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विश्व खाद्य दिवस पर विशेष–करीब तीन अरब आबादी की पेट भरते चीन और भारत

आबादी के लिहाज से भारत ने चीन को पछाड़ते हुए पहले नंबर पर पहुंच गया है। भारत की आबादी जहां अनुमानित रूप से एक अरब 45 करोड़ है, वहीं चीन की आबादी उससे महज एक करोड़ कम यानी एक अरब 44 करोड़ है। दोनों की आबादी को मिला दें तो यह तीन अरब से कुछ ही कम बैठती है। जाहिर है कि दोनों ही देशों के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने लोगों का पेट भरना है। कहना न होगा कि दोनों देशों ने अपनी विशाल आबादी की भूख को शांत करने के लिए कृषि उपज बढ़ाने पर भरपूर जोर दिया है। 

खाद्यान्न उत्पादन के लिहाज से चीन की प्रगति भारत की तुलना में बेहतर कही जाएगी। विश्व बैंक के विकास संकेतकों के मुताबिक, साल 2021 में भारत में कृषि योग्य भूमि का प्रतिशत 60.05 था, जिसमें देश के कुल क्षेत्रफल का करीब 51 फ़ीसदी हिस्से पर खेती की जाती है। इसमें से सिर्फ 48.8 प्रतिशत हिस्सा ही सिंचित है। यानी बाकी हिस्से पर आसमानी कृपा यानी प्राकृतिक बारिश के ही जरिए खेती होती है। ताजा आंकड़ों के अनुसार भारत की जनसंख्या का 58 फीसद हिस्सा खेती और किसानी पर ही निर्भर है। 

इसकी तुलना में जरा चीन को देखते हैं। क्षेत्रफल के लिहाज से चीन भारत से तीन गुना बड़ा देश है। लेकिन उसके क्षेत्रफल के करीब 12 फीसद हिस्से पर ही खेती होती है। रकबा के लिहाज से देखें तो भारतीय कृषि क्षेत्र से कम पड़ता है। लेकिन अनाज की पैदावार के लिहाज से दोनों देशों की तुलना करते हैं तो भारत चीन से पीछे नजर आता है। भारत सरकार के आंकड़ों के लिहाज से वर्ष 2023-24 के दौरान देश में कुल खाद्यान्‍न उत्‍पादन रिकॉर्ड 3322.98 लाख टन अनुमानित है। यह 2022-23 के दौरान हुई 3296.87 लाख टन खाद्यान्न पैदावार की तुलना में 26.11 लाख टन अधिक है। लेकिन चीन भारत से कम रकबे में खेती के बावजूद भारत से दोगुना से ज्यादा अनाज का उत्पादन कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार, साल 2023 में चीन में कुल 6954.1 लाख टन से भी ज्यादा अनाज का उत्पादन हुआ। चीन सरकार के आंकड़ों के अनुसार देश के कुल अनाज उत्पादन में जहां सालाना 1.3 फीसद की बढ़त देखी जा रही है। वहीं मक्का के उत्पादन में 4.2 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है। 

चीन के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो के बीते साल आंकड़ों के अनुसार, चीन का अनाज उत्पादन साल दर साल 1.3 प्रतिशत बढ़कर 2023 में 6954.1 लाख टन के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया। ब्यूरो के मुताबिक चीन ने नौंवी पर अनाज उत्पादन में 6500 लाख टन का रिकॉर्ड बनाया है। इसी ब्यूरो के मुताबिक, चीन का मक्का उत्पादन 2022 से 4.2 प्रतिशत बढ़ गया, जबकि चावल और गेहूं का उत्पादन क्रमशः 0.9 प्रतिशत और 0.8 प्रतिशत कम हो गया। ध्यन रखने की बात यह है कि चीन के किसानों को हर ला खराब मौसम का सामना करना पड़ता है। इसके बावजूद वहां बंपर फसल हुई। दिलचस्प यह है कि देश की पीली नदी और हुइहे नदी के किनारे के इलाकों में फसल अवधि के दौरान लंबे समय तक  जहां बारिश हुई, वहीं देश के उत्तरी और उत्तरपूर्वी क्षेत्रों को बाढ़ का सामना करना पड़ा। इसी तरह देश के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में सूखा भी रहा। चीन ने अनाज उत्पादन के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने की कई योजनाएं चला रखी हैं। कृषि में तकनीक का प्रयोग तेजी से बढ़ा है। इसी तरह चीन ने समुद्री खारे पानी में उत्पादित हो सकने वाली धान की किस्में विकसित की हैं।

भारी पैदावार के चलते चीन ने अपने लोगों का पेट भरने में बड़ी सहूलियत हासिल की है। एक आंकड़े के अनुसार  चीन की कुपोषित जनसंख्या दर साल 2000 में जहां 16.2 प्रतिशत रही, वह 2017 में 8.6 प्रतिशत हो गई। इसकी वजह रही कि इस अवधि के दौरान चीन में प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 330 डॉलर की तुलना में बढ़कर 9,460 हो गई। दूसरी तरफ भारत की पिछले साल करीब 16.6 प्रतिशत आबादी कुपोषित थी, जो अब घटकर 13.3 प्रतिशत हो गई है। वैसे संयुक्त राष्ट्र ने 2015 तक विश्व भूख दर को आधा करने का लक्ष्य दुनिया को दिया था। चीन ने उसे हासिल कर लिया है। इसकी वजह है कि चीन ने भोजन में मांस की खपत बढ़ी है। इसकी वजह है कि वहां की प्रति व्यक्ति आय लगातार बढ़ती गई है। भारत ने भी इस दिशा में बड़ी सफलता हासिल की है। भारत ने एक काम जरूर किया है कि वह कोरोना काल से देश की लगभग 84 करोड़ आबादी को तकरीबन मुफ्त में अनाज मुहैया करा रहा है। भारत में कुपोषण की दर भले ही अब भी चिंताजनक हो, लेकिन भूख मिटाने की समस्या नहीं रही। 

औपनिवेशिक गुलामी के चलते भारत की महान कृषि व्यवस्था जहां बदहाल रही, वहीं चीन की भी स्थिति बहुत ठीक नहीं रही। लेकिन दोनों देशों ने अपनी-अपनी आबादी की भूख मिटाने के लिए अपने-अपने ढंग से काम किया है। इसे लिए दोनों ही देशों की नीतियों की सराहना करनी होगी। हां, भारत को अपनी कुपोषित जनसंख्या की हालत सुधारने के लिए जारी प्रयासों को तेज करना होगा।

(साभार—चाइना मीडिया ग्रुप ,पेइचिंग)  (लेखक— उमेश चतुर्वेदी)  

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