“स्पाइस रूट” और “वन बेल्ट, वन रोड”

हाल ही में G20 शिखर सम्मेलन के दौरान “भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा” (IMEC) प्रस्तावित हुआ। कुछ लोग इसे “स्पाइस रोड” का आधुनिक संस्करण कहते हैं और मानते हैं कि यह चीन के “वन बेल्ट, वन रोड” का प्रतिकार है। हालाँकि, इतिहास में, चाहे वह “सिल्क रोड” हो या “स्पाइस रोड” हो, वे सभी प्राचीन काल.

हाल ही में G20 शिखर सम्मेलन के दौरान “भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा” (IMEC) प्रस्तावित हुआ। कुछ लोग इसे “स्पाइस रोड” का आधुनिक संस्करण कहते हैं और मानते हैं कि यह चीन के “वन बेल्ट, वन रोड” का प्रतिकार है। हालाँकि, इतिहास में, चाहे वह “सिल्क रोड” हो या “स्पाइस रोड” हो, वे सभी प्राचीन काल में पूर्वी और पश्चिमी व्यापारियों के दावारा विभिन्न क्षेत्रों में माल पहुंचाने के मार्ग हैं, और उन का उद्देश्य विभिन्न सभ्यताओं के आदान-प्रदान को बढ़ाना है।
चीन ने 2013 में “बेल्ट एंड रोड” पहल का प्रस्ताव रखा. जिसने दूसरे देशों के बुनियादी ढांचे के निर्माण को बढ़ावा देने में महान योगदान दिया है। मार्च 2022 के अंत तक, चीन ने 149 देश और 32 अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ 200 से अधिक “बेल्ट एंड रोड” समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। जो कनेक्टिविटी, निवेश, व्यापार, वित्त, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, समाज, मानविकी, लोगों की आजीविका और महासागर जैसे क्षेत्रों से संबंधित हैं। 2013 से 2021 तक, चीन और “बेल्ट एंड रोड” वाले देशों के बीच माल व्यापार की संचयी मात्रा 11 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गई, और “बेल्ट एंड रोड” से जुड़े 57 देशों में चीनी कंपनियों का निवेश 120.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक रहा है। उधर विश्व बैंक की एक शोध रिपोर्ट के मुताबिक “वन बेल्ट, वन रोड” निर्माण के कारण संबंधित देशों में 7.6 मिलियन लोगों को अत्यधिक गरीबी से और 32 मिलियन लोगों को मध्यम गरीबी से बाहर निकाला जाएगा, और वैश्विक आय में 2.9% की वृद्धि होगी।
हालाँकि, बेल्ट एंड रोड पहल और दुनिया में अन्य विकास ब्लूप्रिंट के अनुकूल भी है। चीन “बेल्ट एंड रोड” निर्माण को बढ़ावा देते समय अन्य विकास योजनाओं के साथ सहयोग से इनकार नहीं करता है। और चीन दुनिया में सबसे मुश्किल बुनियादी ढांचे का निर्माण करने में सक्षम देश भी है। उदाहरण के लिए, “भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा” योजना के अनुसार, अरब प्रायद्वीप के पूरे रेगिस्तान में एक रेलवे बनाया जाएगा। हालाँकि, न तो अमेरिका, या इस आर्थिक गलियारे से जुड़े अन्य देशों के पास ऐसी रेलवे बनाने की तकनीकी क्षमता प्राप्त है। उधर यूरोपीय और अमेरिकी व्यापार मंडल भी आम तौर पर इस रेलवे लाइन की निर्माण योजना पर नकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं। लेकिन, अगर हम “बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव” के साथ सहयोग करते हैं, तो इस रेलवे का निर्माण निश्चित सफल होगा।

बुनियादी ढांचे के निर्माण के संदर्भ में, खुले अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने की बड़ी आवश्यकता है। लेकिन, कुछ देश चीन का बहिष्कार करना चाहते हैं। भारत अपनी आजादी के बाद से हमेशा स्वतंत्र कूटनीति का पालन किया करता है। 1955 में, भारत और चीन के राज्य नेताओं ने संयुक्त रूप से शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों का प्रस्ताव रखा था। भारत ने यूगोस्लाविया, मिस्र, इंडोनेशिया और अन्य देशों के साथ संयुक्त रूप से “गुटनिरपेक्ष आंदोलन” भी शुरू किया था। हालाँकि, हाल के वर्षों में, कुछ भारतीयों ने अमेरिका की “इंडो-पैसिफिक” रणनीति का अनुपालन करने की कोशिश करते हुए, तथाकथित “क्वाड” में शामिल होकर पश्चिम की शरण लेने का इरादा दिखाया है। क्या इस तरह के प्रयास से वास्तव में भारत को लाभ होगा, यह अत्यधिक संदिग्ध है।
हाल ही में भारत और कनाडा के बीच हुई मुठभेड़ ने दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है। कनाडा ने भारत सरकार पर एक कनाडाई नागरिक व सिख नेता की हत्या करने का आरोप लगाया, दोनों देशों ने एक-दूसरे के शीर्ष राजनयिकों को भी निष्कासित कर दिया। घटना के बाद अमेरिका ने घटना की जांच का समर्थन करने और खुफिया सहयोग प्रदान करने का दावा करते हुए कनाडा का पक्ष लिया। पर कुछ मीडिया का कहना ​​है कि यह ठीक इसलिए हुआ क्योंकि भारत ने G20 शिखर सम्मेलन में पश्चिम की कुछ राजनीतिक मांगों को पूरा नहीं किया, जिससे उसे पश्चिम से प्रतिशोध का सामना करना पड़ा। अंतिम निष्कर्ष के बावजूद, यह जाहिर है जो भारत और पश्चिम के बीच गहरा मतभेद मौजूद है।
चीन-भारत संबंधों का स्थिर विकास दोनों देशों और पूरी दुनिया के हित में है। अपनी स्वतंत्र कूटनीतिक परंपरा को त्यागकर किसी पक्ष के हाथ में एक कार्ड या मोहरा बनना स्पष्ट रूप से भारत के हितों के खिलाफ है। G20 शिखर सम्मेलन में जलवायु, ऋण और वित्तपोषण जैसे कई मुद्दों पर आम सहमति तक पहुंचने में विफल रहा, जिससे पता चलता है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्दों से निपटने के लिए G20 तंत्र की क्षमता वास्तव में सीमित है। तुलनात्मक रूप से कहें तो एससीओ, ब्रिक्स और “बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव” जैसे सहयोग तंत्र व्यावहारिक सहयोग प्राप्त करने में अधिक सक्षम हैं।
(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

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