग अमेरिकी सामान खरीदने से बच रहे हैं। उम्मीद है कि कार्नी देश में जल्द ही चुनाव करवाएंगे। या तो वह चुनाव की घोषणा करेंगे या फिर संसद में विपक्षी दल इस महीने के अंत में अविश्वास प्रस्ताव लाकर चुनाव करवाने के लिए सरकार को मजबूर कर सकते हैं।

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