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पाक संसद ने मुख्य न्यायाधीश के कार्यकाल को सीमित करने वाला संविधान संशोधन बिल किया पारित

इस्लामाबाद: पाकिस्तान की ‘नेशनल असेंबली’ ने रविवार रात भर चली बहस के बाद सोमवार को विवादास्पद 26वें संविधान संशोधन विधेयक को पारित कर दिया। विधेयक में मुख्य न्यायाधीश का कार्यकाल तीन वर्ष तक सीमित करने का प्रावधान है। पाकिस्तान की मीडिया में आई खबर से यह जानकारी मिली।
‘डॉन न्यूज’ की खबर के अनुसार, 336 सदस्यों वाली ‘नेशनल असेंबली’ में मतदान के दौरान 225 सदस्यों ने विधेयक का समर्थन किया। संशोधन पारित करने के लिए सरकार को 224 मतों की आवशय़कता थी। संशोधन को मंजूरी देने के लिए दो-तिहाई बहुमत आवशय़क होता है और सीनेट में रविवार को संशोधन को मंजूरी देने के लिए चार के मुकाबले 65 वोट पड़े।
सत्तारूढ़ गठबंधन को संसद के ऊपरी सदन में 64 सदस्यों के समर्थन की आवशय़कता थी। ‘जियो न्यूज’ की खबर के अनुसार, संसद के दोनों सदनों में विधेयक के पारित होने के बाद इसे संविधान के अनुच्छेद-75 के तहत राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा। सत्तारूढ़ गठबंधन सहयोगियों के बीच आम सहमति से रविवार को कैबिनेट द्वारा अनुमोदित इस विधेयक को कानून मंत्री आजम नजीर तरार ने सीनेट में पेश किया।
जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम-फजल के पांच सीनेटर और बलूचिस्तान नेशनल पार्टी-मेंगल (बीएनपी-एम) के दो सांसदों ने भी विधेयक के पक्ष में मतदान किया। विधेयक में मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए 12 सदस्यीय आयोग गठित करने का प्रस्ताव है, जिनकी नियुक्ति तीन वर्ष के लिए होगी।‘एक्सप्रेस न्यूज’ की खबर के अनुसार, कैबिनेट बैठक से पहले प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने प्रस्तावित संवैधानिक संशोधन पर विस्तृत चर्चा के लिए राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी से मुलाकात कर उन्हें जानकारी दी और उनसे परामर्श किया।
सीनेट सत्र की शुरुआत से पहले संवाददाता सम्मेलन में कानून मंत्री तरार ने कहा कि ‘नए चेहरे’ वाले आयोग में मुख्य न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीश, दो सीनेटर और नेशनल असेंबली के दो सदस्य (एमएनए) शामिल होंगे। सीनेटर और नेशनल असेंबली के दो-दो सदस्यों में से एक विपक्षी दल से होगा। पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के नेता अली जफर ने आरोप लगाया कि उनकी पार्टी के सांसदों को विधेयक के पक्ष में वोट देने के लिए मजबूर किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी के सीनेटर गैरमौजूद थे क्योंकि उन्हें डर था कि सरकार के पक्ष में वोट देने के लिए जबरन उनपर दबाव बनाया जाएगा।
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