चीन के विदेश मंत्री छीन कांग 2 मार्च को नई दिल्ली में जी20 के विदेश मंत्री बैठक में भाग लेंगे और इस अवसर पर जीवन के सभी क्षेत्रों के लिए अनेक मुद्दों पर चीन के रुखों को स्पष्ट करेंगे। साथ ही छीन कांग और भारतीय विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर के साथ बातचीत करने और द्विपक्षीय संबंधों पर स्पष्ट बातचीत करने की व्यापक उम्मीदें भी हैं।
चीन और भारत विश्व में ऐसे दो देश हैं जिनके पास लगभग 1.4 बिलियन की आबादी है। दोनों देश उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएँ हैं जो राष्ट्रीय पुनरोद्धार के लिए अथक प्रयास कर रही हैं। इतिहास या वास्तविकता के दृष्टिकोण से कोई फर्क नहीं पड़ता, चीन और भारत साझा नियति के एक ही समुदाय में स्थित हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि चीन और भारत के बीच मजबूत द्विपक्षीय संबंध बनाए रखना दोनों के मौलिक हित में है। उधर, चीन और भारत के बीच खाई पैदा करने के प्रयास हमेशा होते रहे हैं। और कुछ मीडिया ने भी अजीब टिप्पणी देकर यह दावा किया है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जिसे पश्चिम की पंक्ति में बिठाना चाहिये।
अमेरिका मार्च के अंत में दूसरे लोकतंत्र शिखर सम्मेलन को आयोजित करने की योजना बना रहा है। लेकिन, दुनिया को कभी भी राजनीतिक व्यवस्थाओं के अनुसार विभाजित नहीं किया गया है। कुछ विकासशील देश सतही रूप से पश्चिमी विचारधारा के अनुरूप हैं, लेकिन हित संबंधों के मामले में पूरी तरह विपरीत हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि हमारी दुनिया “लोकतंत्र” और “गैर-लोकतंत्र” के अनुसार विभाजित नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय औद्योगिक श्रृंखला और मूल्य श्रृंखला में विभिन्न स्थितियाँ वास्तव में प्रत्येक देश की सही स्थिति दर्शाती हैं। आज की दुनिया एक पिरामिड है, जिसके शीर्ष पर अमेरिका तथा कुछ विकसित देश बैठतें हैं। और विकासशील देश पिरामिड के मध्य और निचले स्तरों पर स्थित हैं। पिरामिड के शीर्ष पर बैठे देशों को दुनिया की अधिकांश संपत्ति प्राप्त हैं।
अमेरिका और पश्चिमी देश दुनिया की औद्योगिक और मूल्य श्रृंखलाओं में शीर्ष पर हैं, जबकि भारत जैसे विकासशील देश निचले छोर पर हैं। आर्थिक हितों की दृष्टि से दोनों बिल्कुल भिन्न हैं। यद्यपि सतह पर उनकी समान राजनीतिक व्यवस्था तो है, फिर भी वे वास्तविक सहयोगी नहीं हो सकते हैं। इसके अलावा, कुछ तथाकथित लोकतांत्रिक देश पूर्व औपनिवेशिक शक्तियाँ हैं जिन्होंने खून और आग से एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के देशों को बहुत नुकसान पहुँचाया था। लोकिन आज वे विश्व अधिकार के पिरामिड के शीर्ष पर बैठकर उन पूर्व औपनिवेशिक देशों को निर्देशित करते रहे हैं।
“हम” में कौन हैं, और “अन्य” में कौन हैं, और किसके साथ हम वास्तविक एकता प्राप्त कर सकते हैं। यह प्रश्न विचारणीय है, और यह एक प्रमुख सवाल भी है जो विकासशील देशों के भविष्य की नियति को प्रभावित करेगा। चीन और भारत हमेशा एक ही सांस लेते हैं और एक ही नियति साझा करते हैं। दोनों देशों के बीच समान हित मतभेदों से कहीं अधिक हैं। जब तक समस्याओं को एक खुले और ईमानदार तरीके से हल किया जाता है, मुझे विश्वास है कि दोनों देश निश्चित रूप से आगे बढ़ेंगे, और अपने अपने आर्थिक पुनरोद्धार को पूरा करने और एशियाई शताब्दी के भव्य आदर्श को साकार कर सकेंगे।
(साभार—चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)