नई दिल्ली: ‘गुग्गुलु: शूलवातघ्नो वातपित्तकफघ्नश्च। शोथघ्नो मेदोघ्नो च गुग्गुलु: सर्वकायका ‘यानी गुग्गुलु शूल और वात के लिए, पित्त और कफ के लिए, शोथ और मेद के लिए भी लाभकारी है। सुश्रुत संहिता का ये ोक गुग्गुल के ‘सर्वगुण संपन्न’ होने की कहानी कहता है। दुनियाभर में पेड़-पौधों की कई ऐसी प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनका आयुर्वेद में एक अहम स्थान है। आंखों का रोग हो या कान की दरुगध या फिर पेट के रोग समेत शरीर से जुड़ी कई अनगिनत बीमारियां हो, उनके उपचार के लिए ‘गुग्गुल’ का ही इस्तेमाल किया जाता है। आज आपको ‘गुग्गुल वृक्ष’ के बारे में बताएंगे, जिसके अनगिनत फायदे हैं।
2015 में नैशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित पत्र के मुताबिक एथेरोस्क्लेरोसिस और मोटापे के संदर्भ में गुग्गुल के प्रभाव का खुलासा जनवरी 1966 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में प्रस्तुत एक डॉक्टरेट थीसिस में हुआ। इससे पहले, गुग्गुल को विभिन्न प्रकार के गठिया के उपचार के लिए एक आयुर्वेदिक दवा के रूप में ज्यादा जाना जाता था। ‘गुग्गुल’ का वानस्पतिक नाम ‘कॉमीफोरा विग्टी’ है, जो भारत के अधिकतर शुष्क क्षेत्रों में पाया जाता है। यहां इसकी कई प्रजातियां उपलब्ध हैं। इनमें से मुख्य रूप से कॉमीफोरा विग्टी और सी स्टॉकसियाना है, जो राजस्थान और गुजरात के शुष्क क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
‘गुग्गुल’ एक बहुउपयोगी पौधा है, जिससे निकलने वाले गोंद का इस्तेमाल एलोपैथी, यूनानी और आयुर्वेदिक दवाओं में किया जाता है। आयुर्वेद में ‘गुग्गुल’ को शरीर से जुड़े कई इलाज के लिए रामबाण माना गया है। ‘गुग्गुल’ गोंद की तरह होता है, जिसकी तासीर गर्म और कड़वी होती है। बताया जाता है कि ‘गुग्गुल’ अल्सर, बदहजमी, पथरी, मुंहासे, बवासीर, खांसी, आंख संबंधी रोग दूर करने में लाभदायक है। ‘गुग्गुल’ में विटामिन, एंटीऑक्सिडैंट, क्रोमियम जैसे अनेक तत्व भी पाए जाते हैं। ?