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ISRO ने अंतरिक्ष में रचा इतिहास, पहली बार 2 सेटेलाइट्स की हुई डॉकिंग

नेशनल डेस्क : गुरुवार को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने स्पेडेक्स (SpaDeX) मिशन के तहत दो सेटेलाइट्स की सफल डॉकिंग पूरी कर ली है। यह मिशन गुरुवार को अपने चौथे प्रयास में सफल रहा। इस उपलब्धि के साथ भारत ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है। आइए जानते है इस खबर.

नेशनल डेस्क : गुरुवार को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने स्पेडेक्स (SpaDeX) मिशन के तहत दो सेटेलाइट्स की सफल डॉकिंग पूरी कर ली है। यह मिशन गुरुवार को अपने चौथे प्रयास में सफल रहा। इस उपलब्धि के साथ भारत ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है। आइए जानते है इस खबर को विस्तार से…

डॉकिंग क्या है?

दरअसल, स्पेस डॉकिंग वह प्रक्रिया है जिसमें दो सेटेलाइट्स या अंतरिक्ष यान एक-दूसरे के पास आकर जुड़ जाते हैं। यह एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें अंतरिक्ष यान को एकदम सटीक तरीके से जोड़ा जाता है ताकि कोई नुकसान न हो।

क्या है इस प्रक्रिया का उद्देश्य

    • डेटा का आदान-प्रदान करना।
    • ऊर्जा स्रोतों को जोड़ना।
    • किसी खास मिशन को पूरा करना।

12 जनवरी को मिली थी आंशिक सफलता

  • ISRO ने 12 जनवरी को तीसरी बार डॉकिंग की कोशिश की थी।

 

  • सेटेलाइट्स की दूरी को 15 मीटर से 3 मीटर तक लाया गया था।

 

  • हालांकि, मिशन पूरी तरह सफल नहीं हो सका था और सेटेलाइट्स को अलग कर दिया गया था।

 

  • इस बार, वैज्ञानिकों ने डाटा का विश्लेषण करने के बाद चौथे प्रयास में डॉकिंग को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया।

दो सेटेलाइट्स के नाम और काम

  • चेसर (Chaser): यह सेटेलाइट टारगेट सेटेलाइट के पास जाकर उससे जुड़ने के लिए जिम्मेदार था।

 

  • टारगेट (Target): इसका काम चेसर को अपने साथ जोड़ने का था।

 

  • दोनों सेटेलाइट्स का वजन लगभग 220 किलोग्राम है।

मिशन की लॉन्चिंग

  • इस मिशन को 30 दिसंबर को श्रीहरिकोटा से रात 10 बजे लॉन्च किया गया था।

 

  • इसके लिए PSLV-C60 रॉकेट का इस्तेमाल किया गया।

 

  • रॉकेट ने दोनों सेटेलाइट्स को पृथ्वी से 470 किमी की ऊंचाई पर तैनात किया।

भविष्य के मिशनों में मदद

स्पेस डॉकिंग तकनीक का सफल परीक्षण भारत के अंतरिक्ष अभियानों में मील का पत्थर साबित होगा। यह भविष्य में इंसानों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए जरूरी तकनीक है।  यह तकनीक अन्य ग्रहों पर जाने वाले अभियानों में भी सहायक होगी। इस सफलता से भारत ने अंतरिक्ष में अपनी तकनीकी क्षमता का एक और अद्भुत उदाहरण पेश किया है।


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