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South Korea के राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पारित होने पर क्यों चुप है प्योंगयांग

रविवार सुबह तक उत्तर कोरिया के किसी भी सरकारी मीडिया, जिसमें उत्तर कोरिया का मुख्य समाचार पत्र रोडोंग सिनमुन और कोरियन सेंट्रल न्यूज एजेंसी (केसीएनए) शामिल हैं, ने यून के महाभियोग पर कोई रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की थी।

सोल: उत्तर कोरिया की सरकारी मीडिया ने दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सूक योल के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पारित होने पर चुप्पी साध रखी है। नेशनल असेंबली ने शनिवार को यून के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पारित किया था। रविवार सुबह तक उत्तर कोरिया के किसी भी सरकारी मीडिया, जिसमें उत्तर कोरिया का मुख्य समाचार पत्र रोडोंग सिनमुन और कोरियन सेंट्रल न्यूज एजेंसी (केसीएनए) शामिल हैं, ने यून के महाभियोग पर कोई रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की थी।

हालांकि प्योंगयांग का यह रवैया 2016 से बिल्कुल अलग है। उस वक्त 9 दिसंबर, 2016 को तत्कालीन राष्ट्रपति पार्क ग्यून-हे पर महाभियोग प्रस्ताव पारित हुआ था और उत्तर कोरिया की मीडिया ने इस पर तुंरत बात की थी। प्योंगयांग के प्रचार आउटलेट उरीमिनजोक्किरी ने नेशनल असेंबली की ओर से पार्क के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पारित किए जाने के ठीक चार घंटे बाद इस पर रिपोर्ट की थी।

वेबसाइट ने उस रात बाद में पार्क के महाभियोग पर केसीएनए का एक लेख भी छापा था। प्योंगयांग ने अंतर-कोरियाई संबंधों की व्याख्या दो शत्रुतापूर्ण राज्यों के बीच के रिश्तों के रूप में की थी। अब वह यून के महाभियोग पर चुप्पी साधकर अपनी इसी नजरिए को बल देना चाहता है।

बता दें दक्षिण कोरिया की नेशनल असेंबली ने शनिवार को राष्ट्रपति यून सूक-योल के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पारित किया था। मार्शल लॉ लागू करने के लिए उनके खिलाफ यह प्रस्ताव लाया गया था। इसके बाद यून को निलंबित कर दिया गया जबकि प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री हान डक-सू ने कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार संभाल लिया।

अब सभी की निगाहें संवैधानिक न्यायालय पर टिकी हैं, जो राष्ट्रपति यून सूक योल के महाभियोग पर अंतिम फैसला लेगा। न्यायालय के पास यह फैसला लेने के लिए 180 दिन का समय है कि संसद के उस फैसले को मंजूरी दी जाए या नहीं, जिसके तहत या तो यून को पद से हटाया जाएगा या उन्हें पद पर बहाल किया जाएगा।

बता दें राष्ट्रपति यून ने मंगलवार (03 दिसंबर) रात को आपातकालीन मार्शल लॉ की घोषणा की, लेकिन बुधवार को संसद द्वारा इसके खिलाफ मतदान किए जाने के बाद इसे निरस्त कर दिया गया। मार्शल लॉ कुछ घंटों के लिए ही लागू रहा। हालांकि चंद घटों के लिए लागू हुए मार्शल लॉ ने देश की राजनीति को हिला कर रख दिया।

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