दुनिया में सुनाई दे रही शांगहाई सहयोग संगठन की धमक, चीन के नेतृत्व में प्रभावशाली बना SCO

शांगहाई सहयोग संगठन दुनिया के प्रमुख संगठनों में से एक हैं. जो दुनिया की राजनीतिक, आर्थिक, रक्षा और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में अहम भूमिका निभाता है. सैद्धांतिक रूप में ये एक यूरेशिया केंद्रित क्षेत्रीय संगठन है जो अपनी स्थापना के केवल दो दशकों में ही एक मजबूत वैश्विक मंच के रूप में उभरा है,.

शांगहाई सहयोग संगठन दुनिया के प्रमुख संगठनों में से एक हैं. जो दुनिया की राजनीतिक, आर्थिक, रक्षा और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में अहम भूमिका निभाता है. सैद्धांतिक रूप में ये एक यूरेशिया केंद्रित क्षेत्रीय संगठन है जो अपनी स्थापना के केवल दो दशकों में ही एक मजबूत वैश्विक मंच के रूप में उभरा है, जिसमें चीन की अहम भूमिका है.  

शांगहाई सहयोग संगठन भौगोलिक दायरे और जनसंख्या के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन माना जाता है, क्योंकि यह एशिया के लगभग 80 प्रतिशत क्षेत्र और दुनिया की 40 प्रतिशत आबादी को कवर करता है. इस संगठन की उपयोगिता का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2021 तक इसकी जीडीपी, ग्लोबल जीडीपी का लगभग 20 प्रतिशत था. भारत और पाकिस्तान भी एशिया के अहम देश माने जाते हैं. ऐसे में चीन की पहल पर ही 24 जून 2016 को भारत और पाकिस्तान को भी औपचारिक तौर पर इस संगठन का सदस्य बनाया गया. 

चीन आज के वक्त में दुनिया के साथ-साथ एशिया में प्रमुख शक्ति के रूप में देखा जाता है. शांगहाई सहयोग संगठन वह मंच है जो दुनिया में चीन की उपयोगिता को बतलाता है. इस बात का अंदाजा आप इस तरीक से लगा सकते है कि अमेरिका एक बड़ी शक्ति है, लेकिन कहने में गुरेज नहीं होना चाहिए कि चीन के नेतृत्व में शांगहाई सहयोग संगठन के माध्यम से दुनिया के तीन बड़े देश यानि तीन महाशक्तियां भारत, रूस और चीन एक मंच पर आते हैं, जो इस संगठन में चीन की भूमिका को बयां करता है. जिस प्रकार विश्व का शक्ति संतुलन तेजी से बदल रहा है उसमें चीन, भारत और रूस की भूमिका बढ़ गई है. क्योंकि यह तीन देश ऐसे हैं जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका समेत दूसरे बड़े देशों के कॉम्पटीटर हैं. यानि चीन अमेरिकी प्रभुत्व को पिछले कई सालों में सफलता के साथ चुनौती दे रहा है, उसमें शांगहाई संघठन की भूमिका सबसे अहम है.

दुनिया में चीन का नेतृत्व प्रभावशाली दिखा है. आर्थिक, रक्षा और शांति के क्षेत्र में चायना एशिया में बड़ी ताकत है. भले ही भारत और चीन के बीच कई विवाद हो लेकिन वैश्विक मंच पर दोनों देश कई मामलों में एक साथ रहते हैं. शांगहाई सहयोग संगठन के जरिए चीन ने दुनिया में अपनी अलग छाप छोड़ी है. जिसका उदाहरण भी चीन ने दिया है. चीन के मंच पर दुनिया के तीन प्रभावशाली और बड़े मुल्क, भारत, रूस और पाकिस्तान एक साथ एक मंच पर आते हैं रक्षा, व्यापार, शांति, सीमा विवाद जैसे सभी बड़े मुद्दों पर अपनी बात रखते हैं. यानि जरूरी नहीं है कि हर मसले को अमेरिका के नेतृत्व में ही उठाया जाए. चीन ने सीधे तौर पर यह बताया कि एशिया के देश अपनी समस्याओं का समाधान खुद कर सकते हैं. एक और उदाहरण यह भी है कि रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के बीच भी शांगहाई सहयोग संगठन की बैठकें लगातार होती रही. जिससे यह मैसेज गया कि चीन दुनिया में चल रही सभी चुनौतियों के साथ तालमेल बनाकर न केवल नेतृत्व करना जानता है, बल्कि सभी देशों के बीच तालमेल बनाने में भी अपनी भूमिका निभा सकता है.

विश्व जब चुनौतियों के दौर से गुजर रहा है तब शांगहाई संगठन की जरूरत और महत्व एशिया के लिहाज से बहुत जरूरी है. आज के वक्त में अमेरिका भी इस संगठन की शक्तियों को समझता है. दरअसल, दुनिया में लंबे वक्त तक अमेरिका ने एक तरह से दादागिरी ही की है. अमेरिका खुद को मजबूत बताता रहा है. लेकिन दुनिया के कुछ प्रभावशाली मुल्क डॉलर के मुकाबले लामबंद हुए हैं. जिनमें चीन, भारत, रूस प्रमुख रूप से शामिल है. यही वजह है कि चीन और रूस के नेतृत्व में आर्थिक और सामरिक लामबंदी शुरू हो चुकी है. जिस तरह ब्रिक्स जैसे दूसरे संगठन केवल आर्थिक और व्यापारिक हितों को ध्यान में रखकर योजना बनाते हैं, उसी तरह शांगहाई सहयोग संगठन कई सामरिक मुद्दों पर अमेरिकी प्रभुत्व को समाप्त करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ा है. चीन और रूस के बाद भारत भी इस संगठन का सदस्य हैं इसलिए भारत ने भी कई मामलों में खुलकर दोनों देशों का समर्थन किया है. ऐसे में चीन, रूस और भारत के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए अमेरिका भी इस संगठन के प्रति बेहद संवेदनशील रवैया अपनाने लगा है, जो दुनिया में शांगहाई संगठन की जरूरत और महत्व को दर्शाता है.

(लेखकः दिव्या तिवारी)

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