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चीन-भारत संबंधों से निपटने की वास्तव में क्या कठिनाइयां हैं?

चीन-भारत संबंध दुनिया के सबसे जटिल और अप्रत्याशित द्विपक्षीय संबंधों में से एक हैं। सतह पर, चीन-भारत संबंधों की कठिनाइयां सीमा टकराव से पैदा होती हैं, पर वास्तव में, अधिक जटिल जड़ चीन और भारत इन दो देशों के राष्ट्रीय मनोविज्ञान का अंतर मौजूद है, जिससे उनकी एक-दूसरे और पूरी दुनिया को देखने की दृष्टि अलग है। यद्यपि दोनों पक्षों के प्रयासों के बाद हाल के दिनों में चीन-भारत संबंधों में धीरे-धीरे गर्मजोशी के संकेत दिखाई दिए हैं, लेकिन कोई भी यह अनुमान नहीं लगा सकता कि बाहरी परिस्थितियों में परिवर्तन के साथ दोनों देशों के संबंधों में क्या नए मोड़ आएंगे। 

चार साल के सीमा तनाव के बाद, चीन और भारत ने गत वर्ष की 21 अक्टूबर को घोषणा की कि वे अपने सैनिकों के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा पर गश्त करने के सवाल पर एक समझौते पर पहुँच गए। इसके बाद, दोनों देशों के नेता कज़ान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में मिले। विश्लेषकों का मानना है कि चीन-भारत संबंधों में परिवर्तन न केवल दोनों देशों के संबंधों को सहज बनाने की आंतरिक जरूरतों के कारण है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्थिति में बदलाव की तत्काल आवश्यकता भी है। भारत को आशा है कि वह वास्तविक नियंत्रण रेखा के आधार पर सीमा मुद्दे को हल करने के लिए अनुकूल अंतर्राष्ट्रीय वातावरण का लाभ उठा सकेगा। लेकिन अलग दृष्टिकोण यह है कि मौजूदा वास्तविक नियंत्रण रेखा भी ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों द्वारा उस समय लगाई गई थी, जब चीनी और भारतीय जनता शक्तिहीन रहती थी, और किसी भी पक्ष को औपनिवेशिक शासकों द्वारा छोड़ी गई चीज़ों को वैध विरासत के रूप में नहीं मानना चाहिए। साथ ही, अमेरिकी राजनीतिक स्थिति में बदलाव ने भी एशिया-प्रशांत क्षेत्र में नए राजनीतिक और आर्थिक दबाव ला दिए हैं। इसलिए चीन और भारत दोनों ही उम्मीद करते हैं कि वे उभरते रणनीतिक दबावों से निपटने में पारस्परिक संबंधों में सहजता का उपयोग करेंगे।

भारत-चीन संबंधों को सुलझाने में कठिनाई इस तथ्य में निहित है कि भारत में कुछ लोग हमेशा यह मानते हैं कि चीन को अमेरिका के दबाव का सामना करने के कारण भारत के साथ समझौता करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। इसलिए भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सुधार, परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह, व्यापार घाटा और आपूर्ति श्रृंखला बदलाव सहित कई मुद्दों पर चीन को ऊंची कीमत दे रहा है। हालाँकि, ये चीनी राष्ट्रीय चरित्र को नहीं समझते हैं कि जब मजबूत बाहरी दबाव का सामना करना पड़ता है तो चीनी लोग हमेशा और अधिक मजबूती से लड़ते हैं। जब अमेरिका और पश्चिम महामारी और अन्य स्थितियों का लाभ उठाकर चीन को दमन करने की कोशिश कर रहे हैं, भारत में कुछ ने चीन की दुर्दशा का उपयोग करके चीन को रियायतें देने के लिए मजबूर करने की कोशिश की। पर चीनी दर्शन के अनुसार ऐसा व्यवहार बिल्कुल अस्वीकार्य है। उधर चीनी लोगों की विचारधारा के मुताबिक, चीन और भारत दोनों ही ऐसे राष्ट्र हैं जो कभी साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद द्वारा गहराई से उत्पीड़ित थे, और दोनों देशों को एकता और सहयोग के साथ खड़ा होना चाहिए। चीन उन लोगों से बेहद घृणा करते हैं जो चीन को मजबूर करने के लिए अमेरिका की शक्ति का उपयोग करना चाहते हैं। दूसरी ओर, भारत में कुछ व्यक्ति पूरी तरह से पश्चिमी पक्ष में खड़े हैं, वे पश्चिमी दृष्टिकोण से चीन की आलोचना करते हैं और यहां तक कि चीन को हराने में अमेरिका की सहायता करने का प्रयास करते हैं।  

चीन के बारे में गलत आकलन करना कुछ पश्चिमी सूत्रों की सामान्य गलती है, लेकिन कुछ भारतीय लोग भी यह कल्पना करते हैं कि चीन का विकास किसी निश्चित स्तर पर ही ठप रहेगा। वास्तव में, चीन ने न केवल दुनिया का सबसे शक्तिशाली विनिर्माण उद्योग स्थापित किया है, जिसका औद्योगिक उत्पादन दुनिया का एक तिहाई हिस्सा हो गया है, बल्कि चीन दुनिया का एकमात्र देश भी बन गया है जो एआई जैसे उच्च तकनीक वाले क्षेत्रों में अमेरिका के साथ तालमेल रख सकता है। अब चीन डिजिटल प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए विनिर्माण उद्योग का उन्नयन कर रहा है जो विश्व अर्थव्यवस्था की भविष्य की संरचना को पूरी तरह से बदलेगा। लगातार बदलती दुनिया के सामने दूरदर्शी नीतियां अपनाना बहुत ज़रूरी है। भारत को चीन और अपनी स्थिति के बारे में ज़्यादा यथार्थवादी समझ होनी चाहिए और एशिया और दुनिया के हितों को संयुक्त रूप से बढ़ावा देने के लिए एकजुट और व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। चीन को रोकने के लिए बाहरी ताकतों का इस्तेमाल करने की कोई भी कोशिश पूरी तरह से गलत है और कामयाब नहीं होगी।

(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

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