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यूक्रेन में भी पश्चिम की लाभ-प्राप्ति की रणनीति जा रही है दोहराई

West Profit-Seeking Strategy

West Profit-Seeking Strategy : अगर हम इतिहास पर नजर डालें तो यह साफ़ दिखता है कि पश्चिम की भू-राजनीतिक रणनीति में लूट की प्रवृत्ति हमेशा से रही है। जब यूरोपीय देशों ने कहा कि “यूक्रेन का भविष्य यूरोप में निहित है,” तो उनके दिमाग में खनिज संसाधनों का नक्शा हो सकता है। आज यूक्रेन में सैन्य संघर्ष जारी है, लेकिन पश्चिमी देश पहले ही अपनी योजना पर काम करने लगे हैं। उनकी नजरें अब यूक्रेन के प्राकृतिक संसाधनों पर हैं, और खनिज संसाधन लूट का प्रमुख लक्ष्य बन चुके हैं। 

हाल ही में, यूक्रेनी और अमेरिकी अधिकारियों ने यह घोषणा की कि दोनों पक्षों ने एक प्रारंभिक समझौता किया है, जिसके तहत यूक्रेन के खनिजों और अन्य संसाधनों से राजस्व प्राप्त किया जाएगा। यूरोपीय संघ भी इस मामले में पीछे नहीं रहना चाहता और अपनी हिस्सेदारी के लिए संघर्ष कर रहा है।

कीव स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के अध्ययन के अनुसार, यूक्रेन में 100 से अधिक महत्वपूर्ण खनिजों के भंडार हैं, साथ ही तेल और गैस के मामूली भंडार भी मौजूद हैं। अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के मुताबिक, यूक्रेन में 50 ऐसे खनिज हैं, जिन्हें अमेरिकी आर्थिक विकास और राष्ट्रीय रक्षा के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है, जैसे टाइटेनियम, लिथियम और दुर्लभ मृदा खनिज। यूक्रेन के पास यूरोप का सबसे बड़ा यूरेनियम भंडार भी है, जिसका उपयोग परमाणु ऊर्जा और हथियारों में किया जा सकता है। 

इसके अलावा, तेल और गैस के बड़े भंडार यूक्रेन के विभिन्न हिस्सों में स्थित हैं, और संघर्ष से पहले हुए सर्वेक्षणों से यह भी पता चला था कि अपतटीय क्षेत्र में भी प्राकृतिक गैस के विशाल भंडार मौजूद हैं।

अमेरिका और यूरोपीय संघ के बीच इन संसाधनों को लेकर प्रतिस्पर्धा है, और यूक्रेन अब खुद को बाहरी दबावों के बीच महसूस कर रहा है। इस स्थिति में उसकी संप्रभुता खतरे में पड़ रही है। यह स्थिति 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी के प्रारंभ में अफ्रीका के विभाजन जैसी है, जब यूरोपीय साम्राज्यवादी शक्तियों ने अफ्रीका के बड़े हिस्से पर नियंत्रण का दावा किया था। उस समय बेल्जियम के राजा लियोपोल्ड द्वितीय ने खुद को “सभ्य शक्ति” के रूप में पेश किया था, लेकिन असल में उसने कांगो में जघन्य अत्याचार कर क्षेत्र के रबर व्यापार का शोषण किया था।

आजकल, पश्चिमी नेता युद्धोत्तर पुनर्निर्माण के नाम पर यूक्रेन के साथ घनिष्ठ संबंध बना रहे हैं, लेकिन असल में वे लिथियम खदानों और दुर्लभ मृदा रिफाइनरियों के खाका छिपाए हुए हैं। ऐसा लगता है कि इतिहास फिर से खुद को दोहरा रहा है, हालांकि शिकारी बदल गए हैं। जब ब्रिटिशों ने सन् 1788 में ऑस्ट्रेलिया को उपनिवेश बनाया, तो उन्होंने इसे “टेरा नुलियस” यानी “किसी की नहीं” भूमि घोषित कर दिया। 

अब, 2025 में, जब अमेरिकी अधिकारी यह दावा करेंगे कि यूक्रेन ने अपने विशाल प्राकृतिक संसाधनों को संयुक्त रूप से विकसित करने के लिए सहमति दी है, तो उनका आह्वान “जितना हम प्राप्त कर सकते हैं” बिल्कुल वही है जो स्पेनिश विजेता पिजारो ने पेरू में इंका साम्राज्य से सोने की मांग करते वक्त कहा था।

पिछले समय के तोपों और युद्धपोतों के मुकाबले आज के संसाधन शिकारी अधिक कुटिल और कुशल हो गए हैं। यूक्रेन में यह प्रणाली ठीक तरह से काम कर रही है—अमेरिकी सैन्य सहायता ऋण में बदल रही है, जो यूक्रेन को फंसा देती है, जबकि यूरोपीय संघ के पुनर्निर्माण कोष उसे अपनी पसंदीदा स्थिति प्रदान कर रहे हैं। 

इतिहास को देखकर यह साफ़ होता है कि लूट की प्रवृत्ति पश्चिम की भू-राजनीतिक रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही है। जब यूरोपीय नेता कहते हैं, “यूक्रेन का भविष्य यूरोप में है,” तो उनके मन में खनिज संसाधनों का नक्शा जरूर होगा। यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की द्वारा किए गए हर नए समझौते के साथ, यूक्रेन का भविष्य अधिक नियंत्रण में आ रहा है।

(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

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