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बर्फीले अंटार्कटिक की जलवायु और पारिस्थितिकी में हो रहे परेशान करने वाले बदलाव

वोलोगोंगः दशकों तक अंटार्कटिक क्षेत्र के विज्ञन का अध्ययन करने के बाद, मैंने सीखा है कि भौतिक और जैविक परिवर्तन शायद ही कभी सुचारू रूप से होते हैं। ये धीमी गति से और रुक-रुक कर होते हैं और अधिकांशत: अपनी तेजी से जाहिर होते हैं। फिलहाल, अंटार्कटिका की जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र में परेशान करने वाले बदलाव हो रहे हैं। अंटार्कटिका में इस शीत ऋतु की ज्यादातर समुद्री बर्फ गायब है, एक महत्वपूर्ण समुद्री धारा की गति धीमी हो रही है, और ग्लेशियर तथा बर्फ की चट्टानें विघटित हो रही हैं। भूमि पर, नाजुक काई के पारिस्थितिकी तंत्र का तेजी से क्षरण हो रहा है।

संभव है कि आने वाले समय में हिम इलाकों के ‘सम्राट’ पेंगुइन विलुप्त हो जाएं। कुल मिलाकर अंटार्कटिका में मानव गतिविधि से उत्पन्न प्रदूषण ने एक जहरीली विरासत छोड़ दी है। यह लगभग तय है कि चीज़ें बदतर होंगी। सैकड़ों अंतरराष्ट्रीय वैज्ञनिकों ने उभरते जलवायु संकट के जवाब में दक्षिणी महासागर विज्ञन के तत्काल विस्तार का शुक्रवार को आह्वान किया। इससे इस वैज्ञनिक दावे को बल मिलता है कि हमारे ग्रह को बचाने के लिए हमारे पास विकल्प सीमित हैं।

मैंने अंटार्कटिक और उप-अंटार्कटिक अनुसंधान में 40 वर्ष बिताए हैं। उनमें से लगभग 22 साल संघीय सरकार के ऑस्ट्रेलियाई अंटार्कटिक डिवीजन में लगे। वहां मेरा अंतिम दिन पिछले बृहस्पतिवार को था। एक निजी नागरिक के रूप में, मैं सार्वजनिक रूप से बर्फीले महाद्वीप और समाज के लिए अंटार्कटिक विज्ञन के लाभ के लिए खड़ा होना जरूरी महसूस करता हूं। जैसा कि हम जानते हैं, हमारे जीवन के लिए महत्वपूर्ण अंटार्कटिका मायने रखता है, क्योंकि वहां जो घटित होता है वह वैश्विक मौसम पैटर्न और समुद्र के स्तर को प्रभावित करता है।

अंटार्कटिक क्षेत्र की जलवायु बदल रही है। रिकॉर्ड तोड़ने वाली संग्रहित गर्मी बर्फ पिघला रही है, जिससे एक शृंखलाबद्ध प्रतिक्रिया शुरू हो रही है। बर्फीले ग्लेशियर तेजी से समुद्र की ओर बहते हैं। पश्चिमी अंटार्कटिक में ग्लेशियर अनुमान से अधिक तेज़ी से पिघल रहे हैं। पूर्वी अंटार्कटिक में भी यही स्थिति है। नतीजतन, समुद्र का स्तर बढ़ रहा है। वर्ष 1959 में शीत युद्ध के दौरान ऑस्ट्रेलिया सहित 12 देशों की ‘‘अंटार्कटिका संधि’’ द्वारा शासित अंटार्कटिका में ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप का 42 प्रतिशत हिस्सा है।

मेरे विचार से यह एक बेहतरीन संधि है, जो ‘‘संरक्षण, शांति और विज्ञन के लिए अलग एक महाद्वीप’’ के दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करती है। इसके बावजूद अंटार्कटिका पर ख़तरा बना हुआ है और इसका सबसे बड़ा एक कारण जलवायु परिवर्तन है। इस वर्ष जून में, ऑस्ट्रेलिया सहित संधि में शामिल सभी देशों ने सामूहिक रूप से कहा कि अंटार्कटिक और दक्षिणी महासागर के वातावरण में परिवर्तन विश्व स्तर पर जलवायु प्रभाव चालकों से जुड़े हुए हैं और उन्हें प्रभावित करते हैं।

उन्होंने कहा कि ग्रीनहाउस गैस उत्सजर्न को कम करने के लिए त्वरित प्रयास नहीं किए गए तो ‘‘अपरिवर्तनीय बदलाव की आशंका है।’’ इन खतरों का सामना करने के लिए वैज्ञनिक अनुसंधान महत्वपूर्ण है, ताकि इन परिवर्तनों को मौजूदा समय और आगे लंबी अवधि में बेहतर ढंग से समझने और नीतिगत हस्तक्षेपों में मदद मिल सके। ‘गार्जियन ऑस्ट्रेलिया’ के अनुसार, आश्चर्यजनक रूप से इस गर्मी में बजट की कमी अनजाने में विज्ञन की योजनाओं में कटौती कर रही है। पर्यावरण संरक्षण के लिए चलाए जा रहे विभिन्न अभियानों के सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं। कहीं अर्थव्यवस्था और उसमें योगदान देने वाले व्यवसाय भी आड़े आ रहे हैं। इसके लिए एकजुट होकर सहमति बनानी होगी।

अंटार्कटिका में भी प्रदूषण है। यहां की कहानी एक सम्मोहक अनुस्मरण कराती है कि मानवता को बचाने के लिए जीवाश्म ईंधन पर हमारी निर्भरता को समाप्त करना होगा। हमें पर्यावरणीय प्रबंधन के लिए भी कहीं बेहतर काम करना चाहिए- जिसमें तत्काल आवश्यक वैज्ञनिक अनुसंधान के लिए समुचित भुगतान भी शामिल है। मेरे विचार से, तेजी से सामने आ रहे जलवायु आपातकाल में महत्वपूर्ण अंटार्कटिक विज्ञन का पूर्ण समर्थन करने में असफलता नासमझी है, क्योंकि यहां होने वाली हर हलचल वैश्विक मौसम पैटर्न और समुद्र के स्तर को प्रभावित करती है।

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