नई दिल्ली: मैडिकल क्षेत्र की पत्रिका द लांसेट में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, दुनियाभर में सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरा बन रहे घातक एंटीमाइक्रोबियल रैजिस्टैंस (एएमआर) के खिलाफ लड़ाई में फंगल पैथोजन पर भी ध्यान देना जरूरी है। ब्रिटेन की मानचैस्टर यूनिवर्सिटी, एम्सटर्डम तथा नीदरलैंड के वैस्टरडाइक संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययन से पता चला है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा पहचाने गए अधिकांश फंगल पैथोजन या तो पहले से ही प्रतिरोधी हैं या उनमें एंटीफंगल दवाओं के प्रति तेजी से रैजिस्टैंस विकसित हो रहा है। इन फंगल रोगाणुओं के कारण प्रतिवर्ष लगभग 38 लाख लोगों की मृत्यु होती है।
यह अध्ययन इस महीने के अंत में एएमआर पर संयुक्त राष्ट्र की बैठक से पहले आया है। इसमें एएमआर पर अंकुश लगाने के लिए कई फंगल पैथोजन में विकसित रैजिस्टैंस को शामिल करने की अपील की गई है। वैज्ञानिकों ने तर्क दिया कि केवल बैक्टीरिया पर ध्यान केंद्रित करने से एएमआर से पूरी तरह निपटने में मदद नहीं मिलेगी। उन्होंने तत्काल कार्रवाई का आह्वान किया, जिसके बिना फंगल रोग के प्रति रैजिस्टैंस बढ़ जाएगा। एस्परगिलस, कैंडिडा, नाकासीओमाइसेस ग्लैब्रेटस और ट्राइकोफाइटन इंडोटिनी प्रमुख फंगीसाइड रेजिस्टेंट संक्रमण हैं। इनका बुजुर्गों और कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों पर विनाशकारी स्वास्थ्य प्रभाव हो सकता है। मानचैस्टर यूनिवर्सिटी के डॉ. नॉर्मन वान रिज्न ने कहा कि पिछले दशकों में ड्रग रैजिस्टैंस की कई समस्याओं के लिए आक्रामक फंगल रोग जिम्मेदार रहे हैं।
हालांकि, वैज्ञानिकों, सरकारों, चिकित्सकों और दवा कंपनियों द्वारा फंगल पैथोजन और एंटीफंगल रैजिस्टैंस के खतरे को बड़े पैमाने पर ‘कम करके आंका गया‘ और ‘चर्चा से बाहर रखा गया‘। वान रिज्न ने बताया कि फंगल और मानव कोशिकाओं के बीच अत्यधिक समानता के कारण ऐसे उपचार खोजना कठिन हो जाता है जो जिसमें चुनिंदा फंगल को रोकने से इंसानी कोशिकाओं को नुक्सान न हो।‘ वैज्ञानिकों ने एंटीफंगल अणुओं के कुछ वर्गों के उपयोग को सीमित करने पर वैश्विक सहमति का
सुझाव दिया।