एजिंग यानी बुढ़ापा : बुजुर्ग लोगों के हाथों के पीछे नील पड़ना एक सामान्य बात है। एक्टिनिक पर्प्युरा (actinic purpura) कहलाने वाले ये नील के निशान लाल रंग से शुरू होकर, पर्पल, और गहरे रंग के होते हुए फिर हल्के होकर गायब हो जाते हैं। इस प्रकार के निशान इसलिए पड़ते हैं क्योंकि रक्त धमनियां इतने साल सूरज की रोशनी का सामना करते हुए कमजोर हो जाती हैं। एस्पिरिन, कोमाडिन, अल्कोहल इस समस्या को और बढ़ा सकते हैं।
पोषण की कमी: कुछ विटामिन और मिनरल ब्लड क्लॉटिंग और जख्मों को भरने में खास भूमिका निभाते हैं। इनकी कमी होने से नील के निशान पड़े दिखाई दे सकते हैं।
• विटामिन के: ये खून को जमने में मदद करता है और ये हड्डियों के निर्माण में एक महत्वपूर्ण घटक भी है। इस विटामिन की कमी से सामान्य रक्त जमने की प्रक्रिया पर प्रभाव पड़ता है।
• विटामिन सी: कोलोजन और अन्य घटक जो त्वचा और रक्त धमनियों में अंदरूनी चोट लगने से बचाव करते हैं, उनके संश्लेषण के लिए विटामिन सी जरूरी है। इसलिए विटामिन सी की कमी से नील के निशान पड़ सकते हैं और चोट ठीक होने में अधिक समय भी लग सकता है।
• मिनरल: ज़िंक और आयरन चोट ठीक होने में मदद करने वाले आवश्यक मिनरल हैं। आयरन की कमी से एनीमिया भी हो जाता है जिसे नील पड़ने का एक बड़ा कारण भी माना जाता है।
• बायोफ्लेविनॉइड यानी विटामिन पी: सिट्रीन, रूटीन, केटचिन और केर्सेटिन (Citrine, rutin, catechin and quercetin) कुछ ऐसे बायोफ्लेविनॉइड हैं जो अंदरूनी चोटों से बचाने का काम करते हैं। इन चारों को आसानी से आंवला, सिट्रस फल जैसे कि संतरा, मौसमी, तिल, बीटरूट, केला आदि से प्राप्त किया जा सकता है।
वॉन विल्लेब्रांड बीमारी: वॉन विल्लेब्रांड एक शरीर के अंदर रक्तस्राव होने की समस्या है जिसका आपके खून की जमने की क्षमता पर प्रभाव पड़ता है। ऐसे में चोट लगने के बाद बहुत अधिक खून बहने लगता है। ये बीमारी तब होती है जब वॉन विल्लेब्रांड नाम के प्रोटीन का रक्त में स्तर बहुत कम होता है या तब जब ये प्रोटीन ठीक से काम नहीं करता। इस कारण इस समस्या से पीड़ित इंसान को छोटी मोटी टक्कर या चोट के बाद भी अक्सर शरीर में बड़े बड़े नील जैसे निशान दिखते हैं।
कैंसर और कीमोथेरेपी: अगर आपकी कीमोथेरेपी हो रही है और उसकी वजह से आपका ब्लड प्लेटलेट्स 400,000 से नीचे आ गया है, तो आपके शरीर में बार-बार इस तरह के नील के निशान दिख सकते हैं।
थ्रोंबोफिलिआ: ब्लीडिंग डिसऑर्डर जैसे कि थ्रोंबोटिक थ्रोंबोसाइटोपेनिया पर्प्यूरा (टीटीपी) या आईडियोपेथिक थ्रोंबोसाइटोपेनिक पर्प्यूरा (आईटीपी) जिनमें कि प्लेटलेट्स कम हो जाते हैं, इनके कारण भी शरीर की ब्लड क्लॉट की क्षमता कम हो जाती है, जिससे कि नील के निशान पड़ते हैं।
हीमोफीलिया: हीमोफीलिया थ्रोम्बोफिलिया की उल्टी प्रक्रिया है। जिन लोगों को ये समस्या होती है उन्हें बहुत अधिक रक्तस्राव की आशंका रहती है क्योंकि ब्लड क्लॉटिंग नहीं हो पाती। अत्यधिक या बिना वजह से रक्तस्राव या नील पड़ना हीमोफीलिया का एक लक्षण है।
एहलर्स-डेन्लस सिंड्रोम : शरीर पर नील पड़ना विरासत में मिले कोलोजन विकारों के कारण भी हो सकता है। उदाहरण के लिए, एहलर्स-डेन्लस सिंड्रोम (इडीएस)। इस समस्या में नील के निशान इसलिए पड़ जाते हैं क्योंकि कशिकाएं और रक्तधमनियां कमजोर हो जाती हैं और आसानी से टूट जाती हैं। इस बीमारी के मुख्य लक्षण शरीर में अत्यधिक निशान पड़ना, घाव देर से भरना, इंटरनल ब्लीडिंग या वक्त से पहले मृत्यू, भ्रूण को नुकसान आदि हैं।
दवाइयां और सप्लीमेंट: खून को पतला करने वाली कुछ बीमारियां वार्फेरिन और एस्पिरिन खून को जमने से रोकती है जिससे कि लगातार शरीर पर नील पड़ सकते हैं। एनएसएआईडी जैसे कि इबूप्रोफेन, कोर्टिकोस्टीरॉइड्स जैसे कि कोर्टिसोल या प्रेडनिसोन और एसएसआरआई जैसे कि प्रोजेक भी शरीर में निशान पड़ने का कारण हो सकती है। गिंकगो बिलोबा, फिश ऑयल और गार्लिक जैसे नेचुरल सप्लीमेंट का अधिक इस्तेमाल भी खून को पतला करके शरीर पर नील के निशान दे सकता है। हालांकि ऐसा कम ही होता है क्योंकि ऐसे सप्लीमेंट लेने से खून पतला नहीं होगा, ऐसा खून को पतला करने वाली दवाओं को इनके साथ लेने के बाद होता है।
कब करें इन निशानों की फिक्र?
अगर आपके शरीर के किसी भी हिस्से में बना नील का निशान बड़ा है और उसपर बहुत दर्द भी है तो आपको तुरंत मेडिकल सहायता लेनी चाहिए। ये ‘कंपार्टमेंट सिंड्रोम’ जैसी बीमारी हो सकती है। ये बीमारी जानलेवा है और इसको ठीक करने के लिए तुरंत मेडिकल सहायता की जरूरत होती है। अगर नील के आसपास इंफेक्शन, पस या बुखार भी हो तो डॉक्टर को जरूर बुलाएं। अगर आपको बार बार शरीर पर इस तरह के निशान दिखते हैं तो आपको मेडिकल जांच करवानी बहुत जरूरी हो जाती है ताकि इस समस्या का कारण मालूम चल सके। हो सकता है कि कोई गंभीर कारण न हो लेकिन, जोखिम उठाने की जरूरत ही क्या है?