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आबादी के नाम पर फिर China को बदनाम करने की कोशिश कर रही पश्चिमी मीडिया

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष द्वारा 19 अप्रैल को जारी “स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट 2023” के मुताबिक, भारत इस साल के मध्य तक चीन की जगह लेकर विश्व का सब से अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा। यह जनसंख्या विकास का परिणाम है, लेकिन पश्चिमी मीडिया की कुछ खबरों में यह बदल गया है। “दुनिया का गुरुत्वाकर्षण का केंद्रस्थानांतरित हो गया है”, “वैश्विक व्यवस्था में बड़े बदलाव”, “जनसांख्यिकीय नुकसान ने चीन के लिए अपने कायाकल्प के लक्ष्य को प्राप्त करना अधिक कठिन बना दिया है”… कुछ समय के लिए , पश्चिमी मीडिया ने सनसनीखेज रिपोर्ट्स की एक श्रृंखला निकाली है। जिसके पीछे का अर्थ हैः चीन का विकास बड़ी मुसीबत में पड़ने वाला है।

वास्तव में, पश्चिमी मीडिया के लिए चीन की जनसंख्या को एक समस्या के रूप में बताना कोई नई बात नहीं है। हाल के वर्षों में जनसंख्या और प्रसव नीति से लेकर बुजुर्गों की जनसंख्या में वृद्धि और जन्म संख्या में कमी के बारे में वे निरंतर यह कहना चाहते हैं कि चीन में “जनसांख्यिकीय लाभांश” गायब हो गया है और चीन का पतन होगा और विश्व अर्थव्यवस्था में गिरावट भी आएगी। हालांकि उन्होंने हर तरह से चीन को बदनाम किया, फिर भी चीन का विकास जारी रहा और चीन ने एक बड़ी आबादी के साथ स्थिर आर्थिक विकास का चमत्कार पैदा किया। अमेरिका जैसे पश्चिमी देश जानबूझकर इसे अनदेखा करते हैं कि चीन के विकास मॉडल और राजनीतिक तंत्र की विशेषता चीन की महान विकास उपलब्धियों के कारण हैं। उन्होंने “सबसे अधिक आबादी वाले देश के बदलने” के विषय का उपयोग कर चीन के आर्थिक विकास में मंदी आने की बात कही और चीन के विकास की गति को दबाने की पूरी कोशिश की है।

जन्म दर में कमी और बच्चे पैदा करने की इच्छा में गिरावट पूरी दुनिया के सामने आने वाली आम समस्याएं हैं। यह आर्थिक विकास के चरण, लोगों की जागरूकता और अन्य सामाजिक-आर्थिक कारकों से निकटता से संबंधित है। उदाहरण के लिए, पश्चिमी विकसित देश आम तौर पर श्रम की कमी जैसी समस्याओं का सामना करते हैं। इस संदर्भ में, पश्चिमी मीडिया “जनसांख्यिकीय नुकसान आर्थिक विकास में बाधा देगा” जैसा कुछ क्यों नहीं कहतीजनसंख्या देश के विकास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन क्या इसे सही मायने में आर्थिक विकास में बदला जा सकता है, यह देश के राजनीतिक तंत्र और नीति कार्यान्वयन पर निर्भर करता है। पिछले अनुभवों ने बार-बार यह साबित किया है कि जनसंख्या एक देश के विकास का लाभ बन सकती है, साथ ही यह एक भारी बोझ भी बन सकती है। कई विकासशील देश अपनी बड़ी आबादी के बावजूद शिक्षा स्तर, कमजोर उद्योग और कारोबारी माहौल जैसे कारकों के कारण विकसित नहीं हो पाए हैं। भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 में भारत के “जनसंख्या विस्फोट” के बारे में चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा, “अगर लोग शिक्षित और स्वस्थ नहीं होंगे, तो न तो परिवार खुश होगा और न ही देश।”

चीन के विकास की संभावनाओं को आंकने के लिए हमें न केवल जनसंख्या के आकार के एकल संकेतक पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, बल्कि आर्थिक विकास की गुणवत्ता और सूक्ष्मता पर भी ध्यान देना चाहिए। चीन में 24 करोड़ से अधिक लोग उच्च शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं, और नए श्रम बल के लिए औसत शिक्षा वर्ष 14 वर्ष तक पहुंच गये हैं। यह देखा जा सकता है कि चीन का “जनसांख्यिकीय लाभांश” गायब नहीं हुआ है, “प्रतिभा लाभांश” आकार का विस्तार हो रहा है और चीन में विकास की गति अभी भी मजबूत है। इस वर्ष की पहली तिमाही में चीन की आर्थिक वृद्धि दर बाहरी अपेक्षाओं से अधिक 4.5% तक पहुंच गई। भविष्य में चीन श्रम-गहन उद्योगों को अलविदा देगा और वैश्विक औद्योगिक श्रृंखला और आपूर्ति श्रृंखला के मध्य से उच्च स्तर की ओर बढ़ना एक अपरिहार्य प्रवृत्ति है।

(साभार—चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

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