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IIT Madras ने स्तन कैंसर के अपेक्षाकृत सुरक्षित उपचार के लिए दवा देने की प्रणाली का पेटेंट कराया

नई दिल्ली। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT), मद्रास के शोधकर्ताओं ने स्तन कैंसर के इलाज के लिए दवा देने की नयी प्रणाली विकसित की है और उसका पेटेंट कराया है। स्तन कैंसर वैश्विक स्तर पर महिलाओं की मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक है। अधिकारियों के अनुसार, शोधकर्ताओं ने दवा वितरण प्रणाली को डिजाइन करने के लिए ‘नैनोमटेरियल’ के अनूठे गुणों का लाभ उठाया है जो कैंसरग्रस्त कोशिकाओं तक कैंसर-रोधी दवाओं को पहुंचा सकते हैं। यह नवाचार पारंपरिक उपचार विकल्पों के लिए एक सुरक्षित और अत्यधिक प्रभावी विकल्प प्रदान करता है।

संस्थान के एप्लाइड मैकेनिक्स और बायोमेडिकल इंजीनियरिंग विभाग की सहायक प्रोफेसर स्वाति सुधाकर ने मीडिया को बताया, ‘‘नैनोकैरियर बायोकम्पैटिबल हैं और गैर-कैंसरग्रस्त या स्वस्थ कोशिकाओं के लिए विषाक्त नहीं हैं। इसलिए, वे कीमोथेरेपी या विकिरण चिकित्सा या कीमोथेरेपेटिक दवाओं जैसे उपचारों के लिए एकदम सही विकल्प हैं, जो न केवल कैंसर कोशिकाओं पर हमला करते हैं बल्कि स्वस्थ कोशिकाओं को भी प्रभावित करते हैं जिससे बालों का झड़ना, मतली, थकान जैसे गंभीर दुष्प्रभाव होते हैं।’’ सुधाकर ने बताया कि बार-बार दवा की खुराक लेने से कैंसर कोशिकाएं कीमोथैरेपेटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोध भी विकसित कर सकती हैं, जो अंतत? उपचार के प्रभाव को कम कर देती हैं। उन्होंने कहा, ‘‘प्रयोगशाला में स्तन कैंसर कोशिकाओं पर कई परीक्षण किए गए, जिससे पता चला कि दवाओं से भरे नैनोआर्कियोसोम ने कैंसर कोशिकाओं में कोशिकाओं को समाप्त करना शुरू किया और कीमोथेरेपेटिक दवा की बहुत कम खुराक पर भी ट्यूमर के पनपने को प्रभावी ढंग से रोक दिया।’’ आईआईटी मद्रास और शिक्षा मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित अनुसंधान के निष्कर्षों को रॉयल सोसाइटी ऑफ केमिस्ट्री द्वारा प्रकाशित मैटेरियल्स एडवांस और नैनोस्केल एडवांस सहित प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित किया गया है।

इस शोध के लिए पिछले महीने एक भारतीय पेटेंट प्रदान किया गया था। सुधाकर ने कहा, ‘‘यह शोध कैंसर उपचार थैरेपी को बदलने, जीवित रहने की दर में सुधार करने और दुनिया भर में लाखों रोगियों के लिए जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए बहुत बड़ा वादा करता है। हमारा अगला कदम पशु मॉडल में इस दवा के प्रभाव का परीक्षण करना है।’’ प्रोफेसर ने बताया कि नियंत्रित तरीके से दवा की मात्रा देने से ट्यूमर बनने की जगह पर लंबे समय तक दवा की उपलब्धता सुनिश्चित होती है, जिससे बार-बार खुराक की आवशय़कता कम हो जाती है।

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