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भारत में पिछले दशक में बच्चों के भोजन से संबंधित गंभीर गरीबी में आई कमी : यूनिसेफ

नई दिल्ली: बच्चों के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनिसेफ ने अपनी वैश्विक रिपोर्ट में कहा है कि भारत ने पिछले दशक में बच्चों के भोजन से संबंधित गंभीर गरीबी के मामले में गरीब और अमीर परिवारों के बीच असमानताओं को कम से कम 5 प्रतिशत कम करने में सफलता पाई है। ‘बाल खाद्य गरीबी : बचपन के शुरुआती दिनों में पोषण का अभाव’ रिपोर्ट से पता चला है कि भारत उन 20 देशों में शामिल है, जहां 2018-2022 के बीच बच्चों के भोजन से संबंधित गंभीर गरीबी में रहने वाले कुल बच्चों की संख्या का 65 प्रतिशत निवास करती है।

इसमें शामिल अन्य देशों में अफगानिस्तान (49 प्रतिशत), बांग्लादेश (20 प्रतिशत), चीन (10 प्रतिशत) और पाकिस्तान (38 प्रतिशत) शामिल हैं। लगभग 100 देशों के आंकड़ों पर आधारित संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर लगभग 18.1 करोड़ बच्चे या 5 वर्ष से कम आयु के 4 में से 1 बच्चे को भोजन संबंधी गंभीर गरीबी का सामना करना पड़ रहा है। इनमें से लगभग 6.4 करोड़ प्रभावित बच्चे दक्षिण एशिया से और 5.9 करोड़ अफ्रीका के उप-सहारा क्षेत्र से हैं। रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि भारत उन 11 देशों में शामिल है जहां स्थिति में सुधार हुआ है।

एशिया में भारत के अलावा आर्मेनिया ने प्रगति की है। इसके साथ ही इनमें अफ्रीका में बुर्किना फासो, कोट डी आइवर, डैमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, डोमिनिकन रिपब्लिक, गिनी, लेसोथो, लाइबेरिया, सेनेगल और सिएरा लियोन का नाम शामिल है।
यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसेल ने कहा, ‘गंभीर खाद्य गरीबी में रहने वाले बच्चे हाशिये पर रहने वाले बच्चे हैं।

लाखों छोटे बच्चों की यह वास्तविकता उनके अस्तित्व, विकास और मस्तिष्क के विकास पर अपरिवर्तनीय नकारात्मक प्रभाव डालती हैं।’ जो बच्चे प्रतिदिन केवल दो खाद्य समूह – उदाहरण के लिए चावल और थोड़ा दूध – खाते हैं, उनमें गंभीर कुपोषण की संभावना 50 प्रतिशत तक अधिक होती है। यूनिसेफ के अनुसार, बाल खाद्य गरीबी से मतलब है बचपन में पौष्टिक और विविध आहार से बच्चों का वंचित रहना और उसके उपभोग असमर्थ होना।

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