यूएन में फिलिस्तीन के प्रवेश को वीटो करने से अमेरिका का दोहरा मापदंड साबित

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य के नाते अमेरिका ने अप्रैल 18 को यूएन में फिलिस्तीन के प्रवेश संबंधी प्रस्ताव को वीटो कर दिया ।इस ने न सिर्फ कई दशकों में फिलिस्तीनी जनता का सपना तोड़ दिया

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य के नाते अमेरिका ने अप्रैल 18 को यूएन में फिलिस्तीन के प्रवेश संबंधी प्रस्ताव को वीटो कर दिया ।इस ने न सिर्फ कई दशकों में फिलिस्तीनी जनता का सपना तोड़ दिया ,बल्कि फिलिस्तीन-इज़रायल सवाल पर अमेरिका का पाखंड और दोहरा मापदंड साबित किया है ।संबंधित विश्लेषकों के विचार में जब गाज़ा में युद्ध चल रहा है ,अमेरिका ने अपनी भूमिका नहीं निभायी ।जब फिलिस्तीनी जनता ने न्यायपूर्ण मांग की ,तो अमेरिका ने इसकी रोकथाम की।

अमेरिका की एकतरफा नीति वास्तव में फिलिस्तीन-इज़रायल शांति प्रक्रिया की बड़ी बाधा बन चुकी है । पिछले अक्तूबर में नये दौर के फिलिस्तीन- इज़रायल संघर्ष होने के बाद फिलिस्तीनी राष्ट्रीय सत्ताधारी संस्था गाज़ा स्थिति को नियंत्रित नहीं कर सकती और यूएन में शामिल करने पर बड़ी आशा बांधने लगी ताकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय का व्यापक समर्थन मिले और इज़रायल पर अधिक दबाव डाला जाए।

चीन समेत कई देशों का विचार भी है कि यूएन में फिलिस्तीन को औपचारिक सदस्य स्वीकारने से फिलिस्तीन को इज़रायल के साथ समान स्थान प्राप्त होगा और फिलिस्तीन इज़रायल वार्ता के लिए लाभदायक भी है ।पर अमेरिका के वीटो अधिकार का प्रयोग करने से फिलिस्तीनी जनता की अभिलाषा और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की कोशिशों को नाकाम कर दिया गया है।

विश्लेषकों के विचार में मध्यपूर्व में अपने आधिपत्य और घरेलू राजनीतिक मांग के मुताबिक अमेरिकी सरकार हमेशा इज़रायल को सबसे महत्वपूर्ण मित्र देश मानती है और उसके साथ किसी बॉटम लाइन के बिना पक्षपात बरतती है । इज़रायल फिलिस्तीन का यूएन में औपचारिक सदस्य बनने का विरोध करता है ,तो अमेरिका निश्चय ही सहयोग करेगा ।दूसरी तरफ ,अमेरिका का विचार है कि फिलिस्तीन- इज़रायल सवाल में कोई भी प्रगति अपने नेतृत्व में की जा सकती है ।

अगर यूएन में फिलिस्तीन औपचारिक सदस्य बन जाए ,तो फिलिस्तीन- इज़रायल शांति प्रक्रिया में अमेरिका की भूमिका कमजोर होगी। अमेरिका की नजर में अपना स्वार्थ सुरक्षित करना अधिक महत्वपूर्ण है। वर्तमान में फिलिस्तीन- इज़रायल संघर्ष जारी है और मानवीय संकट गंभीर हो रही है ।चिंताजनक बात है कि इस संघर्ष का बाहरी फैलाव हो रहा है ।फिलिस्तीन सवाल मध्य पूर्व सवाल का केंद्र है ।पहले की तुलना में यूएन में फिलिस्तीन को औपचारिक सदस्य के रूप में शामिल कराना एक नाजुक सवाल है।

(साभार—चाइना मीडिया ग्रुप ,पेइचिंग)

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