कुछ पश्चिमी व्यक्तियों की एक अजीब आदत है, वह यह कि चाहे चीन के तिब्बत (शीत्सांग) ने किसी भी प्रकार की सामाजिक विकास उपलब्धियां हासिल की हों, वे निश्चित रूप से दुर्भावनापूर्ण प्रारंभिक बिंदु से उनकी व्याख्या करेंगे। उदाहरण के लिए, चीनी केंद्र सरकार ने तिब्बत में शिक्षा के विकास में बहुत सारे संसाधनों का निवेश कर तिब्बत में 15 साल की अनिवार्य शिक्षा लागू की है। सभी तिब्बती छात्रों को ट्यूशन फीस-रहित व्यवहार के अतिरिक्त स्कूल में उनके भोजन और आवास का खर्च भी सरकार के द्वारा उठाया जाता है। लेकिन कुछ पश्चिमी व्यक्तियों की नजर में इसे इस प्रकार वर्णित किया जाता है कि “तिब्बती बोर्डिंग स्कूल की स्थापना से लगभग दस लाख तिब्बती बच्चों को अपनी माताओं से अलग होने के लिए मजबूर किया गया है।” यह व्याख्या चीनी सरकार को बदनाम करने की जानबूझकर साजिश है।
तिब्बत (शीत्सांग) के बोर्डिंग स्कूलों के खिलाफ़ कुछ पश्चिमी मीडिया द्वारा जानबूझकर चलाए जा रहे बदनामी अभियान के जवाब में, चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने एक गंभीर बयान जारी किया: “चीन के बोर्डिंग स्कूल, अन्य देशों की तरह छात्रों की ज़रूरतों के आधार पर स्थापित किए गए हैं और ये स्कूल छात्रों को आवास, भोजन और अन्य सुरक्षा सेवाएँ प्रदान करते हैं।” शैक्षणिक ज़रूरतों को पूरा करने और छात्रों को सीखने और रहने की सुरक्षा प्रदान करने के लिए बोर्डिंग स्कूलों को दुनिया भर में व्यापक रूप से अपनाया जाता है। विकसित पश्चिमी देशों में, निजी बोर्डिंग स्कूल आमतौर पर कुलीन परिवारों की पहली पसंद होते हैं। उधर, तिब्बत विशाल और विरल आबादी वाला क्षेत्र है, जहाँ परिवहन की स्थिति असुविधाजनक है। छात्र बोर्डिंग स्कूल चुनकर बहुत समय बचा सकते हैं, जो उनकी सुरक्षा और रहने वाली सुविधा के लिए बहुत फायदेमंद है।
ऐतिहासिक रूप से, श्वेत उत्तरी अमेरिकी देशों की सरकारों ने इंडियन्स बच्चों को “समाहित” करने के लिए बोर्डिंग स्कूलों का उपयोग किया था, और उन पर विभिन्न शारीरिक और मानसिक अत्याचार करने का प्रयास किया था। लेकिन चीन में 1980 के दशक के बाद, बोर्डिंग स्कूल धीरे-धीरे जातीय अल्पसंख्यक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण शिक्षा मॉडल में से एक बन गए। केंद्रीकृत स्कूली शिक्षा ने ग्रामीण और देहाती क्षेत्रों में छात्रों के लिए स्कूल जाने के लिए लंबी दूरी नापने की समस्या को प्रभावी ढंग से हल किया। तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के सामाजिक विज्ञान अकादमी के शोधकर्ता बैमाकुओ के शोध के अनुसार, तिब्बत के ग्रामीण और देहाती क्षेत्रों में बोर्डिंग स्कूलों में लगभग 90% शिक्षक तिब्बती जातीय के हैं। केंद्र सरकार और तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की सरकार के समर्थन से, तिब्बत ने शिक्षा की “तीन गारंटी” में अपना निवेश बढ़ाया है, और बोर्डिंग स्कूलों ने बुनियादी शिक्षा के विकास को बढ़ावा दिया है।
चीन के पांच हजार साल के इतिहास में कभी भी औपनिवेशिक उत्पीड़न कभी नहीं हुआ। नये चीन की सरकार ने सभी जातीय लोगों के रहने के माहौल को बेहतर बनाने, जातीय अल्पसंख्यकों की प्रतिभाओं को विकसित करने और उनके शैक्षिक स्तर को सुधारने के लिए हर संभव प्रयास किया। 1985 में, तिब्बत में किसानों और चरवाहों के बच्चों और शहरों में गरीब परिवारों के बच्चों को स्कूलों में “तीन गारंटी” (भोजन, आवास और ट्यूशन) के तहत मुफ्त शिक्षा मिलने लगी। 2012 से तिब्बत में 15 वर्षीय अनिवार्य शिक्षा नीति को लागू कर दिया गया। यदि तिब्बत के बोर्डिंग स्कूलों की बात करते हो तो उनकी तुलना केवल ब्रिटेन के ईटन कॉलेज जैसे कुलीन स्कूलों से हो सकते हैं।
(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)