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भारत के सामने मौजूद अवसर और चुनौतियाँ

Metro arriving at Dwarka station in New Delhi India Asia

2023 में भारत ने एससीओ ऑनलाइन शिखर सम्मेलन और जी20 शिखर सम्मेलन जैसे महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों की मेजबानी की, जिससे जाहिर है कि भारत धीरे-धीरे वैश्विक मंच के केंद्र की ओर बढ़ रहा है। हालाँकि, भारत के सामने महत्वपूर्ण अवसर और गंभीर चुनौती दोनों मौजूद हैं। यह इन कारकों पर कैसे प्रतिक्रिया देता है यह भारत का भविष्य निर्धारित करेगा। पड़ोसी देशों के साथ स्थिर राजनयिक संबंध स्थापित करने, विवादों को उचित रूप से हल करने और संयुक्त रूप से क्षेत्रीय व वैश्विक स्थिरता और समृद्धि को बढ़ावा देने से न केवल भारत को , बल्कि सभी पूरी दुनिया को भी लाभ होगा।
2023 में एससीओ ऑनलाइन शिखर सम्मेलन, ब्रिक्स शिखर सम्मेलन, जी20 शिखर सम्मेलन और “जी77 और चीन” शिखर सम्मेलन के आयोजन के अलावा, “बेल्ट एंड रोड” शिखर सम्मेलन अक्टूबर में चीन में, तथा नवम्बर में एपीईसी शिखर सम्मेलन भी अमेरिका में आयोजित किया जाएगा। विश्व स्तरीय शिखर सम्मेलन आयोजित करने का उद्देश्य प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर आम सहमति हासिल करना है ताकि सहयोग को बढ़ावा दिया जा सके और दुनिया के सामने आने वाली समस्याओं को संयुक्त रूप से हल किया जा सके। इन मुद्दों पर, चीन और भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं का समान रुख होता है। विकासशील देशों का समर्थन करना चीन और भारत के लिए एक स्वाभाविक दायित्व और जिम्मेदारी है। जनसंख्या आकार, आर्थिक विकास दर और भौगोलिक स्थिति के मामले में भारत में विकास की अपार संभावनाएं हैं। महामारी के बाद, भारत ने उच्च आर्थिक विकास दर हासिल की, खासकर सूचना प्रौद्योगिकी और सेवाओं के क्षेत्र में। आर्थिक विकास ने अधिक अंतर्राष्ट्रीय निवेश को आकर्षित किया है और भारतीय लोगों को अपने जीवन स्तर में सुधार करने के अवसर भी प्रदान किए हैं। भारत में नई नई हाई-टेक कंपनियां और अनुसंधान संस्थान लगातार उभर रहे हैं, जो भारत के आर्थिक विकास के लिए ठोस समर्थन प्रदान करेगी।
भारत दक्षिण एशिया, मध्य पूर्व और पूर्वी एशिया को जोड़ने वाले एक महत्वपूर्ण भौगोलिक स्थान पर स्थित है, जो भारत को भू-राजनीति में एक बड़ा रणनीतिक लाभ देता है। हालाँकि, भारत की आर्थिक वृद्धि सड़क, बिजली और रसद जैसे मजबूत बुनियादी ढांचे से आधारित होनी चाहिए। उधर भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी सड़क और बिजली आपूर्ति जैसी बड़ी कमियाँ हैं, जिनके लिए बड़े पैमाने पर निवेश और सुधार की आवश्यकता है। भारत को व्यापक गरीबी और असमानता का भी सामना करना पड़ता है। देश की तीव्र आर्थिक वृद्धि के बावजूद, गरीबी अभी भी बहुत से लोगों को परेशान कर रही है। सरकार को गरीबी उन्मूलन और बुनियादी जीवन स्तर में सुधार के लिए कदम उठाने की जरूरत है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रत्येक नागरिक देश की समृद्धि में हिस्सा ले सके। इसके अलावा, भारत के आर्थिक विकास को नौकरशाही दक्षता और भ्रष्टाचार की समस्याओं का भी समाधान करना होगा।
हालाँकि, आंतरिक समस्याओं की तुलना में, आसपास के वातावरण की स्थिरता को हल करना आर्थिक विकास की कुंजी है। भारत का अपने पड़ोसियों के साथ तनाव मौजूद रहा है, जिसमें अपने प्रमुख पड़ोसियों के साथ सीमांंत विवाद भी शामिल है। तनावपूर्ण संबंधों का भारत और उसके पड़ोसियों की स्थिरता और विकास पर गंभीर प्रभाव पड़ा है। राजनयिक तरीकों से विवादों को सुलझाने और क्षेत्रीय शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए स्पष्ट रूप से महान राजनीतिक ज्ञान की आवश्यकता होती है। भारत को अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और समन्वय में सक्रिय रूप से भाग लेने, अन्य देशों के साथ घनिष्ठ आर्थिक और राजनीतिक संबंध स्थापित करने और सहयोग और जीत-जीत परिणाम प्राप्त करने की आवश्यकता है। इससे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में सक्रिय भागीदारी और बहुपक्षीय सहयोग के माध्यम से जलवायु परिवर्तन और आतंकवाद जैसी वैश्विक चुनौतियों को हल करने में भी मदद मिलेगी।
चीन और भारत के ऐतिहासिक अनुभव और यथार्थवादी मांगें समान हैं। दोनों देशों के नेताओं ने संयुक्त रूप से शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के प्रसिद्ध पांच सिद्धांतों की वकालत की थी। द्विपक्षीय सहयोग को मजबूत करना, स्थिर राजनयिक संबंध स्थापित करना, संभावित विवादों को हल करना और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना दोनों पक्षों और पूरे क्षेत्र की समृद्धि और स्थिरता के लिए अनुकूल है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि चीन और भारत को बहुपक्षीय सहयोग के माध्यम से जलवायु परिवर्तन और आतंकवाद जैसी वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए मिलकर काम करना चाहिए। प्रत्येक देश की अपनी अनूठी विकास रणनीति होती है। भारत और चीन के विकास पथ अलग-अलग हो सकते हैं। पर दोनों देशों के लोग शांतिपूर्ण विकास और समृद्धि की समान इच्छा रखते हैं।
(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

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