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भारत और चीन की युवा पीढ़ी : शक्ति और आशा

जहां भारत में हर साल 12 जनवरी को स्वामी विवेकानन्द की जयंती के मौके पर राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है। वहां, चीन में हर साल 4 मई को युवा दिवस मनाया जाता है।

दरअसल, ये उत्सव भविष्य को आकार देने में युवा पीढ़ी के महत्व पर जोर डालते हैं। वे हमें युवाओं के भीतर मौजूद विशाल क्षमता और आशा की याद दिलाते हैं, साथ ही उन्हें नेतृत्व की भूमिका निभाने और समाज पर सकारात्मक प्रभाव डालने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

चीन में, 4 मई की भावना देश की आत्मा में गहराई से समाई हुई है, जो युवाओं को अपने देश की बेहतरी में योगदान देने और अपने सपनों को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है। साथ ही, युवाओं को बड़े सपने देखने, खुद पर विश्वास करने और भविष्य को आकार देने के लिए प्रेरित भी करती है। चीन में युवा अपने देश के विकास और प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के महत्व को भली-भांति समझते हैं। 

साल 1919 में “चौथा मई आंदोलन” चीनी इतिहास में महत्वपूर्ण है। इसने चीनी देशभक्ति और लोकतांत्रिक प्रयासों की शुरुआत को चिह्नित किया। यह चीन की राष्ट्रीय जागृति और कायाकल्प के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था। 

इसके अलावा, इसने साल 1921 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के गठन का नेतृत्व किया, जिससे चीनी राष्ट्रवाद को बढ़ावा मिला जो आज भी देश की पहचान का अभिन्न अंग बना हुआ है।

चीन एक राष्ट्रीय पुनरुत्थान का अनुभव कर रहा है, जिसका नेतृत्व अधिकतर उसके युवा कर रहे हैं। दूसरी ओर, भारत में दुनिया की सबसे युवा आबादी है। साल 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की 50 प्रतिशत आबादी 25 वर्ष या उससे कम उम्र की है, और 65 प्रतिशत 35 वर्ष या उससे कम उम्र की है। यह युवा आबादी भारत के लिए एक मूल्यवान संपत्ति है, जो इसके आर्थिक विकास में योगदान देती है।

विश्व स्तर पर भारत में युवाओं की संख्या सबसे अधिक है, लगभग 60 प्रतिशत युवा आबादी के देश के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की उम्मीद है। उनके प्रयास राष्ट्र को आकार देंगे और संभावित रूप से भारत को एक वैश्विक नेता के रूप में स्थापित करेंगे। 

नतीजतन, सरकार को युवाओं में निवेश करना चाहिए, भविष्य के नेताओं को ट्रेन करने के लिए ट्रेनिंग और सहायता देनी चाहिए। भारत को आगे बढ़ने के लिए अपनी युवा आबादी की अपार क्षमता का लाभ उठाना चाहिए।

भारत और चीन के युवा दोनों देशों की ताकत और भविष्य हैं। वे अतीत से आगे बढ़ते हुए अपने भविष्य को आकार देने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। हालाँकि, हमें उनके सामने आने वाली चुनौतियों को भी स्वीकार करना चाहिए।

भारत और चीन की युवा पीढ़ी को अपने-अपने देशों में विशिष्ट चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। भारत में, कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों में रोजगार के अवसरों की कमी, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक सीमित पहुंच और अपर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं शामिल हैं। 

दूसरी ओर, चीन में, युवा लोगों को अकादमिक रूप से बेहतर होने के लिए अत्यधिक दबाव, सीमित अवसरों के लिए कड़ा मुकाबला और सामाजिक अपेक्षाओं का सामना करना पड़ता है, जिससे काफी तनाव होता है। 

इन चुनौतियों से निपटना और युवाओं का समर्थन करना दोनों देशों में सतत विकास और प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है। इनोवेशन के माध्यम से इन समस्याओं को हल करने की कुंजी युवाओं के पास है। वे आज के इनोवेटर हैं।

कोविड-19 महामारी ने भारतीय और चीनी युवाओं के समर्पण और जिम्मेदारी को उजागर किया। दोनों देशों के कई युवा डॉक्टरों, नर्सों, पुलिस अधिकारियों और बचावकर्मियों ने अपनी जान जोखिम में डालकर बेहतर-से-बेहतर नेतृत्व का प्रदर्शन किया। उनकी अटूट कमिटमेंट ने एक बार फिर इस बात पर जोर दिया कि युवा दोनों देशों का भविष्य हैं।

हमें समझना होगा कि भारत और चीन के युवा दोनों देशों की जनसंख्या के एक गतिशील और महत्वपूर्ण वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। शिक्षा, रोजगार और सामाजिक जीवन में असमानताएं युवाओं के सामने आने वाली चुनौतियों को उजागर करती हैं। दोनों देशों के उज्ज्वल भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए युवाओं की जरूरतों और आकांक्षाओं को प्राथमिकता देना आवश्यक है।

(अखिल पाराशर, चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

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