26 सितंबर को, रवीन्द्रनाथ टैगोर की चीन यात्रा की शताब्दी के उपलक्ष्य में विश्व-भारती विश्वविद्यालय के चीना भवन में एक फोटो प्रदर्शनी और सेमिनार हुआ। इस कार्यक्रम में कोलकाता में चीन के उप महावाणिज्य दूत छिन योंग, विश्व-भारती विश्वविद्यालय के शिक्षकों और छात्रों, चीन के पेकिंग विश्वविद्यालय, शनचन विश्वविद्यालय और श्यामन विश्वविद्यालय में भारतीय संस्कृति और रवींद्रनाथ टैगोर के अध्ययन में संलग्न तीन विद्वानों और स्थानीय मीडिया सहित 100 से अधिक लोगों ने भाग लिया।
छिन योंग ने कहा कि 100 साल पहले रवींद्रनाथ टैगोर की पहली चीन यात्रा का चीन और भारत के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर गहरा प्रभाव पड़ा। 100 सालों के बाद, चीनी महावाणिज्य दूतावास ने भारत के साथ स्मारक गतिविधियों की एक श्रृंखला आयोजित की है, इससे दोनों देशों के बीच संबंधों के स्वस्थ और स्थिर विकास में मदद मिली है।
उन्होंने कहा कि आज की दुनिया में, टैगोर के शांति, सहिष्णुता और सहयोग के विचार बहुत व्यावहारिक महत्व के हैं और मानव जाति के साझा भविष्य वाले समुदाय के निर्माण की चीन की अवधारणा के साथ अत्यधिक सुसंगत हैं। हमें टैगोर की वैचारिक उपलब्धियों और मानवतावादी भावना को आगे बढ़ाना जारी रखना चाहिए, मानविकी आदान-प्रदान के माध्यम से दोनों देशों के बीच समझ को और बढ़ाना चाहिए, ताकि संयुक्त रूप से चीन-भारत मित्रता को बढ़ावा दिया जा सके और दोनों देशों के लोगों को लाभ पहुंचाया जा सके।
वहीं, विश्व-भारती विश्वविद्यालय के कार्यकारी उपाध्यक्ष ने कई वर्षों से विश्व-भारती विश्वविद्यालय के चीना भवन को समर्थन देने के लिए चीनी महावाणिज्य दूतावास और चीनी विश्वविद्यालयों को धन्यवाद दिया, और इस बात पर जोर दिया कि चीना भवन चीन और भारत के बीच शैक्षिक सहयोग और मानविकी आदान-प्रदान के लिए एक महत्वपूर्ण पुल है, जो दोनों पक्षों को सहयोग को और मजबूत करने के लिए एक ठोस आधार प्रदान देता है। उन्हें आशा है कि भविष्य में चीन और भारत बहु-स्तरीय और बहु-क्षेत्रीय मानविकी आदान-प्रदान करेंगे, दोनों देशों के लोगों के बीच मैत्रीपूर्ण आवाजाही को और बढ़ावा देंगे।
(साभार-चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)