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जब भारत बोलता है, पूरी दुनिया है सुनती

“जब भारत बोलता है तो पूरी दुनिया सुनती है”, यह नारा भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका की अपनी हालिया यात्रा मे दिये एक भाषण में सुनाया गया है। यह सच है कि जिन देशों पर साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद ने आक्रमण और अत्याचार किया था, उनके लोगों के लिए अपने देश की अंतर्राष्ट्रीय स्थिति में सुधार देखने से ज्यादा रोमांचक कुछ भी नहीं है। पर प्रभावी देश विदेश नीतियों के माध्यम से देश का अच्छा विकास कैसे किया जाए, यह अभी भी सोचने लायक सवाल है।

चीन और भारत जैसी प्राचीन सभ्यताएँ पश्चिमी शक्तियों के पैरों तले रौंद दी गईं थीं।न केवल उनके लोगों का जीवन घाटी में पड़ गया था, बल्कि विश्व मंच पर भी उनकी कोई आवाज़ नहीं सुनती थी। स्वतंत्रता और मुक्ति प्राप्त करने के बाद भी, धीमे आर्थिक विकास और विशेष रूप से आपसी फूट के कारण पश्चिम को विभाजित करने के अवसर छोड़ा गया और इस कारण से हम अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में बहुत सारे अधिकार से चूंक गये। तो विकासशील देशों, विशेष रूप से उभरती अर्थव्यवस्थाओं को सही घरेलू और विदेशी नीतियों का चयन करना चाहिए, एकजुट होना चाहिए और एक-दूसरे के साथ सहयोग करना चाहिए, और एक आवाज में बोलना चाहिए, ताकि अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी स्थिति को सही मायने में बढ़ाया जा सके। ब्रिक्स सहयोग तंत्र ही उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए सहयोग कर संयुक्त रूप से अपनी आवाज उठाने के लिए सबसे अच्छा मंच है।

रूस में आयोजित होेने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में, सदस्य देशों को ब्रिक्स सहयोग के माध्यम से एक उचित अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बनाने की उम्मीद है। उनमें से, ब्रिक्स देशों की वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करने और अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक और वित्तीय प्रणाली के विविध विकास को बढ़ावा देने के लिए ब्रिक्स भुगतान प्रणाली की स्थापना एक महत्वपूर्ण सामग्री है। 2023 में, ब्रिक्स देशों का वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 35.7% हिस्सा है, जबकि G7 का हिस्सा केवल 29% है। ब्रिक्स देशों का वैश्विक ऊर्जा बाजार में 40% हिस्सा है, जैसे जनसंख्या, प्राकृतिक संसाधन, माल व्यापार , भोजन और ऊर्जा आपूर्ति आदि में, ब्रिक्स देशों का अनुपात भी ग्रुप 7 सात से बहुत ज्यादा रहता है। उधर हरित और निम्न-कार्बन अर्थव्यवस्था, फोटोवोल्टिक्स, डिजिटल प्रौद्योगिकी और नई ऊर्जा वाहनों जैसे उद्योगों में, ब्रिक्स देशों को सबसे उन्नतिशील तकनीकी स्तर प्राप्त है, और उनके बीच तकनीकी सहयोग की शानदार संभावनाएं हैं।

लेकिन, अमेरिका द्वारा नियंत्रित SWIFT भुगतान प्रणाली अन्य देशों को अमेरिकी मौद्रिक नीति के नकारात्मक प्रभावों को सहन करने के लिए मजबूर करती है। इस के वित्तीय आधिपत्य से ब्रिक्स देशों सहित “ग्लोबल साउथ” देशों को गंभीर नुकसान पहुंचाया गया है। वर्तमान ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान चर्चा की जाने वाली स्वतंत्र ब्रिक्स भुगतान मंच की स्थापना से अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक और वित्तीय प्रणाली के विविधीकरण और लोकतंत्रीकरण को प्रभावी ढंग से बढ़ावा मिलेगा और गैर-पश्चिमी देशों को अधिक व्यापार विकल्प प्राप्त करने में मददगार होगा। उधर, ब्रिक्स भुगतान प्रणाली की स्थापना एक विशिष्ट मुद्रा की स्थिति को बढ़ाने के लिए नहीं है, वह भारतीय रुपये सहित विभिन्न मुद्राओं के उपयोग के लिए एक मंच बनेगा।डिजिटल मुद्रा और ब्लॉकचेन तकनीक पर आधारित ब्रिक्स भुगतान प्रणाली सुरक्षा, दक्षता, विकेंद्रीकरण, विविध रूपों और कम लागत जैसे महत्वपूर्ण लाभों के साथ एक सच्चा वित्तीय नवाचार है।

ब्रिक्स देशों ने अर्थव्यवस्था और व्यापार, वित्त, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, कृषि, संस्कृति, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे कई क्षेत्रों में प्रभावी व्यावहारिक सहयोग किया है, ब्रिक्स सहयोग तंत्र विश्व आर्थिक विकास को बढ़ावा देने, तथा वैश्विक शासन में सुधार के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण बन गया है। यह बहुत स्पष्ट है कि ब्रिक्स सहयोग तंत्र पर भरोसा करके, सभी सदस्य देश अधिक विकास लाभ और अधिक अंतरराष्ट्रीय आवाज प्राप्त कर सकते हैं, जबकि ब्रिक्स से दूर रहकर इनके हितों के लिए अनुकूल नहीं है। किस के साथ सहयोग करने से भारतीय हितों के अनुरूप होता है, इस बात पर भारतीय लोग सही निष्कर्ष निकाल सकते हैं।

(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

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