पंचशील समझौता एक बेहतर दुनिया के लिए अपनी मार्गदर्शक भूमिका निभाता रहेगा

शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पाँच सिद्धांतों के जन्म को आधी सदी से अधिक समय बीत चुका है।

शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पाँच सिद्धांतों के जन्म को आधी सदी से अधिक समय बीत चुका है। अंतर्राष्ट्रीय स्थिति में नाटकीय रूप से बदलाव आया है, मगर शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांत आज भी मजबूत हैं। पंचशील समझौता शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांत हैं।

इसे पहली बार औपचारिक रूप से व्यापार और सहयोग पर समझौते में प्रतिपादित किया गया था। चीन और भारत के बीच 29 अप्रैल, 1954 को इस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। इसकी प्रस्तावना में कहा गया था कि भारत और चीन की दो सरकारों ने “वर्तमान में प्रवेश करने का संकल्प लिया है।” पंचशील समझौते के पांच सिद्धांत इस प्रकार हैं:

-क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का परस्पर सम्मान

-परस्पर गैर-आक्रामकता

-एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में परस्पर हस्तक्षेप न करना

-समानता और पारस्परिक लाभ

1.शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व:


ये न केवल शांति की चीनी स्वतंत्र विदेश नीति का आधार हैं, बल्कि सामाजिक प्रणालियों और विचारधाराओं से परे राज्य-दर-राज्य संबंधों को विनियमित करने में महत्वपूर्ण सिद्धांत भी बनाते हैं। इन सिद्धांतों ने समय और अभ्यास की दोहरी परीक्षाओं का सामना किया है, और दुनिया भर में शांति और सहयोग को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अंतर्राष्ट्रीय स्थिति गहन परिवर्तनों से गुजर रही है।

शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पाँच सिद्धांत भारत और चीन को अन्य पूर्वी देशों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में दिए गए महान सैद्धांतिक योगदान हैं। दोनों देश इन सिद्धांतों का दृढ़ता से पालन कर रहें है और इन्हें अपनी विदेश नीति के मार्गदर्शन के रूप में शामिल करते है। इन सिद्धांतों का पालन करते हुए, भारत और चीन ने अन्य सभी देशों के साथ मित्रता और सहयोग के संबंध विकसित करने का प्रयास किया है।

साल 1955 में इंडोनेशिया के बांडुंग में आयोजित एशियाई-अफ्रीकी सम्मेलन में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के संचालन के लिए दस सिद्धांतों को अपनाया गया, जिसके अंदर शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांत शामिल थे। इसके बाद, तीसरी दुनिया के देशों द्वारा निष्पक्ष अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था की मांग की प्रक्रिया में, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों को विकासशील देशों के भारी बहुमत द्वारा स्वीकार और अपनाया गया है।

आज के परिपेक्ष में कुछ घटनाओं को छोड़ दें तो पंचशील का सिद्धांत दोनों देशों के लिए वैसा ही है जैसा पिछले 70 दशकों से भी अधिक समय से चला आ रहा है। भारत-चीन संबंधों को देखें तो पता चलता है कि पंचशील सिद्धांत आज भी दोनों देशों के बीच एक मज़बूत पुल का काम करता है और दोनों पड़ोसियों को आपस में सांस्कृतिक, दार्शनिक और आर्थिक रूप से भी क़रीब लाता है, हालाँकि, अनिश्चितताएँ और अस्थिरताएँ अभी भी मौजूद हैं। क्षेत्रीय संघर्ष और उथल-पुथल जारी है।

पारंपरिक और गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरे आपस में जुड़े हुए हैं, एकपक्षवाद और आधिपत्य सामान्य घटनाएँ हैं। ऐसी परिस्थितियों में, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांत एक बेहतर दुनिया के लिए अपनी मार्गदर्शक भूमिका निभाते रहेंगे।
समाज, अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय ताकत के विकास के साथ, भारत और चीन पांच सिद्धांतों पर कायम रहेंगे और सभी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों को गहरा करने और क्षेत्र और पूरी दुनिया की शांति, स्थिरता और समृद्धि में अधिक योगदान देने के लिए प्रतिबद्ध होंगे।

(रिपोर्टर—देवेंद्र सिंह)

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