China’s amazing development: सुधार और खुलेपन के बाद चीन की अर्थव्यवस्था में बहुत तेज़ी से वृद्धि हुई है। वर्तमान में चीन की जीडीपी भारत से पाँच गुना है। इन दोनों देशों की समान या मिलती स्थितियां हैं, पर चीन क्यों आगे है, यह वास्तव में गंभीरता से अध्ययन करने योग्य है। पर अगर सिर्फ निवेश, व्यापार आदि अंतरों पर ध्यान केंद्रित करते हो, तो वास्तविक कारणों का पता लगाना मुश्किल है। प्रश्नों के सच्चे उत्तर की खोज करना अधिक महत्वपूर्ण है।
1840 में हुए ओपियम युद्ध में चीन के किंग राजवंश को ब्रिटेन से पराजित कर दिया गया था, और 1900 में आठ-राष्ट्र गठबंधन की सेनाओं ने ने चीनी राजधानी पेइचिंग पर भी कब्जा कर लिया था। उस समय चीन की स्थिति भारत की तुलना में भी अधिक खराब थी। लेकिन, चीनी संस्कृति का सार आत्म-सम्मान है। 1949 में नये चीन की स्थापना से सुधार और खुलेपन तक चीन ने 11.5% की औसत वार्षिक औद्योगिक विकास दर के साथ एक पूर्ण औद्योगिक प्रणाली का निर्माण किया। स्टील का उत्पादन 1950 में 610,000 टन से बढ़कर 1978 में 31.78 मिलियन टन हो गया। सुधार और खुलेपन की नीति अपनाने के बाद, चीन ने आदिम संचय निधि अर्जित करने के लिए हल्के उद्योग का उपयोग किया, और “प्रौद्योगिकी के लिए व्यापार बाजार” द्वारा अपना खुद का माल ब्रांड स्थापित किया। उनमें एक सफलतापूर्ण मिसाल है कि चीन ने विदेशी प्रौद्योगिकी के आयात के आधार पर 98% की स्थानीयकरण दर के साथ अपनी हाई-स्पीड रेल प्रणाली का निर्माण किया।
चीन प्राथमिक औद्योगिक उत्पादों के प्रदाता से उच्च तकनीक के स्वामी की ओर अग्रसर हो रहा है। अब चीन को विश्व के 60% 5G बेस स्टेशन, विश्व का 75% फोटोवोल्टिक मॉड्यूल्स प्राप्त है। 2023 में चीन का अनुसंधान एवं विकास निवेश 3.3 ट्रिलियन युआन तक पहुंच गया, जो यूरोपीय संघ के कुल निवेश से भी अधिक है। चीन के पास दुनिया के 65% नए ऊर्जा वाहन, 45% औद्योगिक रोबोट और 43.3% पेटेंट आवेदन (2024) भी प्राप्त हो गये हैं। विश्व बैंक की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार चीन का विनिर्माण मूल्य संवर्धन 6.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया, जो विश्व का 29.3% है (संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और जर्मनी के संयुक्त मूल्य से भी अधिक)। आज चीन में हर घंटे आठ हाई-टेक कंपनियाँ जन्म लेती हैं और हर दिन 45,000 नए पेटेंट आवेदन दाखिल किए जाते हैं। नवाचार की इस गति ने मानव तकनीकी विकास के इतिहास को फिर से लिख दिया है।
वास्तव में, चीन की उपलब्धियों के पीछे वास्तविक आध्यात्मिक प्रेरक शक्ति उनके सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक आत्मविश्वास तथा राष्ट्रीय आत्मसम्मान से आती है। चीन को भी एक समय पश्चिमी दमन के तहत अपमानित किया गया था औरएक अर्ध-उपनिवेश बनाया गया था। लेकिन चीनी लोगों ने कभी यह नहीं माना कि पश्चिम द्वारा थोपी गई राजनीतिक प्रणाली उचित है और उसे अपनाया जाना चाहिए। चीन की अपनी सभ्यतागत परंपराएं हैं और उसे उन पर गर्व है। चीनी लोग कभी भी बाहरी दबाव के आगे नहीं झुकते, बल्कि अपना रास्ता अपनाने पर जोर देते हैं। यही वह राष्ट्रीय भावना है जो चीन को नवप्रवर्तन करने के लिए प्रोत्साहित करती है। पश्चिम के पीछे आँख मूंदकर चलने के बजाय अपना रास्ता अपनाना ही चीन की विकास उपलब्धियों का वास्तविक कारण है।
(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)