सबके लिए ऊर्जा यानी बिजली आज भी सपना है। संयुक्त राष्ट्र संघ के एक आंकड़े के मुताबिक, दुनिया में आज भी करीब साढ़े 67 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिन्हें बिजली उपलब्ध नहीं है। इनमें से करीब अस्सी फीसद लोग तो अकेले सहारा उपक्षेत्र यानी अफ्रीका में है। लोगों को अंधेरे से निकालना और पर्यावरण सुरक्षा का ध्यान रखते हुए ऐसा करना दुनिया की सबसे बड़ी चुनौती है। आज भी दुनिया के कई विकासशील क्षेत्रों के लोग अब भी अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए प्रदूषणकारी जीवाश्म ईंधन पर ही निर्भर हैं। इसकी वजह से गरीबी पर काबू पाना आसान नहीं है। अगर बिजली और ऊर्जा के लिए ऐसे ही साधनों पर दुनिया निर्भर रही तो संयुक्त राष्ट्र नवीकरण ऊर्जा मिशन के आंकड़ों के अनुसार 2030 तक दुनिया का हर चौथा व्यक्ति असुरक्षित, अस्वास्थ्यकर और अकुशल खाना पकाने की प्रणाली, जैसे लकड़ी या गोबर के उपयोग पर ही निर्भर करेगा।
हालाँकि इस हालात में अब सुधार हो रहा है। फिर भी दुनिया के तमाम देश अब भी सतत विकास के लक्ष्य को हासिल करने के लिए गंभीर नहीं है। जिसका लक्ष्य 2030 तक सभी के लिए सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा तक पहुंच सुनिश्चित करना है। दरअसल जीवाश्म ईंधन के जरिए ग्रीनहाउस गैसों का खूब उत्सर्जन होता है, जो पृथ्वी को ढंक लेतीं हैं और सूर्य की गर्मी को धरती पर आने से रोकती है। इसी वजह से दुनिया आज जलवायु परिवर्तन और उसके खतरे को झेल रही है। इसे सीमित करने के लिए, दुनिया को जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता धीरे-धीरे समाप्त करनी होगी और सतत और नवीकरण ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों में निवेश करना होगा। जो स्वच्छ, सुलभ, किफायती, टिकाऊ और विश्वसनीय हों।
वैसे प्रकृति ने हमें नवीकरणीय ऊर्जा के तमाम स्रोत, जैसे सूर्य, हवा, पानी, अपशिष्ट और पृथ्वी की गर्मी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध कराए हैं। जिनके जरिए अगर ऊर्जा तैयार की जाए तो प्रकृति को कोई क्षति नहीं होती और हवा में ग्रीनहाउस गैसों या प्रदूषकों का उत्सर्जन नहीं होता। जहां तक चीन और भारत का नवीकरण ऊर्जा से जुड़ा संदर्भ है, दोनों देशों को अपनी बड़ी जनसंख्या को गरीबी से उबारने और अपनी आर्थिक विकास दर को बनाए रखने के लिए ऊर्जा की भारी जरूरत है। चूंकि अभी सतत और नवीकरण ऊर्जा का शत-प्रतिशत लक्ष्य हासिल करना दोनों ही देशों के लिए कठिन है, इसलिए दोनों देशों के विकासात्मक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए इस दिशा में जबरदस्त दुविधा का सामना करना पड़ रहा है।
हालांकि दोनों देशों ने अपने-अपने ढंग से इस दिशा में प्रयास करना तेज कर दिया है। विश्व ऊर्जा परिषद के 2013 के आंकड़ों पर भरोसा करें तो चीन में आरईटी की कीमतों में तेजी से आई गिरावट ने यहां नवीकरणीय संसाधनों के उपयोग को बढ़ावा दिया है। जिसकी वजह से चीन अपने ढंग से नवीकरण ऊर्जा पर काफी काम कर रहा है। चूंकि चीन में तेजी से औद्योगीकरण हुआ है और चीन में ऊर्जा के पर्याप्त नवीकरणीय स्रोत हैं। इसके बावजूद चीन को अपनी जरूरतों के लिए बिजली उत्पादन में कोयले का ज्यादा उपयोग करना पड़ रहा है।
भारत और चीन पर केंद्रित एक अध्ययन के मुताबिक, भारत की तुलना में चीन में नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग अधिक है। नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों में यह अंतर दोनों देशों के बीच सतत विकास के सबसे मजबूत कारणों में से एक हो सकता है। नवीकरण ऊर्जा के उपयोग को मापने वाले मानक एसडीजी यानी सतत विकास सूचकांक के 2021 के आंकड़े के अनुसार, चीन जहां 72.1 सूचकांक स्कोर के साथ 57वें स्थान पर रहा जबकि भारत इस सूचकांक में 60.1 स्कोर के साथ 120 वें स्थान पर रहा। लेकिन दो साल में चीन की तुलना भारत ने इस सूचकांक में पहले की तुलना में खुद को बेहतर किया है। इस सूचकांक के हिसाब से चीन जहां जहां 72.1 स्कोर के साथ जहां 63 वें स्थान पर पहुंच गया है, वहीं भारत 63.45 स्कोर के साथ 120 स्थान से आठ स्थान उछलकर 112 वें नंबर पर आ गया है। जाहिर है कि भारत इस दिशा में बेहतर कदम उठा रहा है।
बीते दिसंबर में संयुक्त अरब अमीरात की राजधानी दुबई में सतत ऊर्जा को लेकर हुए कॉप-28 शिखर सम्मेलन में 2030 तक दुनिया की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने की प्रतिज्ञा रखी गई। जिस पर हस्ताक्षर करने से भारत और चीन ने इनकार कर दिया। दोनों देशों की अपनी घरेलू मजबूरियां हैं। इसके बावजूद चीन और भारत – दोनों ने 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा में तीन गुना वृद्धि के लिए समर्थन व्यक्त करते रहे हैं।
(लेखक—उमेश चतुर्वेदी, वरिष्ठ भारतीय पत्रकार)