नई दिल्ली: एक नए अध्ययन में पता चला है कि पांच साल या इससे कम उम्र के बच्चों को पल्मोनरी ट्यूबरकुलोसिस (पीटीबी) होने पर उनके फेफड़े कमजोर होने तथा बाद में ऊंचाई और वजन न बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है। अध्ययन में शामिल अमरीका के ‘बोस्टन यूनिवर्सिटी स्कूल आफ पब्लिक हैल्थ’ के वैज्ञानिकों का कहना है कि पीटीबी प्रभावित बच्चों के लिए उपचार मौजूद हैं, लेकिन किसी भी अध्ययन में, इस बीमारी से उबरने के बाद बच्चों के स्वास्थ्य पर इसके दीर्घकालिक प्रभाव के बारे में कुछ नहीं कहा गया है। यह अध्ययन ‘अमेरिकन जर्नल ऑफ रैस्पिरेटरी एंड क्रिटिकल केयर मैडिसन’ में प्रकाशित किया गया है।
अध्ययन के लिए, अध्ययन के प्रमुख लेखक लियोनार्डो मार्टिनेज और केप टाउन, दक्षिण अफ्रीका स्थित रैड क्रॉस वॉर मैमोरियल चिल्ड्रंस हॉस्पिटल, केप टाउन यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ वैस्टर्न ऑस्ट्रेलिया के सहयोगियों ने 1,068 बच्चों के स्वास्थ्य पर उनके जन्म से लेकर उनके नौ साल की उम्र के होने तक लगातार नजर रखी। महामारी विज्ञान के सहायक प्रोफैसर मार्टिनेज ने कहा, ‘यद्यपि बच्चों में तपेदिक के लिए एक प्रभावी उपचार है, लेकिन चिंता की बात यह है कि तपेदिक का प्रभाव लंबे समय तक रह सकता है और उपचार तथा इससे उबरने के बाद भी दीर्घकालिक रुग्णता बनी रह सकती है।’ मार्टिनेज ने कहा, ‘इन परिणामों से पता चलता है कि जीवन के शुरुआती कुछ वर्षों में तपेदिक रोग की रोकथाम से लंबे समय तक स्वास्थ्य लाभ हो सकता है, विशेष रूप से फेफड़ों के स्वास्थ्य के लिए यह जरूरी है।’
बीमारी के बाद फेफड़ों की कार्यप्रणाली कमजोर
शोधकर्ताओं ने पाया कि अध्ययन में जिन बच्चों को 1 साल की उम्र से पहले टीबी हो गयी थी, उनका वजन तथा उनका बीएमआई (बॉडी मास इंडैक्स) 5 साल की उम्र तक सामान्य से कम था। शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि जिन बच्चों को 1 साल से 4 साल की उम्र के बीच पीटीबी हुआ था, उनकी लंबाई उनकी उम्र को देखते हुए कम थी। उन्होंने यह भी पाया कि पीटीबी वाले बच्चों को इससे उबरने के बाद बोलते समय घरघराहट होने का अधिक खतरा होता है। जिन बच्चों को 6 महीने की उम्र से पहले पीटीबी हुआ, उनमें सामान्य बच्चों की तुलना में 6 महीने के बाद, बोलने में घरघराहट का जोखिम दोगुना से अधिक पाया गया। टीम ने यह भी पाया कि पीटीबी अपने तीव्र संक्रमण और बीमारी के बाद फेफड़ों की कार्यप्रणाली को कमजोर कर देता है।