कुछ पश्चिमी लोग ताइवान की अंतरराष्ट्रीय स्थिति के मुद्दे पर ताइवान-स्वतंत्रता के लिए कुछ आधार खोजने की कोशिश कर रहे हैं। पर यह सब व्यर्थ है। द्वितीय युद्ध के बाद काहिरा घोषणा और पॉट्सडैम उद्घोषणा सहित अंतरराष्ट्रीय कानूनी दस्तावेजों ने असंदिग्ध रूप से ताइवान पर चीन की संप्रभुता की पुष्टि की। साथ ही, ताइवान का मुद्दा सिर्फ किसी एक द्वीप के स्वामित्व से कहीं अधिक जुड़ा है। इसमें सीधे तौर पर चीनी लोगों की राष्ट्रीय भावनाएं और चीनी जनता का अपनी राष्ट्रीय गरिमा के लिए लड़ने का दृढ़ संकल्प भी शामिल है।
50 साल से पहले जारी किये गये संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव 2758 में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि ताइवान चीन का हिस्सा है। हालाँकि, हाल के वर्षों में पश्चिम में कुछ लोग यह कहते रहे हैं कि ताइवान की स्थिति निर्धारित नहीं है, या ताइवान “अन्य देशों के साथ राजनयिक संबंध स्थापित कर सकता है और ताइवान संयुक्त राष्ट्र सहित अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में भाग ले सकता है। जिनका ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य से खंडन किया जाना चाहिये। अक्टूबर 1971 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के 26वें सत्र के दौरान, “संयुक्त राष्ट्र में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के सभी वैध अधिकारों को बहाल करने और ताइवान को तुरंत निष्कासित करने” का प्रस्ताव भारी बहुमत से पारित किया गया था। बाद में प्रकाशित संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव 2758 ने संयुक्त राष्ट्र तथा अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों में ताइवान सहित तमाम चीन के प्रतिनिधित्व के मुद्दे को हल किया था। जिसके अनुसार “दो चीन” या “एक चीन, एक ताइवान” की स्थिति बनाने के किसी भी प्रयास को पूरी तरह से अवरुद्ध किया जाना चाहिये।
कानूनी दृष्टिकोण से, संयुक्त राष्ट्र महासभा का प्रस्ताव 2758 इस मुद्दे का समाधान करता है कि चीन का प्रतिनिधित्व कौन करता है। संयुक्त राष्ट्र में चीन की सीट ताइवान सहित पूरे चीन का प्रतिनिधित्व करती है। अब तक दुनिया के 183 देशों ने एक-चीन सिद्धांत के आधार पर चीन के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए हैं। प्रस्ताव 2758 के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र की सभी आधिकारिक दस्तावेज़ों में ताइवान को “ताइवान, चीन का प्रांत” के रूप में संदर्भित किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र सचिवालय के कानूनी मामलों के कार्यालय द्वारा जारी कानूनी दस्तावेज में इस बात पर जोर दिया गया कि “संयुक्त राष्ट्र का मानना है कि चीन के एक प्रांत के रूप में ताइवान की कोई स्वतंत्र स्थिति नहीं है”, और “ताइवान के अधिकारियों को किसी भी प्रकार की सरकारी स्थिति प्राप्त नहीं है।”
चीनी सरकारों ने ताइवान स्वतंत्रता बलों की गतिविधियों का दृढ़ता से विरोध किया। हाल ही में, चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में ताइवान मुद्दे को हल करने के लिए चीन के विश्वास और दृढ़ संकल्प के बारे में विस्तार से बताया। वांग यी ने कहा कि ताइवान मुद्दा शतप्रतिशत चीन का आंतरिक मामला है। ताइवान अंततः मातृभूमि के आलिंगन में लौट आएगा, और ताइवान जलडमरूमध्य के दोनों किनारे निश्चित रूप से पुनर्एकीकरण हासिल करेंगे। यह 1.4 अरब चीनी लोगों की दृढ़ इच्छाशक्ति और इतिहास की अपरिहार्य प्रवृत्ति है। “ताइवान-स्वतंत्रता” गतिविधियाँ ताइवान जलडमरूमध्य में शांति के साथ असंगत हैं। लेकिन, दुनिया में कुछ ताकतों ने मौखिक रूप से स्वीकार किया है कि वे एक-चीन नीति के लिए प्रतिबद्ध हैं और “ताइवान-स्वतंत्रता” का समर्थन नहीं करते हैं। पर इस के साथ ही वे राजनीतिक और सैन्य क्षेत्रों में ताइवान-स्वतंत्रता का सहारा करते हैं और इसके लिए तैयारी कर रहे हैं।
तथ्यों से पता चला है कि कुछ ताकतें ताइवान-स्वतंत्रता के मुद्दे को चीन के विकास को रोकने के लिए एक उपकरण के रूप में मानती हैं, और ताइवान-स्वतंत्रता का समर्थन करना उनके वैश्विक रणनीति का एक हिस्सा तथा चीन को दबाने के उनके प्रयासों में एक मोहरा भी है। लेकिन, ताइवान का मुद्दा सिर्फ एक द्वीप के स्वामित्व से अधिक शामिल है। इसमें सीधे तौर पर चीनी लोगों की राष्ट्रीय भावनाएँ और आधुनिक समय में अपनी राष्ट्रीय गरिमा के लिए लड़ने का चीनी लोगों का दृढ़ संकल्प भी शामिल है। चीन ने अनेक बार यह स्पष्ट कर दिया है कि वह अपने मूल हितों से जुड़े मुद्दे पर कभी हार नहीं मानेगा, और राष्ट्रीय कायाकल्प के साथ-साथ चीन का पूर्ण पुनर्मिलन निश्चित रूप से साकार होगा।
(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)