Site icon Dainik Savera Times | Hindi News Portal

भाषाओं को कैसे खत्म कर रहा जलवायु परिवर्तन

मेलबर्न: अमेरिका के वाशिंगटन राज्य के केलर में रहने वाली पॉलिन स्टेन्सगर का दो मई 2023 में 96 वर्ष की उम्र में निधन हो गया और उनके साथ उनकी भाषा भी खत्म हो गई। स्पोकाने के स्पोक्समैन रिव्यू में प्रकाशित खबर के मुताबिक, पॉलिन ‘इन-हा- उम-चीन’ भाषा बोलने वाली अंतिम व्यक्ति थीं। वाशिंगटन राज्य क्षेत्र में अमेरिका के रहने वाले कुछ समूह इस भाषा में बात किया करते थे। पॉलिन के अपनी भाषा के प्रति प्यार को धन्यवाद, जिसकी वजह से हम इस भाषा से पूरी तरह अनजान नहीं हैं।

सैलिश स्कूल आफ स्पोकाने के प्रधानाचार्य क्रिस्टॉफर पार्किन ने बताया कि पॉलिन स्टेन्सगर ने छह पाठ्यपुस्तकों की रचना की और उनके पास भाषा की 100 से ज्यादा रिकॉर्डिंग हैं। अगर कोई भी ‘इन-हा-उम-चीन’ सीखना चाहता है तो वह सीख सकता है। लेकिन कुछ विलुप्त भाषाएं, ‘इन-हा-उम-चीन’ जितनी भाग्यशाली नहीं हैं। हम इन्हें हमेशा के लिए खो सकते हैं।

दुनिया के कुछ हिस्से भाषाओं के संदर्भ में समृद्ध हैं लेकिन वहां लाखों लोग पर्यावरणीय आपदाओं के चलते विस्थापित होने के लिए मजबूर हैं, जो भाषाओं के विलुप्त होने का एक प्रमुख कारण है। दुनियाभर में आज सात हजार से अधिक भाषाएं बोली जाती हैं, जिनका इतिहास है और इन्हें बोलने वालों के पास इनका ज्ञान भंडार है।

जब इन भाषाओं को बोलने वाले लोग अपने बच्चों को ही यह भाषाएं नहीं सिखाएंगे तो हम इन भाषाओं को खो देंगे। ऐसा अक्सर तब होता है जब कम प्रचलित भाषा बोलने वाले लोग आर्थिक रूप से अधिक लाभप्रद भाषाओं को अपना लेते हैं। इसमें कहीं न कहीं प्रवास ने एक अहम भूमिका निभाई है। उदाहरण के लिए अमेरिका में दूसरी पीढ़ी के अधिकतर आप्रवासी धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलते हैं जबकि उनके माता-पिता की भाषा अंग्रेजी नहीं थी। उनके माता-पिता की भाषा के बजाय अंग्रेजी आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से अधिक लाभकारी है।

वर्ष 2021 में अमेरिका में 98 प्रतिशत स्वदेशी भाषाएं और आस्ट्रेलिया में 89 प्रतिशत स्वदेशी भाषाएं विल्पुत होने की कगार पर थीं। दोनों ही देशों का औपनिवेशिक इतिहास रहा है और पिछली शताब्दियों में यूरोप से बड़े पैमाने पर लोग यहां आकर बसे हैं। इसलिए आज का प्रवास संभवत? कल की भाषा को नुकसान पहुंचाएगा। प्रवास का एक बहुत बड़ा कारण पर्यावरणीय आपदाएं हैं।

मौजूदा प्रवासन चलन में जबरन प्रवास एक बड़ी और अहम भूमिका निभाता है। ‘ग्लोबल ट्रेंड्स रिपोर्ट 2022’ के मुताबिक, 2022 में 10.8 करोड़ से अधिक लोग जबरन विस्थापित हुए और उनमें से लगभग 6.10 करोड़ लोग अपने ही देश में विस्थापित होने के लिए मजबूर थे। पापुआ न्यू गिनी में कम से कम 90 लाख लोग रहे हैं और वे कुल मिलाकर 839 अलग-अलग भाषाएं बोलते हैं, जिनमें से 313 भाषाएं विलुप्त होने की कगार पर हैं। वानुअतु में तीन लाख लोग रहते हैं और 108 अलग-अलग भाषाएं बोलते हैं, जिनमें से आधी से ज्यादा भाषाएं विलुप्त होने वाली हैं। इंडोनेशिया में 704 भाषाएं, भारत में 424 भाषाएं और फिलिपीन में 175 भाषाएं बोली जाती हैं और इन तीनों देशों में आधी भाषाएं संकट में हैं।

Exit mobile version